परिचय-
सुजाक और आतशक (उपदंश) यौन रोगों की बहुत ही घिनौनी बीमारियों में गिनी जाती हैं। यह रोग स्त्री और पुरुष दोनों को हो सकता है। मूत्रकच्छ,सुजाक,पूयमेह, अथवा गोनारिया एक ही रोग के अलग अलग नाम हैं ।
कारण-
सुजाक या उपदंश रोग स्त्री और पुरुषों के गलत तरह के शारीरिक संबंधों के कारण होने वाले रोग है। जो लोग अपनी पत्नियों को छोड़कर गलत तरह की स्त्रियों या वेश्याओं आदि के साथ संबंध बनाते हैं उन्हें अक्सर यह रोग अपने चंगुल में ले लेता है। इसी तरह से यह रोग स्त्रियों पर भी लागू होता है जो स्त्रियां पराएं पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बनाती हैं उन्हें भी यह रोग लग जाता है।
सिफलिस(गर्मी, आतशक या उपदंश)
सिफलिस सबसे पुराने समय का यौन रोग है। यह पुर्तुगीजों के साथ भारत में पहुँचा, इसीलिये उसे फिरंगरोग भी कहते है यह बीमारी एक स्प्रिंग जैसे कीटाणु स्पायरोकीट्स से होती है। सिफलिस में शुरुआती अवस्था में होने वाले घाव को शैंकर कहते हैं। यह एक दर्द रहित और स्थायी घाव होता है। शैंकर जनन अंगों या मुँह तक में हो जाता है। यह स्थान इस पर निर्भर करता है कि यौन सम्बन्ध कैसा रहा है। जनन अंगीय या मुखीय। इसमें क्योंकि दर्द नहीं होता इसलिए योनि के अन्दर का घाव ढूँढ पाना मुश्किल होता है। इसीलिये महिलाएँ अक्सर सिफलिस के बारे में बताती भी नहीं हैं।
उपदंश रोग के लक्षण-
गलत तरह के शारीरिक संबंधों के कारण होने वाले उपदंश रोग में रोगी व्यक्ति के जननांगों पर जख्म सा बन जाता है। अगर इस रोग के होने पर लापरवाही बरती जाती है तो यह जख्म रोगी के पूरे शरीर में फैल जाते हैं। इस रोग में रोगी के नाक की हड्डी और लिंग गल जाती है। इसके अलावा इस रोग में रोगी व्यक्ति के जोड़ों में दर्द रहने लगता है, स्त्री को बार-बार गर्भपात होने लगता है या बच्चा पैदा होकर मर जाता है या विकलांग पैदा होता है।
जानकारी-
उपदंश रोग के बारे में एक बात याद रखना जरूरी है कि यह रोग कई पीढ़ियों तक अपना असर दिखाता है। इस रोग का इलाज करवाते समय जब तक डाक्टर न कहे या पूरी तरह रोग के ठीक होने की तसल्ली न हो जाए तब तक इलाज करवाना बंद नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर इस रोग का विष शरीर में हल्का सा भी रह जाता है तो कुछ समय के बाद यह रोग फिर से पैदा हो जाता है। इसके लिए चिकित्सक द्वारा इलाज समाप्त करने के बाद एकबार खून की जांच करवाकर रोग की समाप्ति की तसल्ली कर लेनी चाहिए।
सुजाक-
सुजाक रोग गलत किस्म की स्त्रियों के साथ बिना किसी सावधानी के सेक्स करने से होने वाला रोग है। इस रोग में रोगी व्यक्ति के लिंग के अंदर जख्म हो जाता है, मवाद बहता है, पेशाब करते समय जलन होती है और पेशाब बूंद-बूंद करके आता है।
सुजाक रोग से ग्रस्त रोगी जो अब ठीक तो हो चुका हो लेकिन उसके कोई संतान न पैदा हो रही हो तो उसे अपने वीर्य की जांच करानी चाहिए। सुजाक का जहर वीर्य के शुक्राणुओं को समाप्त कर देता है। इस रोग में वीर्य की जांच कराने पर ऊपर से देखने पर तो स्वस्थ मजबूत होता है लेकिन उसके अंदर गर्भ को ठहराने वाले शुक्राणु मौजूद नहीं होते हैं
*.सूजाक बस्थि शोथ- मक्का के भुट्टे के कोमल ताजा रेशो (उपर के बालों) का काढ़ा बनाकर पीने से वेदना का नाश होता है। मूत्र खुलकर आता है। तथा बस्तिशोथ व सुजाक में लाभ होता है।
.सूजाक, चेचक, मसूरिका, रक्तदोष जन्य ज्वर, जलन व दहकता युक्त मूत्रविकार में नींबू के रस व नमक रहित चावल की कांजी या मांड का सेवन करना हितकर रहता है। यदि पेय बनाने के लिये लाल शालि चावल हो तो अत्युत्तम अन्यथा कोई चावल लिये जा सकते है।
गोरखमुंडी के बीजों को पीसकर उसमें समान मात्रा में शक्कर मिलाकर रख लें और एक बार प्रतिदिन दो चम्मच ठंडे पानी से लेने से इन बीमांरियों में फायदा होता है।
* धनियाः धनिया व मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर बने हुए चूर्ण को 5 ग्राम की मात्रा में लेकर ताजा ठंडे पानी के साथ सुबह के समय रोजाना लगभग एक सप्ताह तक इस्तेमाल करने से रोजाना होने वाला स्वप्नदोष समाप्त हो जाता है तथा पेशाब करने वाली नली में दर्द होना, उपदंश और सूजाक आदि रोगों से छुटकारा मिलता है।
* 3 ग्राम त्रिफला (आंवला, हरड़, बहेड़ा तीनो सामान मात्रा) चूर्ण में 1 ग्राम तिल का तेल और 6 ग्राम शहद मिलाकर रोज़ाना खाली पेट गुनगुने पाने के साथ और रात को सोते समय गर्म दूध के साथ ले, इस से पेट और धातु सम्बंधित सब रोग दूर हो कर काय पलट जाती हैं।
* पुराने गुड़ को छाछ के साथ खाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) और सुजाक रोग में लाभ होता है।
* सुजाक एवं पेशाब की जलन में-अलसी के बीजों को पीसकर बराबर मात्रा में मिसरी मिलाकर 3 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार सेवन कराने से लाभ होता है। अलसी के तेल की 3-4 बूँद मूत्रेंद्रिय में डालने से लाभ होता है। पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए। गरम प्रकृति के खाद्य एवं गरम मसालों से बचना चाहिए।
* चंद्रप्रभा वटी सूजाक के कारण होने वाली दिक्कतों को नष्ट करती है। पुराने सूजाक में इसका उपयोग होता है। सूजाक के कारण होने वाले फोड़े, फुंसी, खुजली आदि में इस दवा को चन्दनासव या सारिवाद्यासव के साथ दिया जाता है। यह दवा शरीर से विष को निकालती है और धातुओं का शोधन करती है।
* मृगनाभ्यादि वटी सुजाक, उपदंश या पित्त प्रकोप के कारण पीले रंग का पेशाब बार-बार और थोड़ी-थोड़ी मात्रा में होना, आँखों में जलन, सिर में भारीपन, चक्कर आना, तन्द्रा व आलस्य बना रहना, पाचनशक्ति की कमी और चेहरे की निस्तेजता आदि दोष दूर करने में यह श्रेष्ठ है। यह योग उपदंश, सुजाक और मधुमेह के रोगी के लिए बहुत लाभप्रद है।
* अँगूर का सिरका पीने से अथवा अँगूर खाने से सुजाक (उपदंश) रोग दूर होता है |
* सुजाक व उपदंश:-अमर बेल का रस दो चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से कुछ ही हफ्तों में इस रोग में पूर्ण आराम मिलता है।
* बबूल की गोन्द 2 तोला गाय का मठा पावभर मिलाकर बारह दिन पिवे तो प्रमेह और सुजाक रोग दूर हो जाता है ।
* जँगली गोभी का छत्ता फैला होता है | फूल पीले होते हैं | जँगली गोभी की जड़ 2 तोला ,तथा काली मिर्च सात घोटकर 8 दिन पीये अलोनी रोटी बहुत घी के साथ खाये तो सुजाक आतसक रोग दूर होता है |
* सुजाक की बीमारी में केले की जड़ के रस में थोड़ी चीनी और घी मिलाकर पिलायें , 5 दिनों में आराम मिल जाएगा.
Sir iske liye koi market me medicine ho to bataiye
Plz sir bataiye amarbel ka ras kaise milega ?
Kahi mil nhi rha