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डायबिटीज के रोगियों के लिए ग्लाइसेमिक इंडेक्स के फायदे

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डायबिटीज के रोगियों के लिए ग्लाइसेमिक इंडेक्स के फायदे

the benefits of glycemic index For diabetes patients

 

डायबिटीज के मरीजों के लिए ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) को समझना बहुत जरूरी है। इससे उन्हें अपने बढ़ते शुगर लेवल पर नजर रखने में मदद मिल सकती है। जीआई से खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट कंटेंट की वैल्यू और ब्लड ग्लूकोज लेवल पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का पता चलता है। इस प्रकार डायबिटीज के रोगियों को जीआई फूड्स के बजाय हेल्दी फूड्स चुनने में मदद मिलती है।हैदराबाद स्थित अपोलो शुगर हॉस्पिटल में कंसल्टेंट एंडोक्राइनोलॉजिस्ट और डायबिटोलोजिस्ट डॉक्टर मेनका रामप्रसाद  आपको जीआई के महत्व और इसका बैलेंस बनाए रखना क्यों जरूरी है के बारे में बता रहे हैं।

ग्लाइसेमिक इंडेक्स स्केल पर संख्या को ऐसे समझें
दरअसल ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक प्रकार का अंक है जिसकी गणना आसानी से की जा सकती है। अगर आपको 25 ग्राम ग्लूकोज दिया जाए और कुछ समय बाद आपके रक्त में ग्लूकोज के स्‍तर की जांच की जाए। तो आपने जो खाया है और रक्‍त में मौजूद ग्‍लूकोज की मात्रा के भागफल को 100 से गुणा (मल्‍टीप्‍लाई) करने पर खाए हुए पदार्थ का ग्लाइसेमिक इंडेक्स आ जायेगा। यानी ग्लूकोज और खाए गये पदार्थ की वह मात्रा जिसके सेवन से रक्त में ग्लूकोज का स्तर समान रूप से बढ़ता है, इसके अनुपात को 100 से मल्टीप्लाई करने पर उस पदार्थ का ग्लाइसेमिक इंडेक्स प्राप्त हो जाता है। ऐसे आहार का सेवन कीजिए जिससे ग्‍लाइसेमिक इंडेक्‍स 50 से अधिक न हो।

कम जीआई वाले फूड्स (55 से कम) शरीर में धीमी गति से अवशोषित होते हैं और पचते हैं। इनसे ना केवल ब्लड ग्लूकोज लेवल धीमी गति से बढ़ता है बल्कि इंसुलिन का लेवल भी कंट्रोल में रहता है। इससे ना केवल डायबिटीज से रोगियों को लाभ होता है बल्कि जिन्हें डायबिटीज नहीं है उन्हें भी इसके खतरे से बचने में मदद मिलती है। इसलिए डायबिटीज के रोगियों को कम जीआई (6- 69) वाले फूड्स खाने चाहिए।

ग्लाइसेमिक इंडेक्स रेटिंग सिस्टम,फाइबर की मात्रा,स्टार्च का साइज,बनाने का तरीका आदि जानने के लिए next पर क्लिक करे 

डायबिटीज के रोगियों के लिए ग्लाइसेमिक इंडेक्स के फायदे

the benefits of glycemic index For diabetes patients

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ग्लाइसेमिक इंडेक्स रेटिंग सिस्टम

आपको बता दें कि जीआई वैल्यू के अलावा अन्य कई ऐसे कई कारक हैं, जो कार्बोहाइड्रेट के प्रति शरीर में होने वाली प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं। दरअसल उम्र, फिजिकल एक्टिविटी लेवल और मेटाबोलिज्म इसमें अहम रोल निभाते हैं कि कार्बोहाइड्रेट कैसे काम करता है। इसके अलावा, जिस तरह से कोई विशेष भोजन तैयार किया जाता है, उससे भी उसकी जीआई वैल्यू बदल सकती है।

स्टार्च का साइज-

जिस चीजों में स्टार्च का साइज कम होता है उसमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स उतना ही अधिक होता है। इसके अलावा कच्चे खाद्य पदार्थ जिनमें लार्ज पार्टिकल साइज़ होता है उनमें पके हुए फूड्स की तुलना में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है।

बनाने का तरीका-

देर तक पकने वाली चीजों में जीआई वैल्यू अधिक होती है जबकि कम समय में पकने वाली चीजों में कम।

फाइबर की मात्रा-

अधिक फाइबर वाली चीजों की कम या मध्यम जीआई वैल्यू होती है और इसलिए इन चीजों को डायबिटीज के मरीजों को खाने की सलाह दी जाती है।

आपको बता दें कि फूड्स की जीआई वैल्यू डायट पर अधिक कंट्रोल करने में सहायक है। ऐसे लोग जो डायबिटीज से पीड़ित नहीं है उन्हें भी हाई और लो ब्लड शुगर लेवल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए हर किसी को अपने खाद्य पदार्थों की पोषण सामग्री की जानकारी होनी चाहिए।

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