Mitti ke bartan ke fayde
कुकर की दाल और मिटटी की हांड़ी की दाल का दिल्ली की लैब में टेस्ट ! आंकड़े आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे
आज के समय में आप जो खा रहे हैं वह आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है और ना ही हरी सब्जियों की कोई गारंटी। मतलब साफ है कि साइंस के इस युग में किसी के स्वास्थ का कोई मोल नहीं है। जबकि हम लोग खाना इसलिए खाते हैं ताकि हमारे शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिल सकें। हमारे खाने में मिनरल्स, विटामिन्स और प्रोटीन मौजूद होते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुण बढ़ाने या घटाने में पकाने वाले बर्तन का विशेष स्थान होता है। स्वास्थ्य के नजरिए से देखा जाए तो आज भी मिट्टी की हांडी में खाना पकाना प्रेशर कुकर की तुलना में कई गुना ज्यादा फायदेमंद होता है। मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से हर बीमारी को शरीर से दूर रखा जा सकता है।
हजारों सालों से हमारे यहाँ मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता आया है। अभी कुछ सालो पहले तक गाँव की शादियों में तो मिट्टी के बर्तन ही उपयोग में आते थे। घरों में दाल पकाने, ढूध गरम करने, दही ज़माने, चावल बनाने और आचार रखने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता रहा है। मिट्टी के बर्तन में जो भोजन पकता है उसमे सुक्ष्म पोषक तत्वों (Micronutrients) की कमी नही होती जबकि प्रेशर कुकर व अन्य बर्तनों में पकाने से सुक्ष्म पोषक तत्वों कम हो जाते हैं जिससे हमारे भोजन की पौष्टिकता कम हो जाती है। खाना धीरे धीरे पकाना चाहिए तभी वह पौष्टिक और स्वादिष्ट पकेगा और उसके सुक्ष्म पौषक तत्वों सुरक्षित रहेंगे।
आयुर्वेद के अनुसार खाना पकाते समय उसे हवा का स्पर्श मिलना बहुत जरूरी होता है। लेकिन प्रेशर कुकर की भाप से खाना पकता नहीं है बल्कि उबलता है। खाना धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। मिट्टी के बर्तनों में खाना थोड़ा धीमा बनता है पर सेहत को पूरा फायदा मिलता है। इंसान के शरीर को रोज 18 तरह के सूक्ष्म पोषक तत्व मिलने चाहिए। जो केवल मिट्टी से ही आते हैं। कैल्शियम, मैग्निशियम, सल्फर, आयरन, सिलिकॉन, कोबाल्ट। मिट्टी के इन्ही गुणों और पवित्रता के कारण हमारे यहाँ पूरी के मंदिरों (उड़ीसा) के अलावा कई मंदिरों में आज भी मिट्टी के बर्तनों में प्रसाद बनता है।
मिट्टी के गुणों और पवित्रता के कारण भारत के यहाँ पुरी के मंदिरों (उड़ीसा) के अलावा कई मंदिरों में आज भी मिट्टी के बर्तनों में प्रसाद बनता है। और भगवान को भोग लगाया जाता है। वैसे भी भगवान श्री कृष्ण को मिट्टी की मटकी बहुत प्रिय है। इस बारे में कई प्रकार के प्रमाण आज भी उपलब्ध है। और अब तो वैज्ञानिकों ने भी इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि मिट्टी के बर्तनों में पकाया हुआ भोजन ही उत्तम होता है। इस संबंध मे स्वदेशी पर काम कर चुके राजीव दीक्षित ने एक वख्यान में बताया कि जब वे एक बार जगन्नाथ पूरी गये थे आप भी गये होंगे, तो वहाँ भगवान् का प्रसाद बनाते हैं, तो प्रेशर कूकर में नहीं बनाते, आप जानते है। वो चाहे तो प्रेशरकुकर रख सकते हैं क्योंकि जगन्नाथ पूरी के मंदिर के पास करोडो रुपयों की संपत्ति हैं। राजीव दीक्षित ने मंदिर के महंत को पूँछा की ये भगवान का प्रसाद, माने वहाँ दाल-चावल मिलता हैं प्रसाद के रूप में, वो मिट्टी के हांडी में कयूँ बनाते है ? आप में से जो भी जगन्नाथ पूरी गए हैं, आप जानते हैं की वो मिट्टी की हांडी में दाल मिलती है और मिट्टी की हांडी में चावल मिलता है या खिचड़ी मिलती है। जो भी मिलता है प्रसाद के रूप में। तो उसने एक ही वाकय कहाँ, मिट्टी पवित्र होती है। तो ठीक है, पवित्र होती है ये हम सब जानते है, लेकिन वो जो नहीं कह पाया महंत वो मैं आपको कहना चाहता हूँ, की मिट्टी ना सिर्फ पवित्र होती हैं, बल्कि मिट्टी सबसे ज्यादा वैज्ञानिक होती हैं। कयोंकि हमारा शरीर मिट्टी से बना है, मिट्टी में जो कुछ हैं, वो शरीर में है, और शरीर में जो है वह मिट्टी में है ।
हम जब मरते हैं और शरीर को जला देते हैं तो 20 ग्राम मिट्टी में बदल जाता है पूरा शरीर, 70 किलो का शरीर, 80 किलो का शरीर मात्र 20 ग्राम मिट्टी में बदल जाता है जिसको राख कहते है । और इस राख का राजीव दीक्षित ने विश्लेषण करवाया, एक लेबोरेटरी में तो उसमें केल्शियम निकलता है, फ ॉस्फोरस निकलता है, आयरन निकलता है, जिंक निकलता हैं, सल्फर निकलता हैं, 18 माइक्रो न्यूट्रिएंट्स निकलते हैं, मरे हुए आदमी की राख में। ये सब वही माइक्रो न्यूट्रिएंट्स है जो मिट्टी में हैं। इन्ही 18 मायक्रो न्यूट्रीअन्ट्स से मिट्टी बनी हैं । यही 18 माइक्रो न्यूट्रिएंट्स शरीर मैं है, जो मिट्टी में बदल जाता है, तो महंत का कहना है की मिट्टी पवित्र है वो, वैज्ञानिक स्टेटमेंट है, बस्स इतना ही है की वो उसे एक्सप्लेन नहीं कर सकता ।
एक्सप्लेन क्यों नहीं कर सकता? आधुनिक विज्ञान उसने नहीं पढ़ा या उसको मालुम नहीं है, लेकिन आधुनिक विज्ञान का रिजल्ट मालूम है; पवित्रता! रिजल्ट उसे मालूम है विश्लेषण मालूम नहीं हैं । वो हमारे जैसे मूर्खो को मालूम हैं, मैं अपने को उस महंत की तुलना से मुर्ख मानता हूँ। कयोंकि राजीव को विश्लेषण करने में 3 महीने लग गये, वो बात 3 मिनट में समझा दिया की मिट्टी पवित्र है। तो ये मिट्टी की जो पवित्रता है,उसकी जो माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की कैपेसिटी या कैपेबिलिटी है, उसमें से आई है, तो मिट्टी में दाल आई है, दाल आपने पकाई है, तो वो महंत कहता है की मिट्टी पवित्र है इसलिए हम मिट्टी के बर्तन में ही दाल पकाते है, भगवान् को पवित्र चीज ही देते हैं । अपवित्र चीज भगवान को नहीं दे सकते ।
राजीव दीक्षित वो दाल ले आये, और भुवनेश्वर ले के गये, पूरी से भुवनेश्वर । भुवनेश्वर में एक लेबोरेटरी है। कौंसिल ऑफ़ साइंस इंडस्ट्रियल रिसर्च की लेबोरेटरी है, जिसको रीजनल रिसर्च लेबोरेटरी कहते है। तो वहाँ ले गया, तो कुछ वैज्ञानिको से कहाँ की ये दाल है, तो उन्होंने कहाँ की हाँ-हाँ ये पूरी की दाल है, राजीव दीक्षित ने कहाँ की इसका विश्लेषण करवाना है की दाल में क्या हैं ? तो उन्होंने कहाँ की, यार ये मुश्किल काम है, 6 – 8 महीने लगेगा राजीव ने कहाँ ठीक है फिर भी तो उन्होंने कहाँ की हमारे पास पुरे इंस्ट्रूमेंट्स नहीं है, जो-जो चाहिए वो नहीं है, आप दिल्ली ले जाए तो बेहतर है । तो मैंने कहाँ दिल्ली ले जाने में खराब तो नहीं होंगी ? तो उन्होंने कहाँ की नहीं होंगी कयोंकि ये मिट्टी में बनी है । तो पहली बार मुझे समझ में आया मिट्टी में बनी है तो खराब नहीं होंगी ।
राजीव भाई वोह दाल दिल्ली ले गये। और भुवनेश्वर से दिल्ली जाने को आप जानते है, करीब-करीब 36 घंटे से ज्यादा लगता है। दिल्ली में दिया, कुछ वैज्ञानिको ने उस पे काम किया, उनका जो रिजल्ट है, जो रिसर्च है, जो रिपोर्ट है, वो यह है की इस दाल में एक भी माइक्रो न्यूट्रिएंट्स कम नहीं हुआ, पकाने के बाद भी, फिर मैंने उन्ही वैज्ञानिकों को कहाँ की भैया प्रेशर कुकर की दाल का भी जरा देख लो तो उन्होंने कहाँ की ठीक है, वो भी देख लेते हैं ।
प्रेशर कुकर की दाल को जब उन्होंने रिसर्च किया। तो उन्होंने कहाँ की, इसमें माइक्रो न्यूट्रिएंट्स बहुत ही कम हैं, मैं पूँछा परसेंटेज बता दो, तो उन्होंने कहाँ की, अगर अरेहर की दाल को मिट्टी के हांड़ी में पकाओ और 100 प्रतिशत माइक्रो न्यूट्रिएंट्स है, तो कुकर में पकाने में 13 प्रतिशत ही बचते हैं, 87 प्रतिशत नष्ट हो गये । मैं पूँछा, कैसे नष्ट हो गये, तो उन्होंने कहाँ की ये जो प्रेशर पड़ा है ऊपर से, और इसने दाल को पकने नहीं दिया, तोड़ दिया, मोलेक्युलेर्स टूट गए हैं, तो दाल तो बिखर गई है, पकी नहीं है, बिखर गयी है, सॉफ्ट हो गयी है ।
तो खाने में हमको ऐसा लग रहाँ है की ये पका हुआ खा रहें है, लेकिन वास्तव में वो नहीं है । और पके हुए से ये होता है की, माइक्रो न्यूट्रिएंट्स आपको कच्चे रूप में शरीर को उपयोग नहीं आते, उनको आप उपयोगी बना ले, इसको पका हुआ कहते है, आयुर्वेद में।
जो सूक्ष्मपोषक तत्व कच्ची अरेहर की दाल खाने पे शरीर को उपयोग में नहीं आएँगे, वो उपयोगी आने लायक बनाये उसको पका हुआ कहाँ जाता है या कहेंगे । तो उन्होंने कहाँ की ये मिट्टी के हांडी वाली दाल क्वालिटी में बहुत-बहुत ऊँची हैं बशर्ते की आपके प्रेशर कुकर के, और दूसरी बात तो आप सभी जानते है,मुझे सिर्फ रिपीट करनी है, की मिट्टी के हांड़ी की बनाई हुई दाल को खा लीजिये, तो वो जो उसका स्वाद है वो जिंदगी भर नहीं भूलेंगे आप। इसका मतलब क्या है ? भारत में चिकित्सा का और शास्त्र पाक कला का ऐसा विज्ञान विकसित हुआ है, जहाँ क्वालिटी भी मेन्टेन रहेगी और स्वाद भी मेन्टेन रहेगा। तो मिट्टी की हांड़ी में बनायीं हुई दाल को खाए तो स्वाद बहुत अच्छा है, और शरीर की पोषकता उसकी इतनी जबरदस्त है, की दाल का सहीं खाने का मतलब उसमें हैं ।
जब गाँव-गाँव घूमते रहते हूँ तो पूँछना शुरू किया, तो लोग कहते है की ज्यादा नहीं 300-400 साल पहले सब घर मे मिट्टी की हांडी की ही दाल थी। राजीव जी ने अपनी दादी को पूछा तो दादी कहती है की, हमारी पूरी जिंदगी भर मिट्टी के हांडी की दाल ही खाते रहें तब मेरे समझ में आया के मेरी दादी को डायबिटीज कयूँ नहीं हुआ, तब मुझे समझ में आया की उसको कभी घुटने का दर्द कयूँ नहीं हुआ? तब मुझे समझ में आया के उसके 32 दाँत मरने के दिन तक सुरक्षित थे, कयोंकि हमने उसका अंतिम संस्कार किया, अगले दिन जब राख ही लेने गये तो सारे उसके दाँत 32 के 32 ही निकले । तब मेरे समझ में आया की 94 वे साल की उम्र तक मरते समय तक चश्मा कयूं नहीं लगन उसकी आंखों पर । और जीवन के आखिरी दिन तक खुद आपने कपडे आपने हाथों से धोते हुए मरी ।
ये कारण है की शरीर को आवश्यक माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की पूर्ति अगर नियमित रूप से होती रहे तो आपका शरीर ज्यादा दिन तक, बिना किसी के मदद लेते हुए, काम करता रहता है । तो मायक्रो न्यूट्रीअन्ट्स का पूरा सप्लाई मिला दाल में, वो खाई थी उसने मिट्टी की हांड़ी में पका पका के । और ना सिर्फ वो दाल पकाती थी मिट्टी की हांड़ी में बल्कि वो दूध भी पकाती थी मिट्टी की हांड़ी में, घी भी मिट्टी की हांड़ी से निकलती थी, दही का मठ्ठा भी मिट्टी के हांड़ी में ही बनता था । अब मेरे समझ में आया की, 1000 सालो से मिट्टी के ही बर्तन क्यों इस देश में आये?
हम भी एलुमिनियम बना सकते थे, अब ये बात में आपसे कहना चाहता हूँ वो यह है हिंदुस्तान भी 2000 साल पहले, 5000 साल पहले, 10000 साल पहले एल्युमीनियम बना सकता था, एल्युमीनियम का रॉ-मटेरियल इस देश में भरपूर मात्रा में है। बॉक्साइट, हिंदुस्तान में बोकसाईट के खजाने भरे पड़े हैं । कर्नाटक बहुत बड़ा भंडार, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश बॉक्साइट के बड़े भंडार है। हम भी बना सकते थे, अगर बोकसाईट है तो एल्युमीनियम बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन हमने नहीं बनाया कयोंकि उसकी जरूरत नहीं थी। हमको जरूरत थी मिट्टी के हंडे की इसलिए हमने मिट्टी की हांड़ी बनाई। और उसी का उपयोग किया।