पौधे और तमाम तरह की जड़ी-बूटियों को आदिवासी पूजा-पाठ में इस्तेमाल करते हैं। ग्रामीण अंचलों में इन्हीं सब जड़ी-बूटियों से रोगों का उपचार भी किया जाता है। आदिवासी जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल से पहले इनकी पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे जड़ी-बूटियों की क्षमता दुगुनी हो जाती है। इन जड़ी-बूटियों और उनके गुणों की पैरवी और पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी कर चुका है। चलिए, जानते हैं इन जड़ी-बूटियों और आदिवासियों के द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले विभिन्न नुस्खों के बारे में।
दूब घास- दूब को दूर्वा भी कहा जाता है। आदिवासियों के अनुसार इसका प्रतिदिन सेवन स्फूर्ति प्रदान करता है। थकान महसूस नहीं होती है। आदिवासी नाक से खून निकलने पर ताजी व हरी दूब का रस 2-2 बूंद नाक के नथुनों में गिराते हैं, जिससे नाक से खून आना बंद हो जाता है।
बेलपत्र- आदिवासियों के अनुसार बेलपत्र दस्त और हैजा नियंत्रण में दवा का काम करते हैं। शरीर से दुर्गंध का नाश करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
अर्जुन छाल- दिल के रोगों में अर्जुन सर्वोत्तम माना गया है। अर्जुन छाल शरीर की चर्बी को घटाती है। इसलिए वजन कम करने की औषधि के तौर पर भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
विदारीकंद- आदिवासी इसे पौरुषत्व और ताकत बढ़ाने के लिए उपयोग में लाते हैं।
लटजीरा- इसे अपामार्ग भी कहा जाता है। इसके सूखे बीजों को वजन कम करने के लिए कारगर माना जाता है। इसके तने से दातून करने से दांत मजबूत हो जाते हैं।
कनेर- कनेर को बुखार दूर करने के लिए कारगर माना जाता है। आदिवासी हर्बल जानकार सर्पदंश और बिच्छु के काटने पर इसका उपयोग करते हैं।
पत्तागोभी
पायोरिया में पत्तागोभी का प्रयोग ।
पत्तागोभी के कच्चे पत्ते 50 ग्राम नित्य खाने से पायोरिया व् दांतो के अन्य रोगो में लाभ होता हैं।
बाल गिरना – गंज में पत्तागोभी का प्रयोग।
पत्तागोभी के 50 ग्राम पत्ते खाने से गिरे हुए बाल उग आते हैं। बाल गिरते हो, गंज हो गयी हो तो पत्तागोभी के रस से बालो को तर करके मले और 10 मिनट बाद सर धोएं। नित्य कुछ सप्ताह तक करने से लाभ होगा।
घाव (अलसर) में पत्तागोभी का प्रयोग।
पत्ता गोभी का रस आधा गिलास, आधा गिलास पानी मिला कर पीने से कैसे भी घाव सही होते हैं। घावों पर इसकी पट्टी भी की जा सकती हैं।
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