Friday , 15 November 2024
Home » Knowledge » क्या हम हिन्दू शाकाहारी है ? ( एक बार जरुर पढ़े )

क्या हम हिन्दू शाकाहारी है ? ( एक बार जरुर पढ़े )

[ads4]

क्या हम हिन्दू शाकाहारी है ? ( एक बार जरुर पढ़े )

पश्चिमी दुनिया के अनुसार मुख्य रूप से चार प्रकार के शाकाहारी होते हैं।

1. Lacto-ovo vegetarianism – वह लोग जो अण्डे और दूग्ध-उत्पाद खाते हैं लेकिन मीट, मच्छी नहीं खाते।

2. Lacto vegetarianism – वह लोग जो दूग्ध-उत्पाद खाते हैं हम हिन्दू जिन्हें शाकाहारी मानते हैं। यह लोग मीट, मच्छी, अण्डे नहीं खाते।

3. Ovo vegetarianism – वह लोग जो अण्डे तो खाते हैं मगर मीट, मच्छी और दूग्ध-उत्पाद नहीं खाते।

4. Veganism – लोग जो शुद्ध शाकाहारी होते हैं। यह लोग दूध तो क्या शहद भी नहीं खाते। इस के अनुसार हम हिन्दू जो शाकाहार में विश्वास रखते हैं लेक्टो-वेज़ेटेरियनिज़्म (Lacto vegetarianism) के अन्तरगत आते हैं। क्योंकि हम शहद, दूध और दूध से बने पदार्थों का सेवन करते हैं। जैसे- दही, पनीर, मक्खन, घी, मट्ठा, क्रीम आदि।

जेलेटिन (सरेस या श्लेश)

हमारे विदेशी मित्रों की बदौलत आजकल हम मूर्खों के बाज़ार में ऐसे बहुत से उत्पाद हैं जोकि गाय और सूअर के मांस से बने हैं। गलती शत-प्रतिशत हमारी है, क्योंकि बाज़ार में ये सब चोरी छुपे नहीं बिक रहा। लेकिन हमने ही अपनी आँखें बन्द कर रखी हैं, हमने कभी जानने की कोशिश ही नही की। जैसे कि “जेलेटिन” इसका प्रचलन आजकल बहुत बढ़ गया है और बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन आम आदमी यह नहीं जानता कि जेलेटिन (gelatin or gelatine) गाय और सूअर की हड्डी-खाल से बनता है। ग्लिसरीन और पेपसिन भी ज्यादातर जेलेटिन की तरह ही गाय-सूअर से बनते हैं।

इसी प्रकार के और बहुत से रसायन जोकि वास्तव में पशु के शरीर से बने हैं; कुछ-एक शुद्ध शाकाहारी आइस-क्रीमों में भी पाये जाते हैं।

बहुत-से साबुन भारतीय बाज़ार में पशुओं की चर्बी से युक्त हैं, जिनमें से कुछ अत्यन्त लोकप्रिय हैं। बहुत-से लोकप्रिय टूथ-पेस्ट भी ग्लिसरीन से युक्त हैं और ग्लिसरीन पर आँखें मून्द कर विश्वास नहीं किया जा सकता।

ग्लिसरीन भी वास्तव में जेलेटिन का ही दूसरा रूप है। गाय और सूअर की हड्डी और खाल को पानी में उबालने पर जो जेल जैसी परत ऊपर तैरती हुई बनती है, उसे जेलेटिन और उससे निचली परत को ग्लिसरीन कहते हैं। हालांकि पॆट्रोलियम से भी ग्लिसरीन बनाई जाती है।

हम ऐसी बहुत-सी दवाइयां खा चुके हैं या खाते हैं जोकि जेलेटिन से कोटेड हैं। आयुर्वेदिक औषिधी भी इससे अछूति नहीं है। “फिलहाल, स्थानीय (भारतीय) बाज़ार में हम सख़्त जेलेटिन कैप्सूल का प्रयोग करते हैं, उस जेलेटिन कैप्सूल में गोवंश की हड्डीयों से बना औषधीय स्तर का जेलेटिन होता है”।

हालांकि शाकाहारी जेलेटिन भी होती है, मगर बहुत मंहगी होती है, क्योंकि यह शाकाहारी जेलेटिन किसी ख़ास समुद्री घास से बनती है। शाकाहारी जेलेटिन को “कैराज़ीन या ज़ेलोज़ोन” कहते हैं। जोकि अधिकतर “अगर-अगर” नामक समुद्री वनस्पति से बनती है। जबकि साधारण जेलेटिन बूचड़-खाने की फेंकी हुई बेकार की या बहुत सस्ती, बड़ी-बड़ी हड्डीयों और छोटे-छोटे चमड़े के टुकड़ों वगैरा से बनती है।
शाकाहारी जेलेटिन बहुत मंहगी होती है ।

पिज़्ज़ा या पीज़ा

पिज़्ज़ा या पीज़ा (हार्ड-चीज़) पश्चिमी फैशन के मारे हुए हमारे हिन्दू भाई बड़े शौक से वेज़ पीज़ा खाते हैं। क्योंकि पीज़ा पर शाकाहार की हरी मुहर लगी होती है। लेकिन बिचारे मासूम ये नहीं जानते कि “वेज़ पीज़ा” नाम की कोई वस्तु इस संसार में है ही नही। क्योंकि पीजा के ऊपर चिपचिपाहट के लिए जो हार्ड चीज़ बिछाइ जाती है, उस हार्ड चीज़ में गाय की आँतें मिली हुई होती हैं। गाय की आँत डाले बिना हार्ड-चीज़ चिपचिपी नहीं बन सकती। पनीर या छैना को गाय की आँतों में पकाने से ही हार्ड-चीज़ बनती है, दूसरा कोई उपाय नहीं है। और बिना हार्ड चीज़ के कोई भी पीज़ा नहीं बन सकता अर्थात् सभी पीज़ा नॉन-वॆज़ (गाय के मांस से युक्त) होते हैं।

चिपचिपाहट के आलावा भी और बहुत से कारण है कि हार्ड चीज़ गौमांस युक्त होती है। सबसे पहले तो दूध को अधिक चर्बी-युक्त बनाने के लिए दूध में गाय की चर्बी मिलाते हैं फिर दूध से पनीर बनाने के लिए बछड़े की आँते दूध में डालते हैं; फिर पनीर को चीज़ में बदलने के लिए गाय की आँतें उसमें डालते हैं। फिर वह हार्ड-चीज़ सुगठित दिखे इसके लिए गाय की हड्डी का चूर्ण हार्ड-चीज़ में मिलाते हैं।

लेकिन हार्ड-चीज़ के आलावा अन्य चीज़ भी ज्यादातर गौमांस युक्त है। भारत में शायद अभी संभव नहीं है लेकिन विदेशी बाज़ार में इटली की “मासकरपोने क्रीम-चीज़” मिल जाती है जोकि केवल दुग्ध उत्पाद से बनी है (मासकरपोने आम चीज़ से 4-5 गुना मंहगी होती है)। कुछ ऐसी चीज़ कंपनी भी हैं जो गाय की आँतो के साथ-साथ गाय की हड्डी भी चीज़ में डालती हैं। गाय की हड्डी डालने से चीज़ देखने में इकसार लगती है (पीज़े में डलने से पहले)। मूर्खों को पढ़ने में दिक्कत न हो इसलिए पॆकिंग के ऊपर गाय की हड्डी को “कॆलसियम क्लोराईड” या “E 509” लिखा जाता है। हार्ड-चीज़ जैसी ही एक चीज़ होती जिसे परमिजान कहते हैं, कुछ लोगों को भ्रम है कि परमिजान शाकाहारी है, लेकिन ऐसा नही है। हाँ, शायद एक-आध कंपनी हैं जो कि गाय की आँतों की बजाए बकरे की आँत परमिजान-चीज़ में डालती हैं।

सफेद चीनी

आज भी चीनी सिर्फ “गाय+सूअर” की हड्डी से ही साफ की जाती है। मैं उसी चीनी की बात कर रहा हूँ जो हम प्रति दिन खाते हैं, ख़ास तौर से भारत में, क्योंकि विदेशों में बिना साफ की हुई (भूरी) चीनी बाज़ार में आसानी से मिल जाती है। हम भारतीयों को ही सफेद चीनी खाने की कुछ ज्यादा आदत है। भूरी चीनी में गन्ध भी होती है इसलिए कुछलोग इसे पसंद नहीं करते। डेढ़ सौ साल पहले तक चीनी शाहाहारी थी लेकिन शायद उस समय भारत में चीनी होती ही नहीं थी। 1822 में एक नये अविष्कार के बाद चीनी मांसाहारी होनी शुरु हो गई। पहले लकड़ी के कोयले से रगड़ कर चीनी साफ़ करते थे। लेकिन गाय-सूअर की हड्डी-खाल का कोयला चीनी को ज्यादा अच्छी तरह साफ करता है, इसलिए अब केवल गाय-सूअर की हड्डी के कोयले का प्रयोग चीनी साफ करने के लिए होता है।

वोदका

आपने कभी वोदका की सफाई पर ग़ौर किया? बहुत-सी रूसी वोदका गाय-सूअर की हड्डी से बने जेलेटिन से साफ की जाती है, अर्थात् हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए अभक्ष्य है।

चाँदी की वर्क

वर्क हम जो अपनी मिठाइयों को सजाने के लिए चाँदी की वर्क का इस्तेमाल करते हैं ये भी गोमांस से युक्त होती है। क्योंकि चाँदी को फैलाकर वर्क बनाने के लिए हथौड़ी से पीटा जाता है।

पनीर बनाने वाला एसिड 

हम जो पनीर बाज़ार से ख़रीद कर खाते हैं वो भी भरोसेमन्द नहीं है। क्योंकि दूध फाड़ कर पनीर बनाने का जो सबसे सफल रसायन है, जिसका इस्तेमाल अधिकांश पेशेवर लोग करते हैं। वो वास्तव में रसायन नहीं बल्कि गाय के नवजात शिशु का पाचन तन्त्र है। अगर हम पनीर बनाने के लिए दूध में नीम्बू का रस, टाटरी या सिट्रिक एसिड डालते हैं तो दूध इतनी आसानी से नहीं फटता जितना कि उस अंजान रसायन से, फिर घरेलू पनीर में खटास भी होती है, बाज़ार के पनीर की तुलना में जल्दी खट्टा या ख़राब हो जाता है। इस रसायन की यही पहचान है कि पनीर जल्दी ख़राब या खट्टा नही होता, और हमारी सबसे बड़ी यह समस्या यह है कि किसी भी लेबोटरी टेस्ट से ये नही जाना जा सकता कि पनीर को बनाने के लिए गाय के शिशु की आँतों का इस्तेमाल किया गया है।

क्योंकि गाय के शिशु की आँतें दूध के फटने पर पनीर से अलग हो कर पानी में चली जाती हैं। इसका बहुत कम (नहीं के बराबर) अंश ही पनीर में बचता है। यह पानी जो दूध फटने पर निकलता है इसे विदेशों में मट्ठा या छाज (why) कह कर बेचते हैं। प्रवासी हिन्दु भाई कृपा करके यह विदेशी मट्ठा कभी न ख़रीदें। इसलिए बाज़ारू पनीर (सभी प्रकार के पनीर) से भी सावधान रहें। दूध, क्रीम, मक्खन, दही तथा दही की तरह ही दूध से बने (खट्टे) उत्पादों के अतिरिक्त विदेशों में बिक रहे लगभग सभी अन्य दुग्ध-उत्पाद मांसाहारी हैं। ज्यादातर मरगारीन भी मांसाहारी ही है।

इ-नम्बर (E-Numbers) ऐसे रसायन जिनकों खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है, इनकी संख्या आज 3000 से ज्यादा है। ऐसे ही बहुत से अनगिनत रसायन, वास्तव में रसायन नही जीवों का अंश है, लेकिन उन्हें वैज्ञानिक नाम या नम्बर दे दिये गए हैं। जैसे कि आजकल बहुत से खाद्य उत्पादों पर जहां उत्पाद में शामिल (ingredients or contains) पदार्थों (घटकों) की सूचि होती है, उन में कुछ रंग या रंगों के नम्बर भी लिखे होते हैं और कहीं-कहीं इ-नंबर (“E” Numbers) जैसे- E509, E542, E630-E635 वगैरह सिर्फ नम्बर भी लिखे होते हैं। ये सभी No. और ये नाम – calcium stearate, emulsifiers, enzymes, fatty acid, gelatin, glycerol, glycine, glyceryl, glyceral, leucine, magnesium stearate, mono and diglyceri, monostearates, oleic acid, olein, oxystearin, palmitin, palmitic acid, pepsin, polysorbates, rennet, spermaceti, stearin, triacetate, tween, vitamin D3 हमारे लिए घातक हो सकते हैं। इन अन्जान नम्बरों और नामों से सदैव सावधान रहें। कोई भी ई-नंबर शाकाहारी है या मांसाहारी यह तो केवल वह कंपनी ही बता सकती है जिसने उसका उत्पाद या निर्माण किया है। क्योंकि एक ही ई-नंबर को कई तरह से बनाया जा सकता है। एक ही ई-नंबर कोई कंपनी शाकाहारी फार्मूले से बनाती है और दूसरी कंपनी मांसाहारी फार्मूले से।

इंसुलीन इंजेक्शन

मधुमेह का इंसुलीन इंजेक्शन भी गाय-सूअर से ही बनता है। अभक्ष्य या मांसाहारी वनस्पति आजकल तो वनस्पति भी नॉनवेज है। जब साधारण भारतीय वनस्पति से जुड़े जेनेटिक शब्द को सुनता है तो उसके दिमाग में संकर शब्द आता है। वह सोचता है कि जेनेटिक संकर जैसा ही कोई शब्द है, दो विभिन्न वनस्पितयों के जीन मिलाकार कोई नई नस्ल की वनस्पति तैयार करते होंगे। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। आज विश्व बाजार में सवा सौ से अधिक वनस्पतियां ऐसी हैं जोकि पशुओं से संकरित हैं। यानि मांसाहारी हैं। ख़ास तौर से मांसाहारी टमाटर, आलु, बैंगन, शिमला मिर्च, फूल गोभी, बन्द गोभी आदि अधिक प्रचलन में हैं। सब्जी को अधिक गूदेदार बनाने के उद्देश्य से अधिकतर सब्जियां मांसाहारी बनाई गई हैं अर्थात् उन सब्जियों के बीज में मछली, गाय, सूअर आदि के अंश मिलए जाते है। लेकिन आलु में उस कीड़े के अंश मिलाए जाते हैं जो कीड़ा आलु की फसल को खाता या ख़राब करता है। जिससे की वो कीड़ा उस सजातीय आलु को न खाए। इन मांसाहारी सब्जियों की एक पहचान यह है कि इनको पकाते समय सुगंध के बजाय दुर्गंध आती है। लेकिन कई बार दुर्गंध साधारण सब्जी से भी आती है, ख़ास तौर से दिल्ली जैसे महानगरों में, क्योंकि कुछ किसान गन्दे (नाले के) पानी से अपने खेत की सिंचाई करते हैं। लोग इन मांसाहारी सब्जियों के लिए जर्मनी को जिम्मेदार मानते हैं, क्योंकि वहीं से सब शुरु हुआ।

यदि आप शाकाहारी हैं तो विदेशी मसाले या फारमूले वाला कोई (या कोई भी चीज जिससे आप पूरी तरह परिचित न हों) उत्पाद न खाएँ। चाहे वह विश्व प्रसिद्ध लेबल वाले फिंगर चिप्स हो या लाल लेबल वाला कोला पेय।

केक में जेलेटिन का उपयोग अभी भारत के फ़ैशन में है। हालांकि आमतौर से सभी मीठे ब्रॆड और केक मरगारीन से युक्त होते हैं। लोग आमतौर से समझते हैं कि संस्कार हीन या अधकच्चे मक्खन को मरगारीन कहते हैं। लेकिन सच्चाई कुछ और है, जिस प्रकार भारत में कुछ लोग भैंस और सूअर की चर्बी को दूध में मिलाकर दूध को वसायुक्त बनाते हैं। इसी प्रकार विदेशों में होता है लकिन वहां भैंस तो होती नहीं इसलिए गाय और सूअर की चर्बी दूग्ध-उत्पादों में मिलाते हैं, विशेष रूप से मरगारीन में।
हमेशा याद रखें कि भारत में बिकने वाला दूध, दही, पनीर और मिठाई ही भारतीय हैं। घी, मक्खन और मरगारीन आदि भारत में बिकने वाले ज्यादातर डिब्बाबन्द या फॆक्ट्री दुग्ध उत्पाद के लिए कच्चा माल विदेशों से ही आता है।

3 comments

  1. good information

  2. Amul brand cheese is not made with animal ingredients. It is suitable for vegetarians.

  3. दिलीप सोनी

    क्या आप ने साकहार के बारे में जो अपना ग्यान प्रगट कीया हे उनसें तो यही शाबित होता हे की सब्जी से लेकर दूध तक की कोईं भी खाध पदार्थ में गाय और सुवर की आँते या हड़डी या चमडा का उपयोग किया जाता हे तो आप के जानकारी अनुशार जओ शाकाहरी हे वो तो कुत्छ भी वस्तु खा नहीं शकता तो क्या खाना चाहिए जईसे वो vegiterin हे उनकी का भी ज्ञान जअरूर जरूर दे ताकि हम अभक्ष्य भोजन ने बचे रहे बाकिआप की बातो से ते यइ लआगत हे की जो vegiteryan लोग हे वह पानी ही खाली पिए क्योंकि वह बारिश से मिलता हे बाकि सभी चीज़े नॉन वेज ही हे

  4. A good and aware knowledge in little space.

  5. बहुतेक सुंदर जानकारी मिली . पुराने तौर तरिके पुनः अपनाने कि जरूरत है.

  6. Pani vi sayad sakahari nehin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

DMCA.com Protection Status