जलोदर का इलाज Ascites treatment in ayurved – jalodar ka ilaj
jalodar ka ilaj – जलोदर शब्द ही रोग को स्पष्ट कर देता है अर्थात पेट में जल भर जाना. संक्षेप में इतना बतला देना ही काफी है के जब रोगी के पेट में पानी भर जाता है तो उस हालत को जलोदर रोग कहते हैं. पेट में जल भरने के अलावा हाथ, पाँव और मुख पर शोथ अर्थात सूजन आ जाती है. और इसमें खांसी, श्वांस के चिन्ह भी प्रकट हो जाते हैं.
जलोदर का कारण – Jalodar ka ilaj
मिथ्या आहार विहार, मीठे तथा चिकने पदार्थों एवं शराब का अधिक सेवन, गरिष्ठ भोजन (मीट, मांस अधिक वसा वाला) करते रहना और शारीरिक परिश्रम ना करना. वायु तथा प्रकाशहीन गंदे मकानों में रहना, अत्यधिक शारीरिक या मानसिक परिश्रम करना, हर समय चिंतित रहना, बहुत समय तक पेट के रोगों तथा मलेरिया आदि रहने से प्लीहा अर्थात Spleen यकृत अर्थात liver के दूषित हो जाने के साथ मन्दाग्नि आदि हो जाने से उदर व् उदावरण के बीच में एक तरल द्रव्य एकत्र होने लगता है. इसी प्रकार यकृत दूषित हो जाने से यकृतजन्य जलोदर उत्पन्न होता है. हृदय विकार में अंत में जलोदर उत्पन्न होता है.यह रोग सभी स्त्री पुरुषों में सामन रूप से देखने में आता है.
जलोदर वास्तव में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है. Liver Heart और Kidney के दूषित होने से यह रोग उत्पन्न होता है. Liver के कारण हुए जलोदर की यह भी एक परीक्षा है के उदर में जल भरने के अतिरिक्त शरीर के अन्य अंगो पर शोथ अर्थात सूजन दिखाई नहीं देती बल्कि हाथ पाँव पतले पड़ जाते हैं. किन्तु हृदय, प्लीहा, और वृक्क दोष अर्थात किडनी रोगों से उत्पन्न होने वाले जलोदर में हाथ पाँव और मुख पर शोथ आ जाता है. हृदय दोष, जलोदर में कास अर्थात खांसी, श्वांस रोगों के चिन्ह भी प्रकट हो जाते हैं.
जलोदर की चिकित्सा – Jalodar ka ilaj
जलोदर की उत्तम चिकित्सा आयुर्वेद में ही मिलती है, डॉक्टरी में तो यंत्र द्वारा पेट से पानी निकालते हैं. किन्तु थोड़े दिन ही लाभ प्रतीत होता है और पुनः पेट में पानी भर जाता है. इस प्रकार 3 से 4 बार पेट में पानी भरने से और निकालने की क्रिया (Tapping) अंत में सफल नहीं होती और रोगी क्रमशः क्षीण होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.
इस रोग की चिकित्सा कष्ट साध्य है. यदि रोग के आरम्भ होते ही योग्य चिकित्सक से निदान कराकर इलाज कराया जाए तो निश्चय ही आराम हो जाता है. इस रोग की चिकित्सा में दस्तों और मूत्र द्वारा जल निकालने के साथ साथ रक्त शुद्धि और रोगी के बल को स्थिर रखने का ध्यान रखना आवश्यक है. सबसे पहले रोगी के पेट की शुद्धि करनी चाहिए, और रोग का उचित निदान करके चिकित्सा करें. यथा पांडूजन्य अर्थात पीलिया से हुआ जलोदर में शोथहर लोह, यकृतजन्य अर्थात लीवर के कारण हुए जलोदर में लोह शिलाजीत युक्त चंद्रप्रभा पुनर्नवा के काढ़े के साथ उचित अनुपान से दें.
जलोदर में परहेज – jalodar ka ilaj
जलोदर होने पर सर्वप्रथम रोगी को कुछ परहेज तुरंत करवाने चाहिए, परहेज ना करने पर ये रोग बिलकुल भी सही नहीं हो पाटा. एक तो रोगी का पानी बिलकुल बंद कर देना चाहिए, पानी की जगह पर रोगी को प्यास लगने पर आधा दूध और आधा पानी दोनों को मिलाकर अच्छे से उबाल कर ठंडा कर के रख लेना चाहिए, और यही पीने को दीजिये, अगर फिर भी प्यास ना मिटे तो अर्क मकोय (हमदर्द का मिल जाता है) थोडा थोडा देते रहें. दिन में मक्खन निकली हुई छाछ दे सकते हैं, रोगी के लिए सब प्रकार के नमक ज़हर के समान है, हरी सब्जी नहीं देनी है.
जलोदर के रोगी की छाछ
छाछ बनाने की विधि ये है के रात्रि को दूध गर्म करते समय इसमें एक चममच त्रिकटु पाउडर मिलाना है, जब यह गर्म हो जाए तो इसी में ही दही का जामण लगाना है और दही को मिटटी की हांडी में जमाना है. और इसी दही से रोगी के लिए छाछ बनानी है. छाछ बनाने के बाद इसमें से अच्छे से मथ कर मक्खन निकाल देना है. और यही छाछ देनी है.
इसके साथ में अभी हम यहाँ कुछ अनुभूत योग लिख कर इसे समाप्त करते हैं.
जलोदर का प्रथम योग – jalodar ka ilaj
पीपल बड़ी 50 ग्राम., बड़ी हर्र्ड का बक्कल अर्थात इसका उपरी छिलका 50 ग्राम, इन दोनों को यवकूट अर्थात मोटा मोटा कूट कर अष्टधारा सेंहुड (थोहर) के दूध में 24 घंटे भिगोकर फिर इसको बारीक पीसकर झडबेरी के बेर के समान गोली बना लें. (झडबेरी के बेर मोटे और बड़े होते हैं) इसकी फोटो नीचे लगा दी गयी है. बलवान आदमी को एक गोली और निर्बल को आधी गोली खिलाकर ऊपर से शरपुंखा का काढ़ा पिलादें. शरपुंखा का काढ़ा बनाने की विधि यह है के 25 ग्राम शरपुंखा को 400 मि.ली. पानी में औटावें, जब यह 1/4 रह जाए अर्थात 100 ग्राम रह जाए तो इसमें 25 ग्राम मिश्री मिला दें. यह काढ़ा ऊपर वाली गोली खिला कर पिला दें.
नोट – यह ऊपर बताई गयी गोली दांत से नहीं लगनी चाहिए और ना ही चबाना चाहिए. यह दांतों के लिए हानिप्रद है. सीधे ही निगल लें. यदि इस गोली से दस्त ना हों तो हर तीसरे दिन ऊंटनी का दूध या भेड़ का दूध आधा पाव 125 ग्राम, ग्राम पिलाकर दस्त करा देना चाहिए, यदि ऊँटनी या भेड़ का दूध ना मिले तो इच्छा भेदी रस या किसी रेचक चूर्ण से दस्त करा देना उचित है. जलोदर रोगी का कोष्ठ बहुत क्रूर हो जाता है अतः कोई रेचक दवा पाच जाए और दस्त ना हो तो घबराएं नहीं. उसके अनुपान में बदलाव करवा कर दस्त करवा देना चाहिए.
इस प्रयोग में केवल बकरी का दूध मिश्री मिला हुआ पिलाना चाहिए, अन्न आदि कोई वस्तु कदापि खाने को न दें. नमक और पानी देना भी बंद कर दें. रोगी को जब भी प्यास या भूख लगे तो दूध ही दें. यदि दूध से प्यास शांत ना हो तो आधे गिलास पानी को अच्छे से उबाल दिला कर इसमें आधा गिलास दूध मिला कर दें. यदि बकरी का दूध ना मिले तो देसी गाय का दूध दीजिये.
थूहर का चित्र.
थूहर या सेंहुड की कई प्रजातियाँ आती है, इसमें त्रिधारा, चार धारा इत्यादि आती है, इसकी डंडी के ऊपर कितनी डंडियाँ निकल रही हैं ये इस से पता चलता है के ये कौन सा सेंहुड है, कोशिश करे के अष्टधारा सेंहुड ही मिले अन्यथा इनको भी ले सकते हैं.
जलोदर का दूसरा योग – jalodar ka ilaj
50 ग्राम पीपल को अष्टधारा थोहर के दूध में घोटकर चणक के जैसी गोलियां बनाकर प्रातः और सांय 2 2 गोलियां गर्म दूध के साथ सेवन करना लिखा है. और खाने में केवल गर्म दूध ही देना है. अन्न जल कुछ भी नाह देना है. अगर अधिक प्यास हो तो अर्क मकोय पिला सकते हैं. इस योग को बहुत बार का अनुभात बताया है.
नोट – यह योग बहुत उत्तम है किन्तु इसमें भी हर तीसरे दिन रेचन अर्थात दस्त कराना उचित है. और अगर गोलियों के सेवन से ही दस्त होते रहें तो फिर रेचन करवाने की ज़रूरत नहीं.
जलोदर का तीसरा प्रयोग – jalodar ka ilaj
कुटकी 40 ग्राम यवकूट कर के 200 ग्राम जल में काढ़ा बना लें. चौथाई जल शेष रहने पर अर्थात 50 ग्राम रहने पर इसको अच्छे से मल ले पानी में ही, फिर इसको कपडे की मदद से छान लें. इसी प्रकार प्रतिदिन सुबह नया काढ़ा बनाकर 21 दिन तक रोगी को निरंतर पिलायें. इस प्रयोग में दिन में 4 से 5 दस्त आयेंगे और रोगी की शारीरिक शक्ति दिन बी दिन क्षीण होती जाएगी. तीसरे सप्ताह जलोदर से बढ़ा हुआ पेट अपने असली आकार में आ जायेगा. हाथों पांवो की सूजन मिट कर शरीर बेहद नर कंकाल जैसा दिखेगा. किन्तु चिकित्सक इसकी परवाह ना करें बल्कि धैर्य पूर्वक चिकित्सा उचित अनुपान से चालु रखें.
अभी जलोदर में अति विशेष – Jalodar ka ayurvedic ilaj
यदि हाथ, पाँव, पिंडलियों तथा चेहरे पर शोथ हो तो भैंस के दूध के मक्खन में काले तिल एवं शुष्क मकोय फल अर्थात मकोय का सूखा फल समान समान भाग में मिला कर अर्थात मक्खन काले तिल और मकोय बराबर बराबर ले कर सुबह सुबह सूजन वाली जगह पर अच्छे से लेप कर दें. और शाम को ये छुड़ा दें. इसी प्रकार ये प्रयोग कम से कम 21 दिन तक करें. और इन दिनों में गाय का दूध ही सेवन करें. इसमें देशी शक्कर मिला कर दे सकते हैं. रोगी को जब प्यास या भूख लगे तो केवल दूध ही दें. यदि दूध से प्यास शांत न हो तो आधे गिलास पानी को उबाल कर इसमें आधा दूध मिला कर ही दें. रोगी को सादा पानी और नमक बिलकुल बंद कर देना चाहिए. 21 दिन के बाद रोगी को 25 ग्राम साठी चावल का मांड तैयार करके 60 ग्राम की मात्रा में दें. (मांड चावलों को उबालने के लिए डाला गया पानी है, जो चावलों के पकने के बाद बचता है) हर रोज़ 6 – 6 ग्राम चावल का वजन बढ़ाना चाहिए, एक हफ्ते तक दिन में पहले पहर अर्थात सुबह 9 baje तक यही देना चाहए. बाकी समय जब भी भूख प्यास लगे तो सिर्फ दूध ही दें. 26 वें दिन 50 ग्राम चावलों का मांड तैयार करके इस मांड मिले हुए चावल अगर मिश्री मिला कर खाना चाहें तो मिश्री मिला कर एक हफ्ते तक खाने को दें. बाकी समय रोगी को दूध और फल दें. 36 वें दिन से मांड मिश्रित चावलों के साथ मूंग तथा मोठ का यूष बनाकर देना शुरू करें. फिर दोनों समय सुबह और शाम यह यूष और मांड वाले साठी चावल खाएं. और क्रमशः रोगी को भोजन पर लायें. इस प्रकार नियमित चिकित्सा से भयंकर जलोदर भी शमन हो जाती है. इन प्रयोग काल में जितना परहेज हो उतना ही बेस्ट है. वैसे तो इस समय दूध से उत्तम कुछ भी नहीं, अगर फिर भी रोगी को कुछ खाने को मन करें तो वो थोड़े बहुत फल ले सकता है.
यह पोस्ट क. गणपत सिंह वर्मा जी की अनुभूत योग प्रकाश से ली गयी है. आपको ये पोस्ट कैसी लगी, कृपया अपने विचार और सवाल ज़रूर साझा करें. हम यथा कोशिश करेंगे आपके हर सवाल का जवाब देने की. धन्यवाद
इसके साथ में बनी बनी दवाएं जो दे सकते हैं.
1. आरोग्यवर्धनी गुटिका,
मात्रा 1- 1 गोली (3 – 6 रत्ती)
अनुपान – दूध, पुनार्नावादी कवाथ या केवल पुनर्नवा का क्वाथ, दशमूलक्वाथ, मूत्रलकषाय आदि. यह जलोदर में शोथ में पीलिया में किया जाता है.
2. पुनर्नवा मंडूर
मात्रा – 1 से 2 गोली
अनुपान – यकृत की वृद्धि तथा सूजन में पुनार्नावादिक्वाथ और क्रिमी विकार में मुस्तादिक्वाथ में.
३. किडनी Reactivator
Kidney Reactivator – किडनी रीएक्टिवेटर Only Ayurved द्वारा बनायी गयी विशेष दवा है जो किडनी के कारण हुए जलोदर में अत्यंत लाभ देती है, सुबह शाम 15 – 15 ml पुनर्नवा मंडूर के साथ में इसका सेवन करने से आशातीत लाभ मिलता है.
अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़ें – Kidney Reactivator
इसके अलावा पुनार्नावादी (पुनार्नावाष्टक) कषाय, मूत्रलकषाय, कुमार्यासव को रोग देखकर उचित अनुपान के साथ देना चाहिए.
उपरोक्त बताये हुए प्रयोग सिर्फ अनुभवी वैद के सानिध्य में करने चाहिए, इनको करने से दस्त वगैरह हो कर रोगी का शरीर कमज़ोर हो सकता है.