अगर आप चाहते हैं के आपकी संतान ऐसी ना बने या अगर ऐसी हैं तो वो किन कारणों से हैं, आयुर्वेद में इसके बारे में सदियों पहले ही बता दिया गया था, मगर आधुनिक समाज में अपने आनंद को सबसे ऊपर रखा गया है जिसके चलते आज कल भयंकर शरीरिक और मानसिक रोगों से त्रस्त होना पड़ता है. आइये जाने इसके पीछे की पूरी कहानी.
आखिर क्यों बन जाते हैं लोग सम लैंगिक
आजकल समाज में एक नयी प्रथा ही देखने को मिलती है लोग आपस में ही लगे रहते हैं, लड़का लड़के के साथ और लड़की लड़की के साथ. जो लड़का लड़के के साथ लगा रहता है उसको समाज में गे और जो लड़की लड़की के साथ लगी रहती है उसको ले स्बि यन कहा जाता है. आखिर ऐसा क्या कारण है के उन लोगों में ऐसी विचारधारा बनती है. Onlyayurved.com
इसके पीछे के कारणों को समझना होगा और आयुर्वेद में तो ये बात बहुत पहले से ही बता दी थी, मगर उस समय ऐसे रिश्तों के लिए समाज में कोई जगह नहीं थी, अभी वैसे संसार में कुछ कुछ जगह पर इसको मान्यता दी जाने लगी है, मगर ऐसा क्या कारण है के पैदा हुआ लड़का लड़की जैसी हरकतें करता है और लड़की लड़के जैसी हरकतें करती है और कभी कभी बात यहाँ तक आ जाती है के डॉक्टरों को उनका Gender ही बदलना पड़ जाता है. तो आज हम आपको ऐसे ही कारणों के बारे में बताने जा रहें हैं. आइये जाने. Onlyayurved.com
गे क्या है और क्यों बनते हैं लोग गे
जो पुरुष ऋतुकाल में मिलन के समय, खुद स्त्री के नीचे सोता है और स्त्री को अपने ऊपर चढ़ा कर मिलन करता है या खुद नीचे से मिलन करता है और ऐसे में अगर ग र्भ ठहर जाता है तो जो पुत्र पैदा होगा उसकी सारी चेष्टाएँ स्त्री की सी हो जाती हैं. वह लड़का स्त्री की तरह खुद नीचे सो कर अपने अंग पर दुसरे पुरुष के अंग का वी र्य गिरवाता है. ऐसे व्यक्ति को पूर्व काल में ‘महाषंढ नपुंसक’ कहते थे, मगर आज समाज में इनके लिए समलैंगिक शब्द है और स्त्री पुरुष के भेद में इनको गे कहा जाता है. Onlyayurved.com
ले स्बि यन क्या है और क्यों बन जाती हैं लड़कियां ले स्बि यन
दुसरे केस की हम बात करें तो अगर मिलन के समय पुरुष खुद स्त्री के नीचे सोता है और स्त्री को अपने ऊपर चढ़ा कर मिलन करता है या खुद नीचे से मिलन करता है और ऐसे में अगर गर्भ ठहर जाता है और उस से कन्या का जन्म होता है तो ऐसी कन्या की सारी चेष्टाएँ पुरुष की तरह होती हैं, यानी वो दूसरी स्त्रियों को अपने नीचे सुला कर, मर्द की तरह अपने अंग रगडती हैं. ऐसी स्त्री को पूर्व काल में ‘नारी षंढ नपुंसक कहते थे’ और सबसे बड़ी बात अगर स्त्रियों के ऐसा करने से उनके अंग से जो रज निकलता है वो और उसको किसी का गर्भ स्वीकार कर ले तो फिर इस से जो संतान उत्पन्न होगी उसकी हड्डियाँ नहीं होंगी, वैसे तो ऐसी संतान उत्पन्न होगी तो उसके बचने के चांस बहुत कम होंगे, मगर फिर भी अगर बच जाए तो उसकी हड्डियाँ नहीं होंगी और वो अपने हाथ पैर समेट नहीं सकेगी. Onlyayurved.com
आयुर्वेद में ऐसे षंढ नपुंसकों को असाध्य लिखा है.
आशा है के हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको बेहद अच्छी लगी होगी. और ये आपके आने वाले जीवन में काम भी आएगी.