Friday , 8 November 2024
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पीरियड्स या तेज़ Bleeding को रोकने का रामबाण आयुर्वेदिक उपाय – Bleeding kaise roke

पीरियड्स में तेज़ Bleeding को रोकने का रामबाण आयुर्वेदिक उपाय – Bleeding kaise roke.

Bleeding Kaise roke –  बहुत बार स्त्रियों को अत्यधिक मासिक आते हैं जिस से शरीर से बहुत खून निकल जाता है या फिर कई बार गर्भाशय में किन्ही विकारों के कारण भी खून निकलता रहता है. ऐसे में एक औषिधि बहुत रामबाण है जिस से गर्भ से हो रही Bleeding तुरंत रुक सकती है.

Bleeding kaise roke

Bleeding rokne ka upay – अपराजिता एक अदभुत दिव्य औषिधि है जो के रक्तस्त्राव को तुरंत रोकने की क्षमता रखती है, अपराजिता अक्सर लोग घरों में शोभा बढाने के लिए लगाते हैं, वर्षा ऋतू में इस पर नीले या सफ़ेद रंग के फूल आते हैं, यह बेल की भाँती बढती है, आपको करना ये है के इसके ताज़े पत्ते लेकर इसको कूट कर कपडे से छान कर रस निकाल कर रोगी को 10 से 15 ml में बराबार मिश्री मिला कर दिन में 2 से 3 बार देना है, रक्त तो ये प्रथम बार रोकने की क्षमता रखता है. बाकी अगर अधिक समस्याएँ हो तो इसका प्रयोग रोग रहने तक नियमित करें.

अपराजिता के फायदे

स्त्री रोगों में अपराजिता के फायदे –

गर्भ रोकने में अपराजिता – 5 ग्राम सफ़ेद अपराजिता छाल अथवा पत्ते लेकर बकरी के दूध में पीसकर छानकर तथा शहद मिलाकर पिलाने से गिरता हुआ गर्भ ठहर जाता है और कोई पीड़ा नहीं होती.

1 ग्राम सफ़ेद अपराजिता की जड़ को दिन में दो बार बकरी के दूध में पीस छानकर शहद मिलाकर कुछ दिनों तक खिलाने से गिरता हुआ गर्भ ठहर जाता है.

सुख प्रसव के लिए अपराजिता – अपराजिता की बेल को स्त्री की कमर में लपेट देने से शीघ्र ही प्रसव हो कर पीड़ा शांत हो जाती है.

पढ़ें – स्त्री रोगों के लिए Only Ayurved की स्त्री संजीवनी

मूत्र रोगों में अपराजिता के फायदे

अंडकोष वृद्धि – अपराजिता के बीजों को पीसकर गर्म कर लेप करने से अंडकोष की सूजन का शमन होता है.

मूत्रकृच्छ – 1 से 2 ग्राम अपराजिता मूल का चूर्ण गर्म पानी या दूध के साथ दिन में 2 या ३ बार प्रयोग करने से गठिया, मूत्राशय की जलन और मूत्रकृच्छ में लाभ होता है.

अश्मरी – पथरी – 5 ग्राम अपराजिता की  जड़ को चावलों के धोवन के साथ पीस छानकर कुछ दिन प्रातः और सायं पिलाने से मूत्राशय की पथरी कट कट कर निकल जाती है.

इसके अलावा अपराजिता का प्रयोग आधासीसी के दर्द, त्वचा रोग, जलोदर, तिल्ली, लीवर, हाथीपांव कंठ रोग इत्यादि में सफल प्रयोग हैं. यह इन रोगों में कभी हारती नहीं इसलिए इसको अपराजिता कहा जाता है.

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