अनन्त-मूल (कृष्णा सारिवा) है अनमोल ! सम्भव है सिरदर्द से एड्स तक का उपचार..!!!
अनन्तमूल / Anantmul /Hemidesmus,Indian sarsaparilla के औषधिय गुण और परिचय :-
अनन्तमूल समुद्र के किनारे वाले प्रदेशों से लेकर भारत के सभी पहाड़ी प्रदेशों में बेल (लता) के रूप में प्रचुरता से मिलती है। यह सफेद और काली, दो प्रकार की होती है, जो गौरीसर और कालीसर के नाम से आमतौर पर जानी जाती है। संस्कृत में इसे श्वेत सारिवा और कृश्ण सारिवा कहते हैं। इसकी बेल पतली, बहुवर्षीय, जमीन पर फैलने वाली, वृक्ष पर चढने वाली और 5 से 15 फुट लंबी होती है। काले रंग की चारों ओर फैली शाखाएं उंगली के समान मोटी होती हैं, जिन पर भूरे रंग के रोम लगे होते हैं। पत्ते एक दूसरे के सामने अंडाकार, आयताकार, 1 से 4 इंच लंबे सफेद रंग की धारियों से युक्त होते हैं, जिन्हें तोड़ने पर दूध निकलता है। इसके फूल छोटे, सफेद रंग के, हरापन लिए, अंदर से बैगनी रंगयुक्त, गंध रहित मंजरियों में लगते हैं। लौंग के आकार के पांच पंखुड़ीयुक्त फूल शरद ऋतु में लगते हैं। छोटी, पतली अनेक फलियां अक्टूबर-नवम्बर माह में लगती हैं, जो पकने पर फट जाती हैं। इसकी जड़ से कपूर मिश्रित चंदन की-सी गंध आती है। सुंगधित जड़ें ही औषधीय कार्य के लिए श्रेष्ठ मानी जाती हैं। बेल (लता) की ताजा जड़ें तोड़ने पर दूध निकलता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
भाषा – नाम
संस्कृत – सारिवा, अनन्ता, गोपी, गोप कन्या।
हिंदी -अनन्तमूल।
मराठी -श्वेत उपलसरी ।
गजराती -उपलसरी, कारडियों, कुंडेर।
बंगाली -श्यामलता, अनन्तमूल, सरिवा
पंजाबी -अनन्तमूल
अंग्रेजी -हेमिडेस्मस, इंडियन- सरसापरिला
लैटिन -हेमिडेस्मस इंडिकस
आयुर्वेदिक मतानुसार अनन्तमूल मधुर, शीतल, स्निग्ध, भारी, कड़वी, मीठी, तीखी, सुगंधित, वीर्यवर्द्धक (धातु का बढ़ना), त्रिदोषनाशक (वात, पित्त और कफ), खून को साफ करने वाला (रक्तशोधक), प्रतिरोधक तथा शक्ति बढ़ाने वाली होती है। यह स्वेदजनक (पसीना लाने वाला), बलकारक, मूत्र विरेचक (पेशाब लाने वाला), भूखवर्द्धक, त्वचा रोगनाशक, धातुपरिवर्तक होने के कारण अरुचि,बुखार, खांसी, रक्तविकार (खून की खराबी), मंदाग्नि (अपच), जलन, शरीर की दुर्गंध, खुजली, आमदोष, श्वांस, विष, घावऔर प्यास में गुणकारी है।
मात्रा :
अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम। पिसी हुई लुग्दी (पेस्ट) 5 से 10 ग्राम।
सिरदर्द / Headache relief :-
- अनन्तमूल की जड़ को पानी में घिसने से बने लेप को गर्म करके मस्तक पर लगाने से पीड़ा दूर होती है।
- लगभग 6 ग्राम अनन्तमूल को 3 ग्राम चोपचीनी के साथ खाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
दाह (जलन) :-
अनन्तमूल चूर्ण को घी में भूनकर लगभग आधा ग्राम से 1 ग्राम तक चूर्ण, 5 ग्राम शक्कर के साथ कुछ दिन तक सेवन करने से चेचक, टायफायड आदि के बाद की शरीर में होने वाली गर्मी की जलन दूर हो जाती है।
ज्वर (बुखार) :-
अनन्तमूल की जड़, खस, सोंठ, कुटकी व नागरमोथा सबको बराबर लेकर पकायें, जब यह आठवां हिस्सा शेष बचे तो उतारकर ठंडा कर लें। इस काढे़ को पिलाने से सभी प्रकार के बुखार दूर होते हैं।
विषम ज्वर (टायफाइड) / Typhoid :-
अनंनतमूल की जड़ की छाल का 2 ग्राम चूर्ण सिर्फ चूना और कत्था लगे पाने के बीड़े में रखकर खाने से लाभ होता है।
वात-कफ ज्वर :-
अनन्तमूल, छोटी पीपल, अंगूर, खिरेंटी और शालिपर्णी (सरिवन) को मिलाकर बना काढ़ा गर्म-गर्म पीने से वात का बुखार दूर हो जाता है।
बालों का झड़ना/Hair loss :-
2 ग्राम अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण रोजाना खाने से सिर के बाल उग आते हैं और सफेद बाल काले होने लगते हैं।
खूनी दस्त :-
अनन्तमूल का चूर्ण 1 ग्राम, सोंठ, गोंद या अफीम को थोड़ी-सी मात्रा में लेकर दिन में सुबह और शाम सेवन करने से खूनी दस्त बंद हो जाता है।
मूत्र के साथ खून का आना :-
अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 5 ग्राम से 6 ग्राम को गिलोय और जीरा के साथ लेने से जलन कम होती है और पेशाब के साथ खून आना बंद होता है।
कमजोरी/Weakness :-
अनन्तमूल के चूर्ण के घोल को वायविडंग के साथ 20-30 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है।
प्रदर रोग/Leucorrhoea :-
5 – 6 ग्राम अनन्तमूल के चूर्ण को पानी के साथ प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से प्रदर में फायदा होता है।
पेशाब का रंग काला और हरा होना :-
अगर पेशाब का रंग बदलने के साथ-साथ गुर्दे में भी सूजन हो रही हो तो 5 से 6 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण गिलोय और जीरे के साथ देने से लाभ होता है।
होठों का फटना / Cracked lips :-
अनन्तमूल की जड़ को पीसकर होठ पर या शरीर के किसी भी भाग पर जहां पर त्वचा के फटने की वजह से खून निकलता हो इसका लेप करने से लाभ होता है।
एड्स /AIDS :-
अनन्तमूल का फांट 40 से 80 मिलीलीटर या काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर प्रतिदिन में 3 बार पीयें।
अनन्तमूल को कपूरी, सालसा आदि नामों से जाना जाता है। यह अति उत्तम खून शोधक है। अनन्तमूल के चूर्ण के सेवन से पेशाब की मात्रा दुगुनी या चौगुनी बढ़ती है। पेशाब की अधिक मात्रा होने से शरीर को कोई हानि नहीं होती है। यह जीवनी-शक्ति को बढ़ाता है, शक्ति प्रदान करता है। यह मूत्र विरेचन (मूत्र साफ करने वाला), खून साफ करना, त्वचा को साफ करना, स्तन्यशोध (महिला के स्तन को शुद्ध करना), घाव भरना, शक्ति बढ़ाना, जलन खत्म करना आदि गुणों से युक्त है। इसका चूर्ण 50 मिलीग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह शाम खायें। यह सुजाक जैसे रोगों को दूर करता है।”
गठिया रोग का इलाज /Arthritis Treatment :-
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अन्तमूल के रोजाना सेवन से Arthritis रोग में उत्पन्न भोजन की अरुचि (भोजन की इच्छा न करना) दूर हो जाता है। Arthritis रोग में अनन्त की जड़ को फेंटकर 40 मिलीलीटर रोजाना सुबह-शाम रोगी को सेवन कराने से Arthritis रोग ठीक होता है।
गंडमाला (Scrofulous) :-
अनन्तमूल और विडंगभेद को पीसकर पानी में मिलाकर काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने और गांठों पर लगाने से गंडमाला (गले की गांठे) दूर हो जाती हैं।