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द्राक्षारिष्ट बनाने की विधि और इसके अनमोल फायदे.

द्राक्षारिष्ट बनाने की विधि और इसके अनमोल फायदे.

Draksharisht banane ki vidhi aur iske fayde.

Health Information. Ayurveda medicine

द्राक्षारिष्ट का सेवन करने से मुख से कफ के साथ खून आना, उर:क्षत, बवासीर, उदावर्त, गोला, पेट के रोग, कृमि रोग, खून के दोष, फोड़े फुंसी, नेत्र रोग, सिर के रोग, गले के रोग नष्ट होते हैं. इस से अग्नि वृद्धि होती है, भूख लगती है, खाना हज़म होता है और दस्त साफ़ होते हैं.

यहाँ हम जो इसको बनाने की विधि बता रहें हैं यह आयुर्वेद की असल विधि है जो सबसे उत्तम है. इस विधि से बना हुआ द्राक्षारिष्ट बहुत गुणकारी है.

आइये जानते हैं द्राक्षारिष्ट बनाने की विधि.

सवा सेर मुनक्के लीजिये, इनके बीज निकाल लीजिये. एक कलईदार बर्तन (कलईदार वो बर्तन होता है जैसे ताम्बे या पीतल या कांसे के बर्तन को इस्तेमाल करने से पहले एक बार कली करवाते हैं, उसको कलईदार बर्तन कहते हैं. इन बर्तनों को बिना कली के इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. अन्यथा ये भी aluminium और स्टील की तरह नुक्सान दायक हो हाते हैं). तो कलई दार बर्तन में बीज निकले हुए मुनक्को को डाल दीजिये. अभी इसमें दस सेर पानी डाल दीजिये. इसको मंद आग पर पकाएं. जब एक चौथाई पानी बच जाए तो उसको उतार कर ठंडा कर लीजिये. इसमें सवा सेर मिश्री मिला दीजिये. अभी इसके बाद 2 तोले दालचीनी, छोटी इलायची के बीज 2 तोले, नागकेशर 2 तोले, तेजपात 2 तोले, बायवडिंग 2 तोले, फूल प्रियंगु 2 तोले, कालीमिर्च 1 तोला, और छोटी पीपर 1 तोला, इन सबको जौ कुट करके उसी मुनक्कों के मिश्री मिले काढ़े में मिला दें. इसके बाद एक चीनी या कांच के बर्तन में चन्दन और कपूर की धूनी दे कर (नीचे में चन्दन और कपूर जला दीजिये, इसका धुआं बर्तन को उल्टा कर के इसमें जाने दीजिये – यही धूनी देना है) बर्तन में धूनी दे कर यह सारा मसाला भर दें. इसके ऊपर से ढकना बंद करके कपड मिटटी करके अच्छे से बंद कर दो हवा भी ना जा सके. फिर इसको एक महीने ऐसी जगह रखो जहाँ दिन में धुप और रात को ओस लगे. कब महीना भर हो जाए, मुंह खोल कर सबको मथ लो मक्खन की तरह, और छान कर बोतलों में भर दो और ढक्कन लगा दो. यही सुप्रसिद्ध “द्राक्षारिष्ट” है. और ध्यान रहे इस विधि से बना द्राक्षारिष्ट कभी बिगड़ता नहीं.

द्राक्षारिष्ट सेवन की मात्रा.

इसकी मात्रा 6 ग्राम से 25 ग्राम तक की है. इसे अकेले ही या “लवंगादी चूर्ण” और “जातिफलादी चूर्ण” सवेरे शाम दे कर, दोपहर के बारह बजे शाम के 4 बजे, और रात को दस बजे चाटना चाहिए.

इस अकेले से ही उर:क्षत रोग नष्ट हो जाता है. अगर काफ के साथ हर बार खून आता हो, तो इसे हर दो दो घंटे पर देना चाहिए. मुख से खून आने को यह फ़ौरन रोक देता है. इसका सेवन करने से बवासीर, उदावर्त, गोला, पेट के रोग, कृमिरोग,खून के दोष, फोड़े फुंसी, नेत्र रोग, सिर के रोग, और गले के रोग भी नष्ट हो जाते हैं. इससे अग्नि वृद्धि होती है, भूख लगती है,खाना हज़म होता है और दस्त साफ़ होते हैं.

द्राक्षारिष्ट बनाने की अन्य विधि.

इस द्राक्षारिष्ट के सेवन करने से छाती का दर्द, छाती के भीतर के घाव, श्वांस, खांसी, यक्ष्मा, अरुचि, प्यास, दाह, गले के रोग, मन्दाग्नि, तिल्ली और ज्वर आदि रोग नष्ट हो जाते हैं. आइये जाने इसको बनाने की विधि.

बिना बीज के बड़े मुनक्के सवा सेर ले कर चार गुने जल में डाल कर, कलई दार बर्तन में मंद अग्नि पर पकाएं, जब एक चौथाई पानी बच जाए  तो उतार कर मल छान लीजिये. फिर इस में पांच सेर अच्छा गुड मिला दीजिये. और तज, इलायची, नागकेशर, महंदी के फूल, कालीमिर्च, छोटी पीपर और बाय वडिंग, दो दो तोले ले कर, महीन पीस छान कर उसी में डाल दो और कलई दार बर्तन में डाल कर फिर से औटाओ. औटाते समय इसको कडछी से हिलाते रहें अन्यथा ये गुठली से हो जायेंगे. जब औट जाए तो इसको कांच के बर्तन में भर लीजिये.

इसके सेवन की मात्रा 10 ग्राम से 50 ग्राम तक की है. रोगी को बलाबल देख कर मात्रा मुक़र्रर करनी चाहिए.

विशेष.

द्राक्षारिष्ट बने बनाये बाज़ार में मिल जाते हैं, अगर आप बाज़ार से लेने जाएँ तो कोशिश करो के बैद्यनाथ फार्मेसी का लेवें. इस कंपनी की गुणवत्ता अन्य कंपनियों के मुकाबले काफी अच्छी है. बाकी हम किसी का प्रचार नहीं करते. उपरोक्त जानकारी सिर्फ ज्ञान बढाने के उद्देश्य से दी गयी है. अगर आपको इन दवाओं का उपयोग करना हो तो अपने वैद से परामर्श कर के शुरू करें.

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