काढ़ा बनाने की सही विधि
आयुर्वेद में अनेक रोग काढ़ा देकर सही कर दिए जाते हैं परन्तु अगर काढ़ा बनाने की सही विधि ना मालुम हो तो ये फायदे की जगह नुकसान दे सकता है जैसे काढ़ा अगर शीतल हो जाए और फिर इसको औटा लिया जाए तो ये विष के समान हो जाता है. ऐसे ही कुछ नियम है काढ़े के जिनको अपना कर आप बने हुए काढ़े को अधिक प्रभावशाली कर इसका जल्दी ही प्रभाव ले सकते हैं. आइये जाने.
काढ़ा बनाने की सही विधि.
4 ग्राम दवा को 64 ग्राम पानी में डालकर हलकी अग्नि पर औटायें. औटाते समय काढ़े के बर्तन को ढकना नहीं चाहिए. ढकने से काढ़ा भारी हो जाता है. जब 8 ग्राम पानी शेष रह जाए तब उतर कर छान लें. मतलब जितनी दवा हो उससे 16 गुणा जल में काढ़ा पकाएं. आधा, चौथाई अथवा आठवां भाग जैसा रखना हो वैसा रखो.
(किस काढ़े में कितना जल रखना है ये जानने के लिए लेखक का दूसरा लेख यहाँ से क्लिक कर के पढ़ें – कुल सात प्रकार के काढ़े और इनको बनाने की विधि)
काढ़ा बनाते समय बर्तन का चुनाव
काढ़ा लोहे के, मिटटी के या फिर कलईदार बर्तन में बनाना चाहिए. कलईदार बर्तन वो होता है जैसे कांसे या ताम्बे के बर्तन को खरीद कर उसको इस्तेमाल करने से पहले हम कली करवाते हैं. उसको ही कलईदार बर्तन कहा जाता है. बर्तन का चुनाव काढ़ा बनांते समय बेहद महत्वपूर्ण है.
काढ़ा बनाते हुए सावधानियां
बनते हुए काढ़े को बीच बीच में छेड़ना नही है ना ही किसी बर्तन वगैरह से उसको चलाना है. काढ़ा बनाने वाली जगह शुद्ध होनी चाहिए. ज़मीन पर गिरे हुए काढ़े को उठाना नहीं है.काला, नीला, कड़ा, लाल, झागदार, जला हुआ, कच्चा या मुर्दे जैसी बदबू वाला काढ़ा विष के समान होता है और रोग को असाध्य कर देता है. जिस काढ़े में दवा जैसी गंध आये उसी को पीना चाहिए. ऐसा काढ़ा अमृत समान है.
काढ़ा पीने में सावधानी.
पाचन काढ़ा रात को, शमन काढ़ा दोपहर पहले, दीपन दोपहर के बाद, संतर्पण और शोधन सवेरे ही प्रभात में देना उचित है. काढ़े के प्रकार जानने के लिए ऊपर बताया गया लेखक का दूसरा लेख ज़रूर पढ़ें. काढ़ा हमेशा सुहाता सुहाता गर्म पीना चाहिए. काढ़ा पिला कर बर्तन को उल्टा रख देना चाहिए. काढ़ा पीने के एक घंटे बाद तक, कुछ भी खाना पीना नहीं है प्यास लगने पर भी पानी नहीं पीना. काढ़ा हमेशा ताज़ा ही पीना चाहिए, दोबारा औटाया हुआ काढ़ा विष के समान हो जाता है.
काढ़े में मिलावट.
अगर काढ़े में कुछ मिलाना हो जैसे अगर काढ़े में खांड डालनी हो तो वात रोग में काढ़े की चौथाई; पित्त रोग में आठवां भाग और कफ रोग में सोलहवां भाग डालों. शहद मिलाना हो तो पित्त रोग में सोलहवां भाग, वात रोग में आठवां भाग और कफ रोग में चौथा भाग डालों. अगर जीरा, गूगल, जवाखार, सेंधानोन, शिलाजीत, हींग, त्रिकुटा (सोंठ मिर्च पीपर)ये डालने हो तो तीन चार माशे डालो. अगर दूध, घी, तेल, गुड,मूत्र या कोई पतली चीज डालनी हो तो तोले भर डालनी चाहिए.
बीमार रोगी को जब वात, पित्त, कफ, रस, रक्त के संचय से हुआ बुखार, जब अच्छी तरह पक जाए तब काढ़ा देना चाहिए.