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बैंक लागू करेंगे FRDI बिल, बैंक में जमा पैसों के वापस मिलने की गारंटी नहीं रहेगी

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बैंक में डिपॉजिटर्स (पैसा जमा कराने वाला) का पैसा कितना सिक्योर रहेगा, इस पर विवाद चल रहा है। वजह है फाइनेंशियल रिजॉल्यूशन डिपॉजिट इंश्योरेंस (एफआरडीआई) बिल। यह डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (डीआईसीजीसी) एक्ट की जगह लेगा। कहा जा रहा है कि इससे बैंक में जमा करने वालों का पैसा वापस मिलने की गारंटी नहीं रहेगी। इंडस्ट्री ऑर्गनाइजेशन और बैंकर्स भी इसके खिलाफ हैं। हालांकि, प्राइम मिनिस्टर और फाइनेंस मिनिस्टर दोनों ही कह चुके हैं कि पैसा पूरी तरह सिक्योर है। बिल पर पार्लियामेंट कमेटी को विंटर सेशन में सिफारिशें देनीं थीं, लेकिन इसे बजट सेशन तक का वक्त दे दिया गया है।

बोर्ड के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकेगी

– जानकारों के मुताबिक, फाइनेंशियल स्ट्रक्चर रिजर्व बैंक के बजाय सरकार के हाथों में आ जाएगा। इसमें स्पेशल बोर्ड बनाने का प्रोविजन है। इसके फैसले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकेगी।

– इसमें प्रेसिडेंट के अलावा आरबीआई, सेबी, इरडा, पीएफआरडीए और फाइनेंस मिनिस्ट्री के रिप्रजेंटेटिव, 3 फुल-टाइम और 2 इंडिपेंडेंट डायरेक्टर रहेंगे। यानी बोर्ड के 11 सदस्यों में से 7 को सरकार अप्वाइंट करेगी।

– कैबिनेट ने 14 जून को बिल को मंजूरी दी थी। मानसून सेशन में इसे लोकसभा में पेश किया गया। अभी यह संसद की ज्वाॅइंट कमेटी के पास है।

– कमेटी के एक मेंबर ने बताया कि बैंकर बिल को लेकर ज्यादा परेशान हैं। उन्हें लगता है कि इसके प्रोविजन्स से बैंक डूब जाएंगे। बैंक डूबने के कगार पर आता है तो उसे बचाने का मैकेनिज्म होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि बिल जी-20 के दबाव में नहीं लाया गया है।

विवाद की दो अहम वजहें

बिल में डिपॉजिट की गारंटी का जिक्र नहीं, इसलिए लोगों को है आशंका
– डीआईसीजीसी एक्ट में प्रावधान है कि बैंक में जितने भी पैसे हों, बैंक दिवालिया होने पर 1 लाख रु. मिलने की गारंटी है।

– एफआरडीआई बिल में कितनी रकम की गारंटी होगी, इस बात का जिक्र नहीं है। इसलिए लोगों को आशंका है कि यह रकम ज्यादा हो सकती है और कम भी।

बैंक को बचाने की जिम्मेदारी में जनरल डिपॉजिटर्स भी शामिल होंगे

– एफआरडीआई बिल के प्रावधानों के अनुसार अगर बैंक दिवालिया हुआ तो उसे संकट से निकालने की जिम्मेदारी में सामान्य डिपॉजिट करने वाले भी शामिल होंगे। उनके पैसे का इस्तेमाल बैंक को बचाने में किया जाएगा।

बिल की जरूरत क्यों पड़ी?

बैंकों की इन्सॉल्वेंसी का अलग नियम नहीं, सामान्य कंपनियों के नियम लागू
– मौजूदा कानूनों में बैंकों या दूसरी फाइनेंसियल कंपनियों के लिए इन्सॉल्वेंसी के अलग नियम नहीं हैं। कोई बड़ी रिटेल कंपनी दिवालिया हुई तो बैंकिंग सिस्टम या लोगों पर ज्यादा असर नहीं होगा। लेकिन बैंक दिवालिया हुआ तो डिपॉजिट करने वाले प्रभावित होंगे, बैंकिंग सिस्टम के लिए भी खतरा बढ़ेगा।

2008 के फाइनेंसियल क्राइसेस के बाद जी-20 में तय हुआ था बेल-इन का प्रावधान
– 2008 में अमेरिकी बैंक दिवालिया होने लगे तो 45 लाख करोड़ रु. का बेलआउट पैकेज देकर बचाया गया। इसी के बाद जी-20 के फाइनेंशियल स्टैबिलिटी बोर्ड ने सिफारिश की कि सभी मेंबर कंट्री बेल-इन का अरेंजमेंट करें।

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