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शतावरी अमृत समान महा औषधि – Benefits Of Shatavari

शतावरी आयुर्वेद गुणों से भरपूर महा औषधि ।

शतावरी एक चमत्कारी औषधि है जिसका उपयोग कई रोगों के इलाज में किया जाता है। शतावरी की खूबसूरत लता के रूप में घरों और बंगलों में भी लगाई जाती है। यह पौधा झाड़ीनुमा होता है, जिसमें  फूल मंजरियों में एक से दो इंच लम्बे एक या गुच्छे में लगे होते हैं और फल मटर के समान पकने पर लाल रंग के होते हैं। इसके पत्ते हरे रंग के धागे जैसे सोया सब्जी की तरह खूबसूरत, उठल में शेर के नखों की तरह मुड़े हुए मजबूत कांटे, जड़ों में सैकड़ों की संख्या में हरी भूरी जड़ें जो इसका प्रमुख गुणकारी अंग शतावरी है मिलती है। इन जड़ों को ही ऊपर का पतला छिलका उतार सुखा कर औषधि रूप में प्रयोग करते हैं।

आयुर्वेद के आचार्यों के अनुसार , शतावर पुराने से पुराने रोगी के शरीर को रोगों से लड़ने क़ी क्षमता प्रदान करता है । इसे शुक्रजनन, शीतल , मधुर एवं दिव्य रसायन माना गया है । महर्षि चरक ने भी शतावर को बल्य और वयः स्थापक ( चिर यौवन को बरकार रखने वाला) माना है । आधुनिक शोध भी शतावरी क़ी जड़ को हृदय रोगों में प्रभावी मान चुके हैं।

शतावरी गुणों में भारी, शीतल, स्वाद में कड़वी व मधुर, रसायन गुणों से भरपूर वायु और पित्त नाशक,पुरुषों में शक्ति, ओज वीर्यवर्धक , स्त्रियों के स्तनों में दूध बढ़ाने वाली, नेत्र ज्योति, स्मृति, पाचक अग्नि, बुद्धि बढ़ाने वाली, अतिसार, गुल्म, स्नायु रोग नाशक, स्निग्ध, कामोद्दीपक, यकृत, गुर्दे की बीमारियों में लाभदायक है । यह पौष्टिक, कृशता मिटाने वाली, वृद्धावस्था रोकने वाली, रक्त पित्त व अम्ल पित्त, शरीर की ऊष्मा व जलन को मिटाती है। वायु नष्ट करती है। शतावरी की जड़ को छीलकर यों ही चबाकर खाया जा सकता है। इसका रस निकाल कर पीना भी शक्तिवर्घक है। इसको सुखाकर उसका चूर्ण लड्डू, पाक, घृत, तेल तथा अनेक मिश्रित योग बनाये जाते हैं जो सारे देश में वैद्य और हकीम अपने रोगियों को सेवन कराते हैं। इसका विभिन्न रोगों में निम्नानुसार प्रयोग किया जाता है।

नींद न आने क़ी समस्या :-

यदि आप नींद न आने क़ी समस्या से परेशान हैं तो बस शतावरी क़ी जड़ को खीर के रूप में पका लें और थोड़ा गाय का घी डालें ,इससे आप तनाव से मुक्त होकर अच्छी नींद ले पायेंगे ।

माइग्रेन :-

शतावरी क़ी ताज़ी जड़ को यवकूट करें ,इसका स्वरस निकालें और इसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर पका लें,हो गया मालिश का तेल तैयार …इसे माइग्रेन जैसे सिरदर्द में लगायें और लाभ देखें ।

प्रदर रोग :-

तीन दिन सुबह-शाम शतावरी चूर्ण 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में थोड़े से शुद्ध घी में मिलाकर चाटने व कुनकुना गर्म मीठा दूध पीने से प्रदर रोग से जल्दी से छुटकारा मिलता है।

गर्भवती स्त्री के लिए :-

नवमास चिकित्सा का विवरण बताया है। शतावरी के चूर्ण का उपयोग दूसरे, छठे और सातवें मास में दूध के साथ करने और नवम मास में शतावरी साधित तेल का एनीमा लेने तथा इसमें भिगोए हुए रूई के फाहे को सोते समय योनि में रखने के बारे में बताया गया है। इससे योनि-प्रदेश लचीला, पुष्ट और स्निग्ध रहता है, जिससे प्रसव के समय प्रसूता को अधिक प्रसव पीड़ा नहीं होती।

प्रसूता स्त्रियों में दूध न आने क़ी समस्या

प्रसूता स्त्रियों में दूध न आने क़ी समस्या होने पर शतावरी का चूर्ण -पांच ग्राम गाय के दूध के साथ देने से लाभ मिलता है। गाँव के लोग इसकी जड़ का प्रयोग गाय या भैंसों को खिलाते हैं, तो उनकी दूध न आने क़ी समस्या में लाभ मिलता पाया गया है । अतः इसके ऐसे ही प्रभाव प्रसूता स्त्रियों में भी देखे गए हैं ।

जच्चा-बच्चा में सूखी खाँसी :-

जच्चा-बच्चा को यदि खाँसी हो तो शतावरी चूर्ण, अडूसा के पत्ते और मिश्री समान मात्रा में कूट-पीसकर मिला लें। 10 ग्राम चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इसे दिन में 3-4 बार 2-2 चम्मच प्रसूता पिए और 5-5 बूंद शिशु को अपने दूध में मिलकार पिलाएँ। इससे सूखी खाँसी में आराम होता है।

वातज ज्वर : –

वातज ज्वर में शतावरी के रस एवं गिलोय के रस का प्रयोग या इनके क्वाथ का सेवन ज्वर (बुखार ) से मुक्ति प्रदान करता है ..। वात प्रकोप होने पर शतावरी चूर्ण और पीपर का चूर्ण सम भाग मिलाकर 5 ग्राम मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से लाभ होता है।

पित्त प्रकोप और अजीर्ण

पित्त प्रकोप और अजीर्ण होने पर इसका 5 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाटना चाहिए। शतावरी के रस को शहद के साथ लेने से जलन , दर्द एवं अन्य पित्त से सम्बंधित बीमारीयों में लाभ मिलता है।

कफ प्रकोप और खाँसी

कफ प्रकोप और खाँसी में शतावरी पाक स्त्री-पुरुष दोनों के लिए बलपुष्टिदायक होता है, अतः इस पाक का सेवन आवश्यकता के अनुसार ही करना चाहिए। यदि रोगी खांसते-खांसते परेशान हो तो शतावरी चूर्ण – 1.5 ग्राम ,वासा के पत्ते का स्वरस 2.5 मिली ,मिश्री के साथ लें और लाभ देखें ।

मूत्र विकृति :-

यदि रोगी को मूत्र या मूत्रवह संस्थान से सम्बंधित विकृति हो तो शतावरी को गोखरू के साथ लेने से लाभ मिलता है ।

घाव :-

शतावरी के पत्तियों का कल्क बनाकर घाव पर लगाने से भी घाव भर जाता है ।

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स्वप्न दोष, प्री -मेच्युर -इजेकुलेशन :-

यदि रोगी स्वप्न दोष से पीड़ित हो तो शतावरी मूल का चूर्ण -2.5 ग्राम ,मिश्री -2.5 ग्राम को एक साथ मिलाकर, पांच ग्राम क़ी मात्रा में रोगी को सुबह शाम गाय के दूध के साथ देने से प्रमेह , प्री -मेच्युर -इजेकुलेशन (स्वप्न-दोष ) में लाभ मिलता है। शतावरी के जड के चूर्ण को पांच से दस ग्राम क़ी मात्रा में दूध से नियमित से सेवन करने से धातु वृद्धि होती है ।

यौन शिथिलता :-

यदि पुरुष यौन शिथिलता से परेशान हो तो शतावरी पाक या केवल इसके चूर्ण को दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है । घी में चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम चाटकर दूध पीने से शारीरिक थकान, कमजोरी, अनिद्रा, पेशाब में रुकावट, धातुक्षीणता आदि विकार नष्ट होते हैं।

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3 comments

  1. mera pennis small size Hai or pani patla Hai bhut jldi discharge ho jata hu or abhi merrage bhi nhi hui Hai plz help me

  2. अशोक kumar

    Sorisis kE case M upchar batsai

  3. Very nice information .

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