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बच्चों को जंक फूड से दूर रखना चाहते हैं ? तो ये है तरीका..

HOW TO KEEP CHILD AWAY FROM JUNK FOOD

दिनों-दिन लोगों का लाइफस्टाइल बदलता जा रहा है। रातों को देर तक जागना जैसे उनके लाइफ का हिस्सा बन गया है। यही नहीं, घर में खाना बनाने की जगह बाहर से ऑर्डर करना, जंक फूड खाना आदि उनकी लाइफस्टाइल का हिस्सा बन चुका है। ऐसे में आने वाली जेनरेशन तो अभी से जंक फूड को ही अपना असली फूड मान चुकी है। बर्गर, पिज़्ज़ा, चाउमिन से आगे ही शायद वह कुछ पसंद करते हैं। ऐसे में हर पेरेंट्स की यही इच्छा होती है कि उनका बच्चा पोष्टिक खाना और हरी सब्जियां खाए और जंक फूड की तरफ कम आकर्षित हो।

लेकिन बच्चों को इसके लिए प्रेरित करना पेरेंट्स के लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है। हाल ही में शोधकर्ताओं ने इसका हल निकाल लिया है। उनका कहना है कि इसके लिए बच्चों के सामने हेल्दी फूड को रोमांचक तरीके से रखने की सलाह दी है ताकि बच्चे उसे खाकर स्वस्थ रह सकें।

फ्राइज़ है बच्चों के फेवरिट-

फास्ट फूड रेस्तरां में फ्राइज या बुफे में फेवरिट रेड मीट जैसी चीज़ होने के कारण बच्चों के लिए हेल्दी ऑप्शन चुनना बेहद मुश्किल होता है। अध्ययन से साबित हुआ कि सेब का विकल्प मौजूद होने पर भी, ज्यादातर बच्चों ने सेब की तुलना में फ्रेंच फ्राइज लेना पसंद किया।अमेरिका के कॉर्नेल फूड और ब्रांड लैब के डेविड जस्ट ने कहा, “हमने अनुमान लगाया था कि पसंदीदा फ्रेंच फ्राइज का विकल्प होने की स्थिति में बच्चे हेल्दी ऑप्शन का चुनाव नहीं करेंगे।”टीम ने छह से आठ साल की उम्र के 15 बच्चों पर यह प्रयोग किया जिसमें उन्होंने यह देखने के लिए एक फास्ट फूड रेस्तरां से चिकन नगेट्स मंगवाए कि बच्चे हेल्दी विकल्प का चुनाव करते हैं या नहीं।
शोध में शामिल आधे बच्चों को खाने के साथ फ्रेंच फ्राइज दिए गए और उनसे कहा गया कि वे उसकी जगह सेब ले सकते हैं और बाकी बच्चों को सेब दिया गया और उनसे कहा गया कि वे उसकी जगह फ्रेंच फ्राइज ले सकते हैं।

परिणाम से ज्ञात हुआ कि जब बच्चों को पहले सेब दिया गया, लेकिन बाद में विकल्प के तौर पर फ्रेंच फ्राइज भी रखे गए तो उनमें से 86.7 प्रतिशत बच्चों ने सेब की जगह फ्राइज लिए।

एक अन्य शोधकर्ता ब्रायन वानसिंक ने कहा, “सेब के साथ थोड़े से फ्रेंच फ्राइज देना भी एक अन्य उपाय है। इससे बच्चों को अपने पसंदीदा खाने से दूर नहीं रहना पड़ेगा, वे केवल उसे कम मात्रा में खाएंगे।”

शोध पत्रिका ‘बीएमसी रिसर्च नोट्स’ में प्रकाशित हुआ है।

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