Friday , 8 November 2024
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Appendicitis-appendix जानकारी और बचाव।

अपेंडिक्स आँत के संक्रमण को अपेंडिसाइटिस कहते हैं, इस में संक्रमण की वजह से सूजन आ जाती हैं इसमें पीब (पस) भी भरी हो सकती हैं, जिस से पेट में एक तरफ भयंकर असहनीय दर्द होता हैं। अपेंडिक्‍स का रोग 15 से 40 साल की उम्र के लोगों में अधिक होता है। रोगी को अगर अपेंडिक्‍स है तो, उसके पेट के दाएं भाग में नीचे की तरफ दर्द, भूख में कमी, उल्‍टी, मतली, डायरिया, कब्‍ज, गैस न निकाल पाना, पेट में सूजन और हल्‍का बुखार रह सकता है।

अगर ये संक्रमण कुछ दिनों तक लगातार बना रहता है तो अंततः अपेंडिक्स के फटने की स्थिति आ जाती है। अपेन्डिक्स का फटना एक आपात स्थिति है। अपेंडिक्‍स का सही समय पर इलाज बहुत जरुरी है।

कहाँ होता हैं ये दर्द। 

पेट के दायें भाग में नाभि से हटकर लगभग 6 सेमी की दूरी तक दर्द होता है। यह दर्द कभी कम तो कभी तेज होने लगता है यहां तक कि हिलने डुलने से दर्द और तेज हो जाता है।

आइये जाने इसके कारण और उपचार।

1. कब्ज़

इसके मुख्य कारण होता है लम्बे समय तक कब्ज़ का रहना , पेट में पलने वाला परजीवी व आँतों के रोग इत्यादि से अपेंडिक्स की नाली में रुकावट आ जाती है |

2. भोजन में फाइबर की कमी।

भोजन में रेशे का न होना या कमी भी इस समस्या के लिए जिम्मेदार होता है |

3. आंतो में भोजन का फंसना।

यदि भोजन का कोई अंश आंत के शुरू के हिस्से में अटक कर सतह में पहुंच जाता है, तो वह अपेंडिक्स के वाल्व को बंद कर देता है। इसका परिणाम यह होता है कि सामान्यतः अपेंडिक्स से जो एक विशेष प्रकार का स्राव होता है, उसके निकलने का मार्ग अवरुद्ध होने से वह बाहर नहीं निकल पाता और अंदर ही सड़ने लगता है, जिसके कारण अपेंडिक्स में सूजन आ जाती है। इस तरह जब अपेंडिक्स संक्रमण ग्रस्त हो जाता है,तो अपेंडिसाइटिस रोग कहलाता है। अपेंडिसाइटिस का यह रोग शाकाहारियों की अपेक्षा मांसाहारियों को अधिक होता है और उन पर उसका असर भी अधिक तीव्र और भयंकर होता है।

4. ये भी हो सकते हैं कारण।

अमरूद, नींबू, संतरा आदि फलों के बीज, या किसी अन्य बाहरी वस्तु का अपेंडिक्स में फंस या रुक जाना, संक्रमण पैदा करने वाले जीवाणुओं का उस जगह पर पहुंच जाना, अपेंडिक्स में कठोरता पैदा हो जाना, क्षय रोग में जीवाणुओं द्वारा अपेंडिक्स का संक्रमित हो कर उसमें ट्यूबर सृदश आकृतियां बन जाना, अपेंडिक्स में कैंसर या अन्य प्रकार की रसौली उत्पन्न हो जाना, अपेंडिक्स के स्थान पर चोट आदि लग जाना, पुराना कब्ज संकोचक, गरिष्ठ और दोषयुक्त आहार का सेवन करना, अपेंडिक्स सिकुड़ जाना, उसमें रुकावट उत्पन्न हो जाना अपेंडिसाइटस के कारण होते हैं।

आंत्रपुच्छ यानी अपेंडिक्स की चिकित्सा आयुर्वेद में औषधी द्वारा भी की जा सकती है। मगर आपातकालीन में तो शल्य (सर्जिकल) चिकित्सा ही सही है।

इसके कुछ आम लक्षणों को ठीक करने के लिये कुछ घरेलू उपचार भी आजमाए जा सकते हैं।

भोजन तथा परहेज :

पथ्य :

पूरा आराम करना, फलों का रस, पर्लवाली, साबूदाना और दूसरे तरल पदार्थ खायें। रोटी न खायें, दस्त की दवा लेना, खटाई, ज्यादा तेल से बने चटपटे मसालेदार चीजें न खायें।

बनतुलसी :

बनतुलसी को पीसकर लुगदी बना लें किसी लोहे की करछुल पर गर्म करें (भूनना नहीं है) उस पर थोड़ा-सा नमक छिड़क दें और दर्द वाले स्थान पर इस लुगदी की टिकिया बनाकर 48 घंटे में 3 बार बदल कर बांधें। रोगी को इस अवधि में बिस्तर पर आराम करना चाहिए। इस चिकित्सा से 48 घंटे में रोग दूर हो जाता है। इसके पत्ते दर्द कम करते हैं। सूजन कम करते हैं। सूजन व दर्द वाले स्थान पर इसका लेप करने से फायदा होता है।

एलो वेरा :

कब्ज ना रहे और पेट बिलकुल साफ़ हो, इसके लिए आप एलो वेरा का नित्य सेवन करे, इस रोग में ये बेहद फायदेमंद हैं।

गाजर :

आंत्रपुच्छ प्रदाह में गाजर का रस पीना फायदेमंद है। काली गाजर सबसे ज्यादा फायदेमंद है।

दूध :

दूध को एक बार उबालकर ठंडा कर पीने से लाभ होता है।

टमाटर :

लाल टमाटर में सेंधानमक और अदरक डालकर भोजन के पहले खाने से फायदा होता है।

इमली :

इमली के बीजों का अन्दरूनी सफेद गर्भ (गिरी) को निकालकर पीस लें। बने लेप को मलने और लगाने से सूजन में और पेट फूलने में आराम आता है।

गुग्गुल :

गुग्गुल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम गुड़ के साथ खाने से फायदा होता है।

राई :

पेट के निचले भाग में दायीं ओर राई पीसकर लेप करने से दर्द दूर होता है। मगर ध्यान रहे कि एक घंटे से ज्यादा देर तक लेप लगा नहीं रहना चाहिए। वरना छाले भी पड़ सकते हैं.

अदरक

अदरक दर्द और सूजन को दूर करने में सहायक है। रोजाना अदरक की चाय 2 से 3 बार पियें। अदरक की चाय बनाने के लिये 1 कप उबलते हुए पानी में 1 छोटा चम्‍मच घिसा अदरक डाल कर 10 मिनट उबालें। दूसरा तरीका है कि अपने पेडु को अदरक के तेल से दिन में कई बार मसाज करें।

मेथी दाना

1 कप पानी में 2 छोटे चम्‍मच मेथी डाल कर पानी को उबालें। इसके बाद इस पानी को दिन में एक बार पियें। खाने में भी मेथी दाने का प्रयोग करें। इससे दर्द और सूजन दूर होती है।

नींबू

नींबू दर्द, अपच और कब्‍ज से राहत दिलाता है। यह विटामिन सी से भरपूर है इसलिये यह इम्‍मयूनिटी भी बढाता है। इसका सेवन करने के लिये एक नींबू निचोड़ कर उसमें कच्‍ची शहद मिलाइये। इस मिश्रण को दिन में कई बार लीजिये। ऐसा कुछ हफ्तों तक लगातार करें।

पुदीना

यह अंदर की गैस, मतली और चक्‍कर जैसे लक्षणों को दूर करता है। यह अपेंडिक्‍स के दर्द को भी ठीक करता है। इसका सेवन करने के लिये पुदीने की चाय तैयार करें। 1 चम्‍मच ताजी पुदीने की पत्‍तियों को 1 कप खौलते पानी में 10 मिनट तक उबालें। इसे छान कर इसमें कच्‍ची शहद मिलाएं। फिर इसे हफ्तेभर दो या तीन पर रोजाना पियें।

फाइबर युक्‍त आहार

आहार में लो फाइबर अपेंडिक्‍स को दावत दे सकता है। इसलिये आपको हाई फाइबर वाले आहार जैसे, बींस, खीरा, टमाटर, चुकंदर, गाजर, ब्रॉक्‍ली, मटर, ब्राउन राइस, मुनक्‍का, वीट जर्म, कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीज और अन्‍य ताजे फल तथा सब्‍जियां।

तरल पदार्थ

खूब सारा तरल पदार्थ पीने से कब्‍ज की समस्‍या दूर होती है, जिससे अपेंडिक्‍स भी जल्‍द ठीक हो जाता है। इससे शरीर की गंदगी भी दूर होती है। आप पानी के अलावा फ्रूट जूस वो भी बिना शक्‍कर के पी सकते हैं। हो सके तो ठोस आहार कम कर दें और ढेर सारा तरल पदार्थ ही पियें। इसके अलावा शराब और कैफीन का सेवन ना करें, नहीं तो आप डीहाइड्रेशन का शिकार हो सकते हैं।

लहसुन

रोजाना खाली पेट 2 से 3 कच्‍ची लहसुन का सेवन करें। आप खाना पकाते वक्‍त भी लहसुन का प्रयोग कर सकते हैं। दूसरा ऑपशन है कि आप डॉक्‍टर की सलाह से गार्लिक कैप्‍सूल का सेवन भी कर सकते हैं।

सिनुआर :

सिनुआर के पत्तों का रस 10 से 20 ग्राम सुबह-शाम खाने से आंतों का दर्द दूर होता है। साथ ही सिनुआर, करंज, नीम और धतूरे के पत्तों को एक साथ पीसकर हल्का गर्म-गर्म जहां दर्द हो वहां बांधने से लाभ होता है।

नागदन्ती :

नागदन्ती की जड़ की छाल 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम निर्गुण्डी (सिनुआर) और करंज के साथ लेने से आंतों के दर्द में लाभ होता है। यह आंत में तेज दर्द हो या बाहर से दर्द हो हर जगह प्रयोग किया जा सकता है। यह न्यूमोनिया, फेफड़े का दर्द, अंडकोष की सूजन, यकृत की सूजन तथा फोड़ा आदि में फायदेमंद है।

रानीकूल (मुनियारा) :

रानीकूल की जड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम लेने से लाभ होता है। इससे आंत से सम्बन्धी दूसरे रोगों में भी फायदा होता है। इसका पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती का चूर्ण) फेफड़े की जलन में भी फायदेमंद होता है।

हुरहुर :

पेट में जिस स्थान पर दर्द महसूस हो उस स्थान पर पीले फूलों वाली हुरहुर के सिर्फ पत्तों को पीसकर लेप करने से दर्द मिट जाता है।

पालक का साग :

आंत से सम्बन्धित रोगों में पालक का साग खाना फायदेमंद है।

चौलाई :

चौलाई का साग लेकर पीस लें और उसका लेप करें। इससे शांति मिलेगी और पीड़ा दूर होगी।

बड़ी लोणा :

बड़ी लोणा का साग पीसकर आंत की सूजन वाले स्थान पर लेप लगायें या उसे बांधें। इससे दर्द कम होता है और सूजन दूर होती है।

चांगेरी : 

चांगेरी के साग को पीसकर लेप बना लें और उसे पेट के दर्द वाले हिस्से में बांधें। इससे लाभ होगा।

चूका साग :

चूका साग सिर्फ खाने और दर्द वाले स्थान पर ऊपर से लेप करने व बांधने से ही बहुत लाभ होता है।

जरुरी टिप्‍स-

रोजाना नमक मिला कर छाछ पियें।
कब्‍ज से दूरी बनाएं क्‍योंकि इससे कंडीशन और भी खराब हो सकती है।
एक अच्‍छी डाइट लें, जिसमें ताजे फल और हरी पत्‍तेदार सब्‍जियां शामिल हों।
डेयरी प्रोडक्‍ट्स, मीट और रिफाइंड शुगर ना खाएं।
विटामिन बी, सी और ई को अपने भोजन में शामिल करे।
अपने पेडु को छींकते, खांसते और हंसते वक्‍त अपने हाथों से सर्पोट दे कर पकड़ें, जिससे दर्द ना हो।
थकान होने पर हमेशा आराम करें और अच्‍छी नींद लें।

यहाँ क्लिक कर के पढ़े अपेंडिक्स अर्थात आंत्रपुच्छ शोथ (अपेण्डिसाइटिस) का रामबाण इलाज। अगर डॉक्टर ने ऑपरेशन की सलाह भी दे दी हो तो भी ये प्रयोग ज़रूर कर के देखे।  

 

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