रंग मानव और सृष्टि के हर चेतन जीव पर गहराई तक असर डालते है। इससे स्पन्दन पैदा होते हैं जो रोग निवारण का काम करते हैं, प्राचीन काल में भारत ,चीन और मिश्र में कलर थेरेपी का उपयोग होने के प्रमाण प्राचीन पुस्तकों में मिलते है।रंग हमारे जीवन में उत्साह-उमंग भरते हैं, हमें जीवंत बनाते हैं। निश्चित ही इनका एक मनोवैज्ञानिक महत्व है। इसीलिए हम रंगों का पर्व होली मानते हैं, रंगों से सराबोर होते हैं। ये रंग हमें सिर्फ खुशी ही नहीं देते, बल्कि हमारे कई शारीरिक-मानसिक विकारों को भी दूर करते हैं। असल में ऐसा रंगों की अपनी प्रकृति की वजह से होता है। रंगों के जरिए रोगों के इस ट्रीटमेंट मैथड को ही कलर थेरेपी कहते हैं।
आइए जानते हैं, कलर थरेपी कैसे होती है-
हमारे जीवन में रंगों का बहुत महत्व होता है। ये हमारे शरीर और मन के भावों को भी प्रभावित करते हैं। दरअसल, हर रंग की अपनी विशेष प्रकृति होती है, जो हमें गहराई तक प्रभावित करती है। रंगों के इन्हीं गुणों के आधार पर कई रोगों का इलाज कलर थेरेपी में किया जाता है। इस थेरेपी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे किसी भी उम्र में उपचार कराया जा सकता है। साइड इफेक्ट न होने से यह बेहद सुरक्षित भी मानी जाती है। जानते हैं, क्या है कलर थेरेपी और कैसे किया जाता है इसके जरिए उपचार।
क्या है कलर थेरेपी-
मानव शरीर पांच तत्व, वायु, जल, अग्नि, मिट्टी और आकाश से मिलकर बना है। ये पांचों तत्व मिलकर हमारे शरीर में मौजूद वात, पित्त और कफ का संतुलन बनाए रखते हैं। इन तीनों के संतुलित रहने पर ही हम स्वस्थ रहते हैं। लेकिन जब इन तीनों में से कोई भी एक तत्व असंतुलित हो जाता है, तब हम बीमार हो जाते हैं। यानी, यह असंतुलन बीमारी के संकेत होते हैं। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है, हमारे शरीर में इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह सात चक्र होते हैं। जब शरीर स्वस्थ होता है, तब ये चक्र सुचारु रूप से चलते रहते हैं। लेकिन जब शरीर में वात, पित और कफ में से कोई भी तत्व असंतुलित हो जाता है या कोई विकार हो जाता है, तब हमारे शरीर के ये चक्र प्रभावित हो जाते हैं। कलर थेरेपी के अंतर्गत शरीर के चक्रों में उपजे इन्हीं विकारों की पहले पहचान की जाती है। फिर विभिन्न रंगों के इस्तेमाल से उन्हें दूर किया जाता है। रंगों कलर का हमारे मूड, सेहत और सोच पर गहरा असर पडता है।
कलर थेरेपी ७ प्रकार की होती हैं। पानी को अलग-अलग रंगों की बोतलों में भरकर धूप में रखा जाता है। इससे उस रंग का असर पानी में आ जाता है और उस पानी का प्रयोग रोग चिकित्सा में किया जाता है। होम्योपैथी वाले दवाईयों को विभिन्न रन्गों की बोतलों में ४५ दिन तक रखते हैं जिससे रंगों का पूरा असर दवा में आ जाता है।
रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव कैसे होता है और किन रोगों पर सकारात्मक प्रभाव होता है?
लाल रंग (Red color)-इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव के फ़लस्वरुप शरीर के रक्त संचार में वृद्धि होती है। एड्रिनल ग्रंथि अधिक सक्रिय हो जाती है फ़लत: शरीर ताकत बढती है। रेड कलर से नकारात्मक विचार समाप्त होते हैं लेकिन कुछ लोगों में चिड चिडापन भी पैदा हो जाता है।लाल रंग के दुष्प्रभाव से ब्लडप्रेशर बढ जाता है और हृदय की धडकन भी बढ जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि उच्च रक्त चाप के रोगी को लाल रंग पुते हुए कमरे से परहेज करना चाहिये।
लाल रंग पसंद करने वाला व्यक्ति उर्जा से भरा, आशावादी, महत्वाकांक्षी होता है। ऐसा व्यक्ति आकर्षण का केन्द्र रहता है।
नारंगी रंग (Orange color)-
यह रंग पाचन संस्थान को प्रभावित करता है। भूख बढाता है। स्त्री-पुरुषों की सेक्स शक्ति में बढोतरी करता है। यह रंग शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करता है। फ़ेफ़डे के रोगों में इसका अच्छा असर देखने में आता है।
इस रंग को पसन्द करने वाला व्यक्ति साहसी, द्रड प्रतिग्य, अच्छे स्वभाव का होता है। मिलनसार होता है लेकिन किसी के अपराध को माफ़ नहीं करना करेगा।
पीला रंग (Yellow color)-
यह रंग मस्तिष्क की शक्ति बढाता है। यह व्यक्ति को अति सावधान बनाता है यहां तक कि वह किसी के साथ धोखा,छल करने से भी नहीं चूकता।
इस रंग को पसंद करने वाला व्यक्ति बुद्धिमान ,आदर्श वादी, उत्सुक,एकाकी और बेहद कल्पनाशील होता है।
हरा रंग (Green color)-
हरा रंग हृदय के लिये उपकारी है। हृदय रोग के मरीजों में तनाव (टेंशन)दूर करता है। आदमी रिलेक्स अनुभव करता है। व्यक्ति ठंडे पेटे का याने शांत स्वभाव वाला होता है।
इस रंग को पसंद करने वाले व्यक्ति के स्वभाव में स्थिरता, और संतुलन बना रहता है। वह आदर योग्य होता है और किसी भी हालत में गलत निर्णय नहीं लेता है।
नीला रंग(Blue color)-
यह ब्लड प्रेशर घटाता है। स्निग्ध,शीतल गुण। पीयूष ग्रंथि को उत्तेजित कर नींद संबंधी व्याधियां दूर करता है। मन को शांत करने का गुण है।
इस रंग को पसंद करने वाला व्यक्ति टेंशन से मुक्त रहते हुए शांत स्वभाव का होता है। ऐसे व्यक्ति भरोसा करने योग्य होते हैं।रूढीवादी होते हैं।
बेंगनी रंग( Purple color)
यह रंग भूख को घटाता है। मेटाबोलिस्म(चयापचय) क्रिया सुधारता है। इसके प्रयोग से कुछ चर्म विकार भी ठीक होने के प्रमाण मिले हैं।
बेंगनी रंग पसंद करने वाले सृजनशील प्रवृत्ति के होते है। उनमें संवेदनशीलता होती है। खूबसूरत होते हैं। उच्च स्तर की कला में पारंगत होते हैं।कलर थेरेपी के सरल ईलाज
प्राणियों का संपूर्ण शरीर रंगीन है। शरीर के समस्त अवयवों का रंग अलग-अलग है। शरीर की समस्त कोशिकाएँ भी रंगीन हैं। शरीर का कोई अंग बीमार होता है तो उसके रासायनिक द्रव्यों के साथ-साथ रंगों का भी असंतुलन हो जाता है। रंग चिकित्सा उन रंगों को संतुलित कर देती है जिसके कारण रोग का निवारण हो जाता है।
शरीर में जहाँ भी विजातीय द्रव्य एकत्रित होकर रोग उत्पन्न करता है, रंग चिकित्सा उसे दबाती नहीं अपितु शरीर के बाहर निकाल देती है। प्रकृति का यह नियम है कि जो चिकित्सा जितनी स्वाभाविक होगी, उतनी ही प्रभावशाली भी होगी और उसकी प्रतिक्रिया भी न्यूनतम होगी।
सूर्य की रश्मियों में 7 रंग पाए जाते हैं
1. लाल, 2. पीला, 3. नारंगी, 4. हरा, 5. नीला, 6.आसमानी, 7. बैंगनी
उपरोक्त रंगों के तीन समूह बनाए गए हैं –
1. लाल, पीला और नारंगी
2. हरा
3. नीला, आसमानी और बैंगनी
प्रयोग की सरलता के लिए पहले समूह में से केवल नारंगी रंग का ही प्रयोग होता है। दूसरे में हरे रंग का और तीसरे समूह में से केवल नीले रंग का। अतः नारंगी, हरे और नीले रंग का उपयोग प्रत्येक रोग की चिकित्सा में किया जा सकता है।
नारंगी रंग की दवा के प्रयोग
कफजनित खाँसी, बुखार, निमोनिया आदि में लाभदायक। श्वास प्रकोप, क्षय रोग, एसिडीटी, फेफड़े संबंधी रोग, स्नायु दुर्बलता, हृदय रोग, गठिया, पक्षाघात (लकवा) आदि में गुणकारी है। पाचन तंत्र को ठीक रखती है। भूख बढ़ाती है। स्त्रियों के मासिक स्राव की कमी संबंधी कठिनाइयों को दूर करती है।
हरे रंग की दवा के प्रयोग
खासतौर पर चर्म रोग जैसे- चेचक, फोड़ा-फुंसी,दाद, खुजली आदि में गुणकारी साथ ही नेत्र रोगियों के लिए (दवा आँखों में डालना) मधुमेह, रक्तचाप सिरदर्द आदि में लाभदायक है।
नीले रंग की दवा के प्रयोग
शरीर में जलन होने पर, लू लगने पर, आंतरिक रक्तस्राव में आराम पहुँचाता है। तेज बुखार, सिरदर्द को कम करता है। नींद की कमी, उच्च रक्तचाप, हिस्टीरिया, मानसिक विक्षिप्तता में बहुत लाभदायक है। टांसिल, गले की बीमारियाँ, मसूड़े फूलना, दाँत दर्द, मुँह में छाले, पायरिया घाव आदि चर्म रोगों में अत्यंत प्रभावशाली है। डायरिया, डिसेन्टरी, वमन, जी मचलाना, हैजा आदि रोगों में आराम पहुँचाता है। जहरीले जीव-जंतु के काटने पर या फूड पॉयजनिंग में लाभ पहुँचाता है।
यह चिकित्सा जितनी सरल है उतनी ही कम खर्चीली भी है। संसार में जितनी प्रकार की चिकित्साएँ हैं, उनमें सबसे कम खर्च वाली चिकित्सा है।
दवाओं की निर्माण की विधि
जिस रंग की दवाएँ बनानी हों, उस रंग की काँच की बोतल लेकर शुद्ध पानी भरकर 8 घंटे धूप में रखने से दवा तैयार हो जाती है। बोतल थोड़ी खाली होनी चाहिए व ढक्कन बंद होना चाहिए। इस प्रकार बनी हुई दवा को चार या पाँच दिन सेवन कर सकते हैं। नारंगी रंग की दवा भोजन करने के बाद 15 से 30 मिनट के अंदर दी जानी चाहिए। हरे तथा नीले रंग की दवाएँ खाली पेट या भोजन से एक घंटा पहले दी जानी चाहिए।
दवा की मात्रा
प्रत्येक रंग की दवा की साधारण खुराक 12 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले व्यक्ति के लिए 2 औंस यानी 5 तोला होती है। कम आयु वाले बच्चों को कम मात्रा देनी चाहिए। आमतौर पर रोगी को एक दिन में तीन खुराक देना लाभदायक है।
सफेद बोतल के पानी पर किरणों का प्रभाव
सफेद बोतल में पीने का पानी 4-6 घंटे धूप में रखने से वह पानी कीटाणुमुक्त हो जाता है तथा कैल्शियमयुक्त हो जाता है। अगर बच्चों के दाँत निकलते समय वही पानी पिलाया जाए तो दाँत निकलने में आसानी होती है।
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