मालकंगनी (ज्योतिष्मति)…….जो मति अर्थात बुद्धि को चमका दे!!
आयुर्वेद मे अमृत………… सर्दी में ईश्वरीय वरदान
आज बाजार मे मिलने वाले जितने भी टॉनिक (च्यवन प्राश, होर्लिक्स, बोर्नविटा, बूस्ट, बॉडी बिल्डिंग के सप्लीमेंट्स आदि ) हैं, यदि उन सब को भी बराबर मे रख दिया जाए तो हजारो रुपए के ये टॉनिक मालकंगनी के सामने कुछ नहीं। गरीब के लिए सोना-चांदी च्यवनप्राश से हजार गुना बेहतर है तो, पढे लिखे मूर्खों के होर्लिक्स से हजार गुणा ज्यादा गुणकारी।
मालकंगनी एक पौधे के बीज हैं, जो पूरे भारत मे सभी जड़ी बूटी वालों(पंसारी) के यहाँ आसानी से मिल जाते हैं। इसके बीजों से तेल भी बनाया जाता है, जो गहरे पीले रंग का व स्वाद में अत्यधिक कड़वा होता है। बाजार मे यह बीज व तेल के रूप मे मिलती है। इन दोनों के गुण समान हैं। क्योंकि तेल बहुत कड़वा होता है इसलिए बीज का ही प्रयोग अधिक किया जाता है। इसके एक बीज मे ही छह छोटे बीज होते हैं। इसलिए जब मात्रा एक बीज की कही जाए तो उसका अर्थ है, चने के आकार का बीज जिसमे 4-6 छोटे बीज होते हैं।
आयुर्वेद मे जो बुद्धि बढ़ाने वाली दवाइयाँ हैं, उनमे यह मालकंगनी भी है। विद्यार्थियो के लिए सर्दी मे यह अमृत है। च्यवन प्राश, कोड लीवर आयल आदि इसके सामने कोई गुण नहीं रखते। प्राचीन वैद्यो ने इसके स्मृति, याददाश्त बढ़ाने वाले गुण की बहुत प्रशंसा की है। इसका प्रभाव बढ़ाने के लिए इसके साथ साथ शंखपुष्पी चूर्ण का प्रयोग किया जा सकता है। पाँच साल से लेकर सौ साल तक का कोई भी व्यक्ति इसका प्रयोग कर सकता है। वृद्धावस्था मे जब स्मृति भ्रंश हो जाता है, तब भी यह काम करती है। नशा छोड़ने वाले व्यक्तियों के लिए भी बहुपयोगी है। इससे नशा छोडने से होने वाले दुष्प्रभावो मे कमी आती है, क्योंकि यह मानसिक शक्ति को बढ़ाने वाली है।
डिप्रेशन जैसे मानसिक रोगो मे इसका बहुत अच्छा प्रभाव है। डिप्रेशन जैसे अनेक मानसिक रोगो मे मालकंगनी से तत्काल लाभ होता है। मनोरोग की एलोपैथी दवाइयाँ आँख, कान की शक्ति को कम करती है, कमजोरी लाती है और खून की कमी कर देती है। परंतु इससे कोई समस्या नहीं है। इसका प्रभाव बढ़ाने के लिए इसके साथ साथ शंखपुष्पी चूर्ण का प्रयोग किया जा सकता है।
बार बार होने वाले जुकाम, मौसम बदलते ही होने वाले जुकाम, पूरी सर्दी बने रहने वाले जुकाम मे ये चमत्कारिक असर दिखती है। इस तरह की समस्या से पीड़ित मालकंगनी का कुछ दिन प्रयोग करने से एक साल तक समस्या से मुक्ति पा लेंगे। बहुत से व्यक्ति जिन्हे बड़े अस्पतालो के ENT विशेषज्ञो ने कह दिया था कि सारी उम्र दवाई खानी होगी, उन्हे इससे प्रयोग से कुछ ही दिन मे बीमारी से मुक्ति मिल गई । यह ना सोचे कि हमने तो बड़े अस्पतालो मे हजारो रुपए के टेस्ट करवा लिए हजारो की दवाई खा चुके हमे कुछ नहीं हुआ तो इससे क्या होगा। जो वैद्य केवल स्वर्ण भस्म, मकरध्वज, सहस्रपुटी अभ्रक भस्म और मृगाक रस जैसी कीमती दवाइयो को ही आयुर्वेद मानते है एक बार वह ही इसका चमत्कार देखे। जो इन महंगी दवाइयो से ठीक ना हुए हो वह भी इस मामूली सी दवाई से ठीक हो जाएगे।
जो व्यक्ति सर्दी मे प्रतिदिन सुबह घर से निकलते है वह इसका प्रयोग जरूर करे। यह शरीर मे सर्दी सहन करने की क्षमता को बहुत अधिक बढ़ा देती है। जिसे सर्दी अधिक सताती है वह भी इसका जादू अवश्य देखे।
जिसे लगता है आधा दिन काम करने के बाद ही सारा शरीर दर्द कर रहा है, जो बार बार चाय पीकर थकावट को दूर करने की कोशिश करते हैं, उनके लिए यह आयुर्वेद की संजीवनी बूटी है। मालकंगनी के दस दिन सेवन करने से शरीर मे थकावट महसूस नहीं होगी।
जिनको तनाव से या नजले से या किसी भी अन्य कारण से सिर मे दर्द रहता है वह भी इसके प्रयोग से लाभ उठाए।
मालकंगनी पाचन शक्ति व भूख को बढ़ाती है। इसके प्रयोग करने वाले को दूध घी का प्रयोग अधिक करना चाहिए।
वजन बढ़ाने के इच्छुक इसका प्रयोग जरूर करे। इसके साथ अश्वगंधा, शतावरी आदि का सेवन दोहरा फायदेमंद है।
नव विवाहित पति पत्नी इसका प्रयोग ना करे। व्याभिचारी बदचलन युवक युवती भी इससे दूर रहे। इसके सेवन करते समय संयम की जरूरत है। संयमी को ही इसका पूरा लाभ मिलता है।
जिसके शरीर के किसी भी हिस्से से खून बहता है या एक साल के अंदर इस समस्या से पीड़ित रहा है वह इसका प्रयोग ना करे।
जिसे पेट मे अल्सर या अम्लपित्त है वह प्रयोग ना करे।
जिसे एक साल के भीतर पीलिया (हेपटाइटिस) हुआ है वह इसका प्रयोग ना करे।
जिसे गहरे पीले रंग का मल आता है और बार बार शौच के लिए जाना पड़ता है, वह भी इसका प्रयोग ना करे।
जिसे गुर्दे का कोई रोग या शरीर पर सूजन है, वह भी इसका प्रयोग ना करे।
जिसके मुंह मे बार बार छाले हो जाते है जो एक्जीमा, सोराइसिस या खुजली से ग्रस्त हैं, वह भी इसका प्रयोग ना करे।
इसके तेल की एक बूंद से दस बूंद तक दिन मे दो बार सेवन कीजिये। शुरुआत मे एक बूंद ले, बाद मे बढ़ाते हुए दस बूंद तक लिया जा सकता है। अधिक मात्रा लेने से गर्मी लगने लगती है। अत्यधिक कडवे होने के कारण इसे चम्मच मे लेकर चाट ले और ऊपर से दूध पी ले। इसे देशी घी या बादाम रोगन मे मिलाकर प्रयोग किया जाए तो अधिक लाभ होता है और हानि की संभावना कम हो जाती है।
साबुत बीज एक से तीस तक लिए जा सकते है। पहले दिन एक बीज दूसरे दिन दो बीज, इसी तरह तीस बीज तक दूध के साथ सेवन करें। यदि गर्मी महसूस हो तो मात्रा कम कर दे।
इसके 100 ग्राम बीजो को 100 ग्राम शुद्ध देशी घी मे धीमी आग पर भूनकर पीस लें।। ध्यान दे की जल ना जाए। 1/4 चम्मच से 2 चम्मच तक की मात्रा दूध से ले। छोटे बच्चो को मीठा मिलाकर भी दे सकते है।