शंखपुष्पी गुण पहचान और फायदे
Shankhpushpi gun pehchan aur fayde
शंखपुष्पी पर शंख की आकृति वाले सफ़ेद रंग के पुष्प आते है, अतः इसे शंखपुष्पी नाम दिया गया है। इसे क्षीर पुष्पी (दूध के समान श्वेत रंग के पुष्प लगने के कारण), मांगल्य कुसुमा (जिसके दर्शन करने से सदैव मंगल हो) भी कहा जाता है। इसे हिंदी में शंख पुष्प, शंखाहुली, कौड़िल्ला, बांग्ला में शंखाहुली, मराठी में संखोनी, गुजरती में शंखावली, कन्नड़ में शंखपुष्पी कहा जाता है। यह भारत के समस्त पथरीली भूमि वाले जंगलों में पायी जाती है।
शंखपुष्पी के गुण :–
शंखपुष्पी दस्तावर, मेधा के लिए हितकारी, वीर्य वर्धक, मानसिक दौर्बल्य को नष्ट करने वाली, रसायन, कसैली, गर्म, तथा स्मरण शक्ति , कान्ति बल और अग्नि को बढाने वाली एवम दोष, अपस्मार, भूत, दरिद्रता, कुष्ट, कृमि तथा विष को नष्ट करने वाली होती है। यह स्वर को उत्तम करने वाली, मंगलकारी, अवस्था स्थापक तथा मानसिक रोगों को नष्ट करने वाली होती है।
शंखपुष्पी की पहचान।
शंखपुष्पी पथरीली भूमि वाले जंगलों में वर्षा ऋतू में अपनी जड़ से पुनः उगने लगती है और शरद ऋतू में द्रवीभूत भूमि में घास के साथ फैली पायी जाती है। इसका क्षुप ऊपर की और उठकर नहीं बढ़ता अपितु भूमि पर पसरता हुआ विकास करता है। इसकी मूल की ग्रंथि से सूत्र जैसे महीन अनेक तने निकलकर भूमि पर फैलते चले जाते है। अतः इसका काण्ड या तना भाग मृदु रोमों की तरह भूमि पर फैला पाया जाता है। ये तने प्रायः एक से डेढ़ फ़ीट की लम्बाई तक फैलते हैं। इसकी जड़ अंगुली जितनी मोटी, एक से दो इंच तक लम्बी होती है और ये सिरे पर चौड़ी व् नीचे संकरी होती जाती है। इसकी छाल मोटी होती है, जो बाहर से भूरे रंग की व् खुरदुरी होती है। अंदर की छाल और काष्ठ के बीच से दूध जैसा एक स्त्राव निकलता है जिसकी गंध ताजे तेल जैसी दाहक व् चरपरी जैसी होती है। इसका तना व् उसकी अग्रशाखाएं सूतली जैसी पतली और सफ़ेद रोम कूपों से भरी रहती हैं। इसके पत्ते आधे से एक इंच लम्बे, चौथाई इंच चौड़े, तीन शिराओं युक्त गहरे हरे रंग के होते हैं। पत्तियों से मसलने पर मूली के पत्तों जैसी गंध आती है।
फूलों के हिसाब से शंखपुष्पी की तीन जातियां पायी जाती हैं – श्वेत, रक्त और नीलपुष्पी। इनमे सफ़ेद पुष्प वाली शंखपुष्पी ही औषधीय गुणों के रूप में सर्वोत्तम मानी जाती है। कुछ विद्वानो ने पीतवर्णी शंखपुष्पी का वर्णन भी किया है। रक्त शंखपुष्पी भी रक्ताभ श्वेत रंग की होती है अर्थात इस क्षुप के पुष्प हलके गुलाबी रंग के संख्या में एक या दो कनेर के फूलों से मिलती जुलती गंध वाले होते हैं। पुष्प चैत्र मास (अप्रैल) में सूर्योदय के उपरान्त पंक्तिबद्ध खिलते दिखाई देते हैं। मई से दिसम्बर तक के समय इसमें पुष्पों के उपरान्त छोटे छोटे कुछ गोलाई लिए भूरे रंग के, चिकने तथा चमकदार फल लगते हैं। बीज भूरे या काले रंग के एक और तीन धार वाले, दूसरी और ढाल वाले होते हैं। बीज के दोनों और सफ़ेद रंग की झाईं दिखाई पड़ती है। इसका क्षुप दिसम्बर से मई तक लगभग सूखा ही पड़ा रहता है।
शंखपुष्पी की शुद्धि पहचान।
सामान्य औषधीय प्रयोग के लिए श्वेत पुष्प वाली शंखपुष्पी ही उपयोग में लायी जाती है परन्तु श्वेतपुष्पी के साथ रक्त और नीलपुष्पी वाली शंखपुष्पियों की मिलावट अक्सर देखने को मिलती है। नील शंखपुष्पी नाम से जिस क्षुप की मिलावट इसमें रहती है, वो औषधीय रूप में इतनी प्रभावी नहीं है। इस क्षुप के मूल के ऊपर से 4 से १५ इंच लम्बी अनेक कर चारों तरफ फैलती है और पुष्प डंडी पर दो से तीन की संख्या में नीले रंग के पुष्प आते हैं।
इसके अतिरिक्त शंखपुष्पी में कालमेघ नामक क्षुप की मिलावट भी की जाती है क्यूंकि कालमेघ का क्षुप शंखपुष्पी से काफी मिलता जुलता होता है। इस पर भी सफ़ेद रंग के पुष्प आते हैं। परन्तु क्षुप की ऊंचाई, फैलने का क्रम व् पत्तियों की व्यवस्था अलग होती है। इसके क्षुप से नीचे की पत्तियां लम्बी व् ऊपर की छोटी होती हैं। वैसे इसके गुणधर्म भी शंखपुष्पी से काफी मिलते जुलते हैं।
शंखपुष्पी के फायदे।
शंखपुष्पी के क्षाराभ (एल्केलाइड) में मानसिक उत्तेज़ना शामक अति महत्वपूर्ण गुण विद्यमान है। इसके प्रयोग से प्रायोगिक जीवों में स्वत: होने वाली मांसपेशीय हलचलें (स्पॉन्टेनियस मोटर एक्टिविटी) घटती चली गयी।
उत्तेज़ना शामक
शंखपुष्पी का उत्तेज़ना शामक प्रभाव उच्च रक्तचाप को घटकर उसके सामान्य स्तर पर लाता है। प्रयोगों में ऐसा देखा गया है के भावनात्मक अवस्थाओं जैसे तनाव या अनिद्राजन्य उच्च रक्तचाप जैसी परिस्थितियों में शंखपुष्पी बहुत ही लाभकारी है।
तनाव नाशक
शंखपुष्पी आदत डालने वाले तनाव नाशक औषधियों (ट्रैंक्विलाइज़र) की तुलना में अधिक उत्तम और सौम्य है, क्यूंकि इसके रसायन तनाव का शमन करके मस्तिष्क की उत्तेज़ना शांत करते है और दुष्प्रभाव रहित निद्रा लाते है। यह हृदय पर भी अवसादक प्रभाव डालती है तथा हृदय की अनियमित तीव्र धड़कनों को नियमित करती है।
हाइपो थाइरोइड में
अवटु ग्रंथि (थाइरोइड ग्लैंड) के अतिस्राव (हाइपो थाइरोइड) से उत्पन्न कम्पन, घबराहट और अनिद्रा जैसी उत्तेजनापूर्ण स्थिति में शंखपुष्पी काफी अनुकूल प्रभाव डालती है। अवटु ग्रंथि से थायरो टोक्सिन के अतिस्राव से हृदय और मस्तिष्क से हृदय और मस्तिष्क दोनों प्रभावित होते हैं। ऐसी स्थिति में यह थाइरोइड ग्रंथि के स्त्राव को संतुलित मात्रा में बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शंखपुष्पी का सेवन थायरो टोक्सिकोसिस के नए रोगियों में एलोपैथिक की औषधियों से भी अधिक प्रभावशाली कार्य करती है। यदि किसी रोगी ने आधुनिक पैथी की एंटी थाइरोइड औषधियों का पहले सेवन किया हो और उनके कारण रोगी में दुष्प्रभाव उत्पन्न हो गए हों, तो शंखपुष्पी उनसे रोगी को मुक्ति दिला सकने में समर्थ है।
अनेक वैज्ञानिकों ने अपने प्रारंभिक अध्ययनों में पाया है के शंखपुष्पी के सक्रिय रसायन सीधे ही थाइरोइड ग्रंथि की कोशिकाओं पर प्रभाव डालकर उसके स्त्राव का पुनः नियमन करते है। इसके रसायनों की कारण मस्तिष्क में एसिटाइल कोलीन नामक अति महत्वपूर्ण तंत्रिका संप्रेरक हॉर्मोन का स्त्राव बढ़ जाता है। यह हॉर्मोन मस्तिष्क स्थिति, उत्तेज़ना के लिए उत्तरदायी केन्द्रों को शांत करता है। इसके साथ ही शंखपुष्पी एसिटाइल कोलीन के मस्तिष्क की रक्त अवरोधी झिल्ली (ब्लड ब्रेन वैरियर) से छनकर रक्त में मिलने को रोकती है, जिससे यह तंत्रिका संप्रेरक हॉर्मोन अधिक समय तक मस्तिष्क में सक्रिय बना रहता है।
दिमागी ताकत
प्राय: छात्र -छात्राओं के पत्रों में दिमागी ताकत और स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए गुणकारी ओषधि बताने का अनुरोध पढने को मिलता रहता है । छात्र- छात्रओं के अलावा ज्यदा दिमागी काम करने वाले सभी लोगों के लिए शंखपुष्पी का सेवन अत्यन्त गुणकारी सिद्ध हुआ है।
इसका महीन पिसा हुआ चूर्ण , एक-एक चम्मच सुबह- शाम , मीठे दूध के साथ या मिश्री की चाशनी के साथ सेवन करना चाहिए।
ज्वर में प्रलाप
तेज बुखार के कारण कुछ रोगी मानसिक नियंत्रण खो देते है और अनाप सनाप बकने लगते है। एसी स्थिति में शंखपुष्पी और मिश्री को बराबर वजन में मिलाकर एक-एक चम्मच दिन में तीन या चार बार पानी के साथ देने से लाभ होता है और नींद भी अच्छी आती है।
उच्च रक्तचाप
उच्च रक्तचाप के रोगी को शंखपुष्पी का काढ़ा बना कर सुबह और शाम पीना चाहिए। दो कप पानी में दो चम्मच चूर्ण डालकर उबालें। जब आधा कप रह जाए उतारकर ठंडा करके छान लें। यही काढ़ा है। दो या तीन दिन तक पियें उसके बाद एक-एक चम्मच पानी के साथ लेना शुरू कर दें रक्तचाप सामान्य होने तक लेतें रहें।
बिस्तर में पेशाब
कुछ बच्चे बड़े हो जाने पर भी सोते हुए बिस्तर में पेशाब करने की आदत नहीं छोड़ते। एसे बच्चों को आधा चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह शाम चटा कर ऊपर से ठंडा दूध या पानी पिलाना चाहिए। यह प्रयोग लगातार एक महीनें तक करें।
शक्तिवर्धन के लिए शंखपुष्पी।
शंखपुष्पी पंचांग, ब्राह्मी, अश्वगंधा, बादाम की गिरी, कद्दू की गिरी, तरबूज की गिरी, छोटी इलायची, सौंफ, काली मिर्च ,आंवला, ख़स ख़स आदि सभी १० – १० ग्राम की मात्रा में लेकर मोटा मोटा कूट पीसकर रख लें। सम्पूर्ण ग्रीषम ऋतू में इसका ठंडा पेय (ठंडाई) बनाकर सेवन करने से शारीरिक व् मानसिक दोनों रूप में शक्ति की प्राप्ति होती है। बौद्धिक कार्य करने वालों में इसके सेवन से स्मरण शक्ति बढ़ती है, ध्यान में एकाग्रता आती है और वे अधिक सुगमता से निर्णय ले सकने के योग्य बनते है। शंखपुष्पी का सेवन शरद ऋतू में अत्यंत सावधानी से करना चाहिए अथवा दुर्बल रोगियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
प्रमेह श्वांस व् पाचक रोगों में।
शंखपुष्पी, सेमल के फूल, दालचीनी, इलायची बीज, अनंत मूल, हल्दी, दारुहल्दी, श्यामलता, खसखस, मुलहठी, सफ़ेद चन्दन, आंवला, सफ़ेद मूसली, भारंगी, पिली हरड़ छिलका, देवदारु, वंशलोचन और लोह भस्म सभी बराबर बराबर मात्राओं में लेकर उनका महीन चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का २- ४ ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार प्रातः एवं सांय पानी के साथ सेवन करें।
इस चूर्ण के सेवन से सभी प्रकार के मूत्र सम्बन्धी (प्रमेह रोग), खांसी, श्वांस रोग, पीलिया, बवासीर आदि में आराम आ जाता है। मस्तिष्क की स्मरण शक्ति बढ़ती है, पाचन क्रिया सुधरती है, शरीर में नया उत्साह आता है। ऐसा माना जाता है के बवासीर रोग की उत्पत्ति अजीर्ण होने के पश्चात मल, मूत्र के अवरोध, गुदा नलिका और बृहदान्त्र की श्लेष्मिक कला में उग्रता, उदर में वायु भरने और रक्त में विष वृद्धि होने पर होती है। यह औषिधि रोग के मूल कारणरूप मूत्रावरोध आदि को दूर करती है, जिससे रोग की उत्पत्ति ही नहीं होती।
शंखपुष्पी की सेवन विधि।
शंखपुष्पी का समग्र क्षुप अर्थात पंचांग ही एक साथ औषधीय उपयोग के काम आता है। इस पंचांग को सुखाकर चूर्ण या क्वाथ के रूप में अथवा ताजा अवस्था में स्वरस या कल्क के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इनकी सेवन की मात्रा इस प्रकार है।
शंखपुष्पी पंचांग चूर्ण – ३ से ६ ग्राम की मात्रा में दिन में दो या तीन बार।
शंखपुष्पी स्वरस – २० से ४५ मि ली दिन में दो या तीन बार।
शंखपुष्पी कल्क – १० से २० ग्राम दिन में दो या तीन बार।
इनके अतिरिक्त शंखपुष्पी से निर्मित ऐसे कई शास्त्रोक्त योग है, जिन्हें विभिन्न रोगों में उपयोग कराया जाता है। जैसे के शंखपुष्पी रसायन, सोमघृत, ब्रह्मा रसायन, अगस्त्य रसायन, वचाघृत, जीवनीय घृत, ब्रह्मघृत इत्यादि।
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Shnkhahuli