बिच्छू घास को अंग्रेजी में नेटल (Nettle ) कहा जाता है. इसका बॉटनिकल नाम अर्टिका डाइओका ( Urtica dioica) है. कुमाऊंनी में इसे सिसूण कहते हैं. वह विशुद्ध कुमाऊंनी शब्द है. बिच्छू घास उत्तराखंड और मध्य हिमालय क्षेत्र में होती है. यह घास मैदानी इलाकों में नहीं होती. बिच्छू घास में पतले कांटे होते हैं. यदि किसी को छू जाये तो इसमें बिच्छू के काटने जैसी पीड़ा होती है और बहुत लगने से सूजन आ जाती है. इसका प्रयोग सजा देने के लिए भी होता रहा है.
बिच्छू घास (Nettle) किस काम आती है?
बुखार आने, शरीर में कमजोरी होने, तंत्र-मंत्र से बीमारी भगाने, पित्त दोष, गठिया, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकड़न और मलेरिया जैसे बीमारी को दूर भागने में उपयोग करते हैं.
बिच्छू घास की पत्तियों पर छोटे-छोटे बालों जैसे कांटे होते हैं. पत्तियों के हाथ या शरीर के किसी अन्य अंग में लगते ही उसमें झनझनाहट शुरू हो जाती है, जो कंबल से रगड़ने या तेल मालिश से ही जाती है. अगर उस हिस्से में पानी लग गया तो जलन और बढ़ जाती है.
बिच्छू घास के बीजों को पेट साफ करने वाली दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है
पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी साग-सब्जी भी बनायी जाती है. इसकी तासीर गर्म होती है और यदि हम स्वाद की बात करे तो पालक के साग की तरह ही स्वादिष्ट भी होती है इसमें Vitamin A,B,D , आइरन (Iron ) , कैल्सियम और मैगनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है. माना जाता है कि बिच्छू घास में काफी आयरन होता है. जिसे हर्बल डिश कहते हैं.
आम तौर पर दो वर्ष की उम्र वाली बिच्छू घास को गढ़वाल में कंडाली व कुमाऊं में सिसूण के नाम से जाना जाता है. अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है. बिच्छू घास स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभप्रद है. इसमें ढेर सारे विटामिन और मिनरल्स हैं. इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइट्रेड, एनर्जी, कोलेस्ट्रोल जीरो, विटामिन ए, सोडियम, कैल्शियम और आयरन हैं.
बिच्छू घास की दवा से बुखार का इलाज
अगर सब कुछ उम्मीद के मुताबिक रहा तो जल्द बुखार की एक और दवा का इजाद हो जाएगा. यह दवा होगी बिच्छू घास. यह घास पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है. अगर इस पर जारी परीक्षण सफल रहे तो उससे जल्द ही बुखार भी भगाया जा सकेगा. वैज्ञानिक इससे बुखार भगाने की दवा तैयार करने में जुटे हैं. प्राथमिक प्रयोगों ने बिच्छू घास के बुखार भगाने के गुण की वैज्ञानिक पुष्टि कर दी है.