आज हम आपको अरणी छोटी के बारे में विस्तार से बताने जा रहें हैं. आइये जाने इसकी पहचान, गुण धर्म, प्रयोग मात्रा एवं प्रयोग की विधि.
अरणी छोटी का वानस्पतिक नाम: Clerodendrum Phlomidis Linn. f.
Syn- Volkameria Multiflora Burm f.
कुल – Verbenaceae
English Name – Wind Killer
संस्कृत – क्षुद्राग्निमंथ, अग्निमंथ लघु , लघुमंथ, अरणिका, अग्निमंथिनी
हिंदी – छोटी अरनी, अरनी लघु , टेकार, उरनी,
उर्दू- अरणी , (Arni)
उड़िया- होंतारी (Hontaari), वाताघ्नी (Vataghni)
कन्नड़- तग्गी (Taggi), ताग्गिगीडा
गुजरती- अरणी , (Arni)
तमिल- तालुडालाई (Taludalai), थलांजी (Thalanji), तक्कारी (Takkari)
तेलगु- तलुकि (Taluki), तक्कोलामु (Takkolamu),
बंगाली- अरणी , (Arni), गानियारी (Ganiyaari),
मराठी- टंकाली (Tankali), ऐरनमूल (Airanmula)
मलयालम- तिरुतालि (Tirutali)
अरनी का परिचय :
अरनी की दो जातियां होती हैं। छोटी और बड़ी। बड़ी अरनी के पत्ते नोकदार और छोटी अरनी के पत्तों से छोटे होते हैं। छोटी अरनी के पत्तों में सुगंध आती हैं। लोग इसकी चटनी और सब्जी भी बनाते हैं। श्वासरोग वाले को अरनी की सब्जी अवश्य ही खाना चाहिए।
बड़ी अरनी के विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत अग्निमंथ, गाणिकारिका, तकीर्ण
हिंदी अरनी और अगेधु गनियार
बंगला गनीर या आगगन्त
गुजराती अरणी
मराठी एंरण, ताकली, टाकली
कर्नाटकी नरुबल
पंजाबी अगेथु
तेलगू तिक्कली, चट्टु, निलिचेटटु
लैटिन केलरोडेन्ड्रम प्लोमोइडिस्
रंग : अरनी के पत्ते हरे और फूल सफेद होते हैं।
स्वाद : यह कड़वी होती है।
स्वरूप : अरनी के पत्ते गोल और खरखरे होते हैं, फल छोटे-छोटे करौंदों के फूल के समान होते हैं इसके दो भेद होते हैं। छोटी अरनी और बड़ी अरनी।
स्वभाव : यह गर्म प्रकृति की होती है।
गुण :बड़ी अरनी का पेड़ : यह तीखा, गर्म, मधुर, कड़वा, फीका और पाचनशक्तिवर्द्धक होता है तथा वायु, जुकाम, कफ, सूजन, बवासीर, आमवात, मलावरोध, अपच, पीलिया, विषदोष और आंवयुक्त दस्त आदि रोगों में लाभकारी है।
छोटी अरनी का पेड़ : छोटी अरनी, बड़ी अरनी के समान ही गुणकारी होती है यह वात-द्वारा उत्पन्न हुई सूजन का नाश करती है।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. सूजन :
• बड़ी अरनी के पत्तों को पीसकर इसकी पट्टी सूजन पर बांधना चाहिए। इससे सूजन ठीक हो जाती है।
• अरनी की जड का 100 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम दोनों समय पीने से पेट का दर्द, जलोदर और सभी प्रकार की सूजन मिट जाती है।
• अरनी की जड़ और पुनर्नवा की जड़ दोनों को एक साथ पीसकर गर्म कर लेप करने से शरीर की ढीली पड़ी हुई सूजन उतर जाती है।
2. शीतज्वर : बड़ी अरनी की जड़ को मस्तक से बांधना चाहिए। इससे शीतज्वर नष्ट हो जाता है।
3. स्तन में दूध की वृद्धि : छोटी अरनी की सब्जी बनाकर प्रसूता महिलाओं को खिलाने से उनके स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।
4. बाघ के काटने पर : बड़ी अरनी के पत्तों को नमक के साथ पीसकर बांधना चाहिए। बाघ के काटने के घाव में लाभ मिलता है।
5. त्रिदोष (वात, कफ और पित्त) गुल्म :
• बड़ी या छोटी अरनी की जड़ों के 100 मिलीलीटर गर्म काढ़े में 30 ग्राम गुड़ मिलाकर देने से त्रिदोष गुल्म दूर हो जाते हैं।
• बड़ी या छोटी अरनी के गर्म काढे़ को गुड़ डालकर पिलाना चाहिए। इससे वात, पित्त और कफ नष्ट हो जाता है।
6. पक्षाघात (लकवा) : प्रतिदिन काली अरनी की जड़ के तेल का लेप करके सेंकना चाहिए। इससे पक्षाघात, जोड़ों का दर्द और सूजन नष्ट हो जाती है।
7. बच्चों के पेट के कीड़े : छोटी अरनी के पत्तों का रस लगभग 40 मिलीलीटर की मात्रा में बच्चों को पिलाने से उसके पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
9. हृदय की कमजोरी : अरनी के पत्ते और धनिये का 60-70 मिलीलीटर काढ़ा पिलाने से हृदय की दुर्बलता मिटती है।
10. उदर (पेट) रोग :
• अरनी की 100 ग्राम जड़ों को लेकर लगभग 470 मिलीलीटर पानी में धीमी आंच पर 15 मिनट तक उबालें। इसे 100 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 2 बार पीने से पाचनशक्ति प्रबल होती है। यह औषधि पौष्टिक भी है।
• अरनी के पत्तों का साग बनाकर खाने से पेट की बादी मिटती है।
छोटी अरनी के बारे में परिचय , एवं औषधीय परयोग और विधि निचे दी गई फोटो को देख कर जाने .
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