प्रकृति का एक अद्भुत उपहार- कीड़ा जड़ी (कार्डिसेप्स साइनेनसिस)
देवभूमि हिमालय एवं वनोषधियों का सम्बन्ध आदिकाल से रहा है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि हिमालय में तप करने के साथ-साथ ही अनेक दिव्य औषधियों की खोज भी करते थे। महर्षि चरक ने हिमालय के केदारनाथ क्षेत्र मे अनेक जड़ी-बूटियों का औषधीय ज्ञान प्राप्त किया। रामायण काल का ही प्रसंग लें तो मूर्छित लक्ष्मण की प्राण रक्षा हेतु हनुमान सुषैण वैद्य के निर्देशानुसार हिमालय के द्रोणगिरी पर्वत से संजीवनी बूटी ले गये। हिमालय मे अनेक विलक्षण वनोषधियां पायी जाती है लेकिन आज भी कुछ इसी तरह की चमत्कारी औषधि हिमालय के ऊंचे बुग्याली क्षेत्रों मे पायी जाती है। जिसके बारे मे यह स्पष्ट नही हो पा रहा है, यह कोई वनस्पति है अथवा जन्तु। स्थानीय निवासी इसे कीड़ा घास नाम से जानते है। यह उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ एवं चमोली जिले के ३५०० मी० की ऊँचाई के एल्पाइन बुग्यालों मे पायी जाती है। कीड़ा जड़ी के फायदे
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सर्वप्रथम कीड़ा जड़ी उल्लेख तिब्बती साहित्य में मिलता है। इस उल्लेख के अनुसार यहाँ के चरावाहों ने देखा कि यहाँ के जंगलों में चरने वाले उनके पशु एक विशेष प्रकार की घास जो कीड़े के समान दिखाई देती है ( कीड़ा जड़ी ), को खाकर हष्ट-पुष्ट एवं बलवान हो जाते हैं। धीरे-धीरे यह घास ( कीड़ा जड़ी ) एक चमत्कारी औषधि के रूप मे अनेक बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग होने लगी। तिब्बती भाषा में इसको ‘यारसाद्-गुम-बु’कहा जाता है। जिसका अर्थ होता है ग्रीष्म ऋतु मे घास और शीत ऋतु ऋतु में जन्तु।
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार ( कीड़ा जड़ी )
यर्सी गम्बा हिमालयी क्षेत्र की विशेष प्रकार एवं यहाँ पाये जाने वाले एक कीड़े के जीवन चक्र के अद्भुत संयोग का परिणाम है।
आधुनिक वनस्पति शास्त्रियों एवं कीट विज्ञानियों के अनुसार यह कवक (फफूँद) की एक प्रजाति है। जिसको वैज्ञानिक दृष्टि से कार्डिसेप्स सायनेंसिस के नाम से वर्गीकृत किया जाता है। कार्डिसेप्स सायनेसिंस सामान्यतय: नारंगी रंग की एक पतली जड़ की तरह दिखाई देता है। जिसका भीतरी भाग सफेद होता है। इसका ऊपरी भाग एक स्प्रिंग की भाँति घुमावदार होता है जिस पर झुरियाँ होती है। एक मुख्य रचना में ७-८ आकृतियाँ झुण्ड के रूप में मिलती है। इनमें बीच की रचनाऐं बड़ी एवं महत्वपूर्ण होती है। वैज्ञानियों के अनुसार आकर्षक आकृतियों के यह समूह वस्तुत: कार्डिसेप्स नामक फफूँद के सूखें हुए अवशेष होते है।
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रासायनिक दृष्टि से इस औषधि में एस्पार्टिक एसिड, ग्लूटेमिक एसिड, ग्लाईसीन जैसे महत्वपूर्ण एमीनो एसिड तथा कैल्सियम, मैग्नीशियम, सोडियम जैसे अनेक प्रकार के तत्व, अनेक प्रकार के विटामिन तथा मनुष्य शरीर के लिए अन्य उपयोगी तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसको एकत्रित करने के लिए अप्रैल से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। अगस्त के महिने से धीरे-धीरे प्राकृतिक रुप से इसका क्षय होने लगता है और शरद ऋतु के आने तक यह पूर्णतया: विलुप्त हो जाती है।
उपलब्ध जानकारियों के अनुसार यह औषधि हृदय, यकृत तथा गुर्दे सम्बन्धी व्याधियों में उपयोगी सिद्ध हुई है। शरीर के जोड़ों में होने वाली सूजन एवं पीड़ा तथा जीर्ण रोगों जैसे अस्थमा एवं फेफड़े के रोगों मे इसका प्रयोग लाभकारी होता है। इसका प्रयोग शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाता है। उम्र के साथ-साथ बढ़ने वाली हृदय एवं मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों की कठोरता को भी यह कम करता है। कुल मिलाकर वनस्पतिक औषधियों के बढ़ते हुये प्रचलन के इस दौर में इसे एक महत्वपूर्ण आयुरोधक औषधि के रुप मे देखा जा रहा है।
इस सम्बन्ध में हमारे वैज्ञानिक के साथ ही साथ साधारण जनता में भी जिज्ञासा बढ़ रही है। अपनी प्राकृतिक छटा के लिए ख्याति प्राप्त उत्तराखंड के सीमान्त जिले चमोली व पिथौरागढ़ के बुग्यालों में समुद्र तल से ३५०० मीटर से अधिक की ऊँचाई में कीडा जडी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
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The Marvelous Benefits of Yarsagumba
Author: Kriti
Yarsagumba (Cordyceps Sinensis) has been in the world’s spotlight ever since legendary Chinese coach Ma Junren’s disclosure of this wondrous herb as being the secret behind the fabulous world record breaking feats of his women runners in the 1990s. Apparently, his runners, who all trained at high altitudes, were given Yarsagumba three times a day to fight the rigors of the high intensity workouts. Yarsagumba is found in the high pastures of the Himalayas in Nepal, Tibet and India, at altitudes of 3000 to 5000 meters, Known also as the Caterpillar Fungus, Yarsagumba is the result of a parasitic fungus (Ophiocordycipitaceae) infecting the caterpillar of a moth genus Thitarodes (Hepialus). Apparently, the fungus spreads its mycelium throughout the body cavity of the larva thus in practice, mummifying it. With the melting of the snows, the mushroom grows out of the caterpillar’s forehead and emerges from the ground. This is what thousands of Yarsagumba collectors go in search of during the spring season. The returns are worth the effort and the risks involved since a person can earn over 2,500 dollars in a good season (a tidy sum considering that the annual per capita of Nepal is below 500 dollars).
Grown in Nepal Cordyceps sold in the US –
Yarasagumba has been a part of traditional Chinese medicine since ancient times. Its many attributes have been studied at some length by some scholars, particularly Chinese scholars who recommend Yarsagumba for the treatment of stress and fatigue, for respiratory diseases like tuberculosis and asthma, for disease related to the kidneys and the liver, as well as for cardiovascular distresses, and so on. However, the one use of Yarsagumba that has caught most of the world’s attention is its use as an aphrodisiac. Tibetan medicine lists Yrasagumba as a tonic for boosting immunity and for enhancing virility aside from its supplementary role along with other medicines in kidney, lungs and heart problems. Yarsagumba is also recommended by Tibetan traditional practitioners for improving eyesight and for treating Hepatitis B.
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To list some of Yarsagumba’s health benefits, Yarsagumba is believed to:
- relieve exhaustion and fatigue
- decrease stress
- strengthen stamina
- strengthen kidneys
- strengthen lungs
- increase libido of both men and women
- increase semen
- strengthen the immune system
- strengthen muscles and body strength
- relive phlegm congestion
- enhance calmness and sense of balance
As far as specific diseases are concerned, Yarsagumba is believed to be effective for:
- reducing arrhythmia
- preventing nephralgia
- strengthening the immune system of tumor patients who have received radiotherapy,
- chemotherapy or surgery
- increasing the blood cells and protein for producing blood plasma
- eliminating toxins and side effects after certain type of therapies
- treatment of impotence and premature ejaculation
- treatment of neurasthenia,
- treatment of rheumatoid arthritis,
- treatment of cirrhosis
- strengthening flabby waist and knees
- lowering the lipoproteinemia level,
- preventing arteriosclerosis and coronary heart disease
- stimulating sexual hormones and inhibiting free radicals, thus delaying the ageing process
- treatment of chronic nephropathy and chronic nephritis
The general dosage for Yarsagumba is along the following lines:
For a healthy person the recommended dose is: 0.3—0.7 g (1-2 pc according to the size) daily. Eat whole mushroom in original form, or drink 20 minutes after boiling in water, or mix in powder form with milk for drinking, for 3 to 4 days, Dosage can be repeated after a gap of three days.
In the case of particular health problems, the dosages are often higher, and as per practitioner’s