हमारे अनुभव -शायटिका (ग्रधृसी ) रोग में जो अनेक रोगियों ने अपनाकर लाभ लिया वायु के बढ़ जाने से शरीर में जब वायु के साथ संयोग होता है ,तब दोनोँ की विक्रति ही शायटिका का रूप धारण कर लेती है |प्रारम्भ में वेदना कुल्हे में ही होती है |इसके बाद दर्द का स्थान कटी ,उरु प्रदेश ,घुटने ,जंघा और पैर …
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