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आयुर्वैदिक भस्म और इस के प्रकार से जोड़ी सम्पूर्ण जानकारी !!!

आयुर्वेद में, निस्तापन (कैल्सिनेशन) से प्राप्त पदार्थों (औषधियों) को भस्म कहते हैं। 

आयुर्वेद में भस्म, एक ऐसा पदार्थ जिसे पकाकर (निस्तापन) प्राप्त किया गया, के रूप में परिभाषित किया गया है। भस्म (जलाये जाने के बाद बचा अवशेष या जल कर राख कर देने के बाद बची सामग्री) और पिष्टी (बारीक पीसी हुई मणि या धातु) को आयुर्वेद में जड़ी बूटियों के साथ औषधीय रूप में महत्वपूर्ण बीमारियों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इन औषधियों को बनाने की प्रक्रिया बहुत समय लेने वाली और जटिल है।

भस्म एक निस्तापन की प्रक्रिया है जिसमें मणि या धातु को राख में बदल दिया जाता है। रत्न या धातु की अशुद्धियों को दूर कर शुद्ध किया जाता है, फिर उन्हें जड़ी-बूटियों के अर्क में महीन पीसकर और भिगोकर चूर्ण के रूप में बनाया जाता है। इसी महीन चूर्ण का निस्तापन कर भस्म तैयार की जाती है।

भस्मीकरण

भस्मीकरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जैव असंगत पदार्थ को कुछ विशिष्ट प्रक्रियाओं या संस्कारों द्वारा जैव संगत बनाया जाता है। भस्मीकरण के इस संस्कार के उद्देश्य हैं:

  1. औषधि से हानिकारक पदार्थों का उन्मूलन
  2. औषधि के अवांछनीय भौतिक गुणों का संशोधन
  3. औषधि की विशेषताओं में से कुछ का रूपांतरण
  4. चिकित्सीय क्रिया में वृद्धि

भस्मीकरण के विभिन्न चरण

भस्म बनाने या भस्मीकरण की प्रक्रिया के कई चरण हैं। इन चरणों का चुनाव विशिष्ट धातु पर निर्भर करता है। भस्मीकरण की प्रक्रिया को नीचे विस्तार के बताया गया है।

शोधन – शुद्धिकरण

शोधन का प्रमुख उद्देश्य कच्चे माल से अवांछित हिस्सों और अशुद्धियों को अलग करना है। अयस्कों (Ores या कच्ची धातु) से प्राप्त धातु में कई दोष होता हैं जिसे शोधन क्रिया से हटाया जाता है। भस्म के संदर्भ में, शोधन का अर्थ है शुद्ध करना और अगले चरण के लिए उपयुक्त बनाना। इसमें भी दो चरण है (i) सामान्य प्रक्रिया (ii) विशिष्ट प्रक्रिया।

  • सामान्य प्रक्रिया: इसमें धातु की पत्तियों को लाल होने तक गर्म करके तेल, छाछ, गाय के मूत्र आदि में डुबोया जाता है। इस क्रिया को सात बार करते हैं।
  • विशिष्ट प्रक्रिया: इस क्रिया को कुछ विशिष्ठ धातुओं के लिया प्रयोग में लाया जाता है। जैसे जस्ते (जिंक) के शोधन के लिए उसको पिघलाकर 21 बार गाय के दूध में डाला जाता है।

मारन – पीसना या चूर्ण बनाना

मारन का अर्थ है मारना। इस प्रक्रिया में पदार्थ के रासायनिक या धातु रूप में परिवर्तन करना है ताकि वो अपनी धातु विशेषताओं और भौतिक प्रकृति को त्याग दे। संक्षेप में, मारन के बाद धातु बारीक पिसे हुए रूप में या अन्य रूप में परिवर्तित हो जाती है। धातु को मानव उपभोग के योग्य बनाने के लिए कई तरीके नियोजित किये जाते हैं। रस से भस्म बनाने के लिए अतिउत्तम पारा है, जड़ी-बूटियां उत्तम हैं और गंधक का उपयोग साधारण है। मारन की तीन विधियां हैं। (i) पारा (मरकरी) (ii) जड़ी-बूटियां (iii) गंधक (सल्फर)। इन्ही की उपस्थिति में धातु को गरम किया जाता है।

चालन – क्रियाशीलता या हिलाना या फेंटना

धातु को गरम करते समय उसको हिलाने की क्रिया को चालन कहते हैं। इसमें लोहे की छड़ी या किसी विशिष्ट पेड़-पौधे की डंडी का प्रयोग करते हैं। लोहे की छड़ी धातु की होने के कारण कई बार उत्प्रेरक का काम करती है, वहीँ पौधे की डंडी चिकित्सीय प्रभाव डालती है। जैसे नीम की छड़ी का प्रयोग जसद भस्म बनाते समय करते हैं जिसका उपयोग नेत्र उपचार में होता है, क्योंकि नीम रोगाणुरोधक (एंटीसेप्टिक) है और जस्ते के साथ मिलकर जो उत्पाद बनाता है वो श्रेष्ठ चिकित्सीय प्रभाव देता है।

धवन – धुलाई या धोना

इस प्रक्रिया में पिछले चरण से मिले उत्पाद को कई बार पानी से धोया जाता है। यह शोधन और मारन की क्रियाओं में प्रयुक्त कारकों को साफ़ करने के लिए किया जाता है, क्योंकि ये कारक अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता में प्रभाव डाल सकते हैं। इसलिए इन्हें पानी से धोया जाता है ताकि पानी में घुलने वाले कारक निकल जाएँ।

गलन – छनन या छानना

इस क्रिया में उत्पाद को बारीक कपडे के माध्यम से या उपयुक्त जाल की चलनी के माध्यम से छान लिया जाता है ताकि बड़े आकार की अवशिष्ट सामग्री को अलग किया जा सके।

पुत्तन – ताप या प्रज्वलन

पुत्तन का अर्थ है प्रज्वलन। भस्मीकरण की इस प्रक्रिया में, एक विशेष मिट्टी का बर्तन, शराव आम तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसके आधी गेंद के आकार वाले दो भाग होते हैं। शराव को सामग्री को गरम करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका उथलापन सामग्री को तेजी से और समान रूप से गर्म करने में उपयोगी है। सामग्री को इसमें रखने के बाद इसके दूसरे हिस्से को उल्टा करके ढक्कन के रूप में इसपर रख देते हैं। पुत्तन प्रक्रिया भस्म बनाने की क्रिया का एक महत्त्वपूर्ण चरण है। पुत्तन प्रक्रिया का वर्गीकरण प्रक्रिया की मूलभूत प्रकृति के अनुसार किया जाता है। जैसे

चंद्रपुत्त – धन्याराशिपुत्त – सूर्यापुत्त – भूगर्भपुत्त – अग्निपटुता

इन प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद उत्पाद को पूर्ण करने के लिए कुछ अन्य क्रियाओं को करना पड़ता है।

  • मर्दन – महीन चुर्ण बनाना: इसमें पुनः उत्पाद को खरल में पीसकर और महीन चूर्ण बनाया जाता है।
  • भावना: जड़ी-बूटियों के अर्क का लेप लगाना।
  • अमृतीकरण: विषहरण।
  • Sandharan: संरक्षण

स्म का वर्गीकरण

  1. धातु आधारित भस्म
  2. खनिज आधारित भस्म
  3. जडी बूटी सम्बन्धी (हर्बल) भस्म
  4. रत्न आधारित भस्म

भस्म के महत्व

  • सर्वोत्तम स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम क्षारीयता बनाए रखती है।
  • आसानी से अवशोषित और प्रयोग करने योग्य कैल्शियम आदि खनिज प्रदान करती है।
  • गुर्दे, आंत और यकृत का शोधन करती है।
  • हड्डियों और दांतों को स्वस्थ बनाए रखती है।
  • अनिद्रा और अवसाद को काम करती है।
  • ह्रदय गति को स्थिर रखती है।
  • शरीर में खनिज संतुलन बनाये रखती है।
  • शरीर में लोह मात्रा का संतुलन बनाये रखती है।
  • शरीर में अन्य धातु और औषधि के अवशेषों को हटाती है।
  • शरीर में हानिकारक अम्लों को निष्क्रिय करती है।
  • मुक्त कणों से नुकसान से शरीर की रक्षा करती है।

भस्मो की सूची

अकीक भस्म, अभ्रक भस्म, कसीस गोदंती भस्म, कसीस भस्म, कांत  लौह भस्म, कांस्य भस्म, कुक्कुटाण्ड  त्वक  भस्म, गोदंती भस्म, गोमेदमणि भस्म, जहरमोहरा भस्म, ताम्र  भस्म, त्रिवंग भस्म, नाग भस्म, नीलमणि भस्म, पारद भस्म, पीतल भस्म, पुखराज भस्म, प्रवाल भस्म, बंग भस्म, मंडूर भस्म, मल भस्म, माणिक्य भस्म, मुक्ता भस्म, मुक्ताशुक्ति भस्म, यशद भस्म  – जसद भस्म, राजवर्त भस्म, रौप्य भस्म – रजत भस्म, लौह भस्म, वैक्रान्त भस्म, शंख भस्म, शुभ्रा भस्म, श्रृंग भस्म, संजयसब भस्म, स्वर्ण भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, हजरुल यहूद भस्म (संगेयहूद भस्म ), हरताल भस्म, हरिताल गोदंती भस्म, हीरा भस्म  –  वज्र भस्म

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