क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) केवल एक रोग नहीं है बल्कि यह फेफड़ों के दीर्घकालीन रोगों को दर्शाने वाला चिकित्सीय शब्द है, इन रोगों का नाम ब्रोंकाइटिस और एम्फायसेमा है जो फेफड़ों में हवा के आने-जाने को सीमित करते हैं।
क्रोनिक अर्थात दीर्घकालीन या लगातार बना हुआ।
ब्रोंकाइटिस अर्थात ब्रांकाई (फेफड़ों में हवा आने-जाने के स्थान) में सूजन।
एम्फायसेमा अर्थात फेफड़ों में हवा के छोटे स्थानों और छोटी थैलियों (अल्वेओली) को क्षति होना।
पल्मोनरी अर्थात फेफड़ों को प्रभावित करने वाला।
रोग अवधि
सीओपीडी लम्बे समय तक बने रहने वाला (क्रोनिक) रोग है। लक्षणों की गंभीरता के आधार पर यह कुछ सप्ताहों से लेकर कई महीनों तक का हो सकता है। वर्तमान में सीओपीडी का कोई उपचार नहीं है। इस स्थिति का नियंत्रण औषधियों या जीवन शैली में परिवर्तन द्वारा किया जाना चाहिए।
सीओपीडी फेफड़ों की घातक बीमारी है जिसमें श्वास नलिकाएँ सूजकर सिकुड जाती हैं. इनकी सूजन में लगातार वृद्धि होती रहती है और कुछ समय बाद फेफड़े छलनी हो जाते हैं जिसे एँफयज़ीमा (emphysema) भी कहते हैं. यह रोग साँस लेने में दिक्कत के अनुभव से शुरू होता है और अंत में पूरे श्वसन तंत्र को प्रभावित कर देता है.
- रोग के लक्षण Symptoms of COPD
- सीओपीडी के कारण Causes of COPD in Hindi
- सीओपीडी- क्रोनिक अब्स्ट्रक्टिव लंग डिसीज़ Chronic Obstructive Lung Disease in Hindi
- सीओपीडी में लाभ देने वाली औषधियाँ Ayurvedic remedies useful in COPD in Hindi
रोग के लक्षण
सीओपीडी श्वसन तंत्र में होने वाले रोगों समूह है जिसमें श्वास की लंबाई में लघुता आ जाती है. इससे शरीर की ऑक्सिजन लेने की क्षमता में कमी आ जाती है तथा carbon-di-oxide की मात्रा खून में बढ़ जाती है. फेफड़ों में जलन की वजह से श्वास नलिकाएँ पिचक जाती हैं.
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इस रोग से श्वास नलिकायों में खिचाँव भी उत्पन्न होता है जिससे रोगी को श्वास लेने में कष्ट होता है तथा घबराहट भी महसूस होती है. यह लंबी अवधि तक चलने वाली बीमारी है जिसे पूर्णतयः ठीक नही किया जा सकता परंतु इसे बढ़ने से रोका जा सकता है.
सीओपीडी के कारण
सीओपीडी मुख्य रूप से धूम्रपान के सेवन से हो जाता है. दूषित वातावरण में प्रवास करने यह रोग उत्पन्न होता है. अधिक प्रदूषण, वातावरण में कीटनाशक या रंग रोगन के केमिकल्स को श्वास के ज़रिए अंदर लेने से शरीर में इस रोग ला सकती है. अधिक प्रदूषण, वातावरण में कीटनाशक या रंग रोगन के केमिकल्स को श्वास के ज़रिए अंदर लेने से शरीर में इस रोग ला सकती है.
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इस रोग से ग्रस्त व्यक्तियों को अनेक सावधानियाँ बरतनी चाहिए जिससे वे रिस्क फॅक्टर (risk factors) से दूर रहें. पूर्व लिखित रिस्क फॅक्टर्स के अलावा किचन में उठने वाले धुएं और मसालों की गंध से दूर रहें एवं बत्ती वाले केरोसिन के स्टोव का उपयोग न करें.
सीओपीडी में लाभ देने वाली औषधियाँ ( Ayurvedic remedies useful in COPD in Hindi )
सीतोपालदी चूर्ण: यह हर प्रकार की श्वसन संबंधित व्याधि के उपचार में प्रयोग होने वाली औषधि है. यह श्वास नलिकायों की जलन और सूजन को कम करते हुये रोगी को साँस लेने में सहयोग करती है . इसके साथ-साथ यह शरीर की रोग-प्रतिकारक क्षमता को बढ़ाती है.
अकक (Adhatoda vasica): यह श्वसन क्रिया में सहयोग देना वाला और इस तंत्र से संबंधित विभिन्न प्रकार के संक्रमणों को होने से रोकता है. Ayurvedic remedies for COPD, Ayurvedic remedies for COPD, Causes of COPD in Hindi
शृंग भस्म: इस भस्म का प्रयोग भी फेफड़ों में जमा श्लेष्मा को निकालने के लिए किया जाता है. यह टंकण भस्म से अधिक शक्तिशाली है तथा इससे छाती में मौजूद कफ को निकालने में सहायता करता है. छाती की दर्द , साँस लेने में दिक्कत और श्वास में आई लघुता को दूर करता है.
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मुलेठी: ( Glycyrhiza glabra ) इस औषधि का प्रयोग सूखी खाँसी के उपचार में किया जाता है जब रोगी का कफ आसानी से ना निकलता हो. यह पीली और हरी बलगाम को निकालने में अधिक सहायक् है.
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पुष्करमूल : (Inula racemosa) इस रोग से संबंधित सभी श्वसन संबंधी दिक्कतों से आराम दिलवाने में सक्षम है. यह गाढ़ी, सफेद और हरी तीनो प्रकार की बलगाम (कफ) को निकालने में समर्थ है. यह फेफड़ों में कफ के निर्माण को नियंत्रित करता है और श्वास लेने की क्रिया को भी सहयोग प्रदान करता है.
अभ्रक भस्म: इस भस्म के प्रयोग से इस रोग के द्वारा फेफड़ों में और अधिक नुकसान होने से रोका जाता है. इस भस्म के प्रयोग से उस स्थिति में सहयता मिलती है जहाँ श्लेष्मा और कफ को फेफड़ों से निकास बिना किसी रुकावट के हो जाता है. परंतु जहाँ कफ जमा हो और निकलता ना हो, उस स्थिति में इसका प्रयोग नही करना चाहिए अन्यथा कफ सूख कर फेफड़ों में जम जाता है और उनपर अभेद्य परत बना लेता है. परंतु प्रवाल पिशटी और मुलेठी के साथ इसका उपयोग लाभकारी हो सकता है. इस रोग में तीनो औषधियों की मात्रा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि ग़लत प्रयोग से बहुत नुकसान होने की संभावना है.
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अश्वगन्ध: ( Withania somnifera ): इस औषधि का प्रयोग इन रोगियों में ताक़त प्रदान करता है और थकावट तथा कमज़ोरी को दूर करता है.
टंकण भस्म: इस भस्म का प्रयोग सीओपीडी रोग के निवारण में किया जाता है. यह गाढ़ी श्लेष्मा को फेफड़ों से निष्कासित करने में सहयता देता है.
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यूकलिप्टस आयिल ( Eucalyptus oil ) के प्रयोग से भी इस बीमारी में लाभ होता है. इस रोग से monoterpenes नामक घटक के कारण रोग में लाभ मिलता है.
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eeucalyptus oil in copd hindiइससे जमी हुई कफ को फेफड़ों से बाहर निकालने में सहायता मिलती है. Echinacea और वाइल्ड इंडिगो (Wild indigo) तथा सीडर के मिश्रण को लेने से श्वसन संबंधी रोगों में बहुत लाभ मिलता है.