दिशाओ का वैज्ञानिक पहलु और स्वास्थ्य प्रभाव।
ज्योतिष, वास्तु, तंत्र मंत्र इत्यादि विद्याओ में जितना महत्व दिशा ज्ञान को दिया हैं उस से भी कहीं अधिक इसका महत्व स्वास्थ्य के ऊपर परिलक्षित हैं। हमारे पूर्वज इस दिशा ज्ञान को भली भाँती जानते थे। उनकी समझ इतनी अधिक थी के वो रात के अँधेरे में बिना पगडंडियों के भी सिर्फ तारो की मदद से ही अपना सफर तय कर लेते थे। इतना ही नहीं उन्होंने दिशा ज्ञान को अपने जीवन में धारण कर अनेको वर्षो तक आरोग्य प्राप्त किया।
आज हम आपको इसी सन्दर्भ में बताने जा रहे हैं उनकी इस मान्यता के पीछे छिपे हुए रहस्य के वैज्ञानिक पहलु को।
वैज्ञानिक पहलु
आज के वैज्ञानिक मत के अनुसार पृथ्वी पर दो ध्रुव हैं, उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव। इन दोनों ध्रुवो के मध्य विद्युत तरंगे प्रवाहमान होती रहती हैं। विज्ञान के अनुसार उत्तरी ध्रुव में पॉजिटिव (धन) विद्युत का तथा दक्षिणी ध्रुव में नेगेटिव (ऋण) विद्युत का प्रवाह होता हैं। विज्ञान यह भी मानता हैं के मानव के सिर में धनात्मक विद्युत का प्रवाह होता हैं, और नीचे के भागो में ऋणात्मक विद्युत का प्रवाह होता हैं। ये बात सर्व विदित हैं के परस्पर समान आवेश वाली विद्युत एक दूसरे से दूर भागती हैं (ऐसा बचपन में हमने दो चुंबको के टुकड़ो को एक दूसरे के समीप ला कर देखा होगा, कैसे वो समान रहने पर एक दूसरे से दूर भागते हैं और विपरीत रहने पर एक दूसरे से चिपक जाते हैं।)
ठीक इसी वैज्ञानिक पहलु के अनुसार जब व्यक्ति दक्षिण दिशा की और सिर कर के सोता हैं तो उसके सिर की धन विद्युत एवं दक्षिण ध्रुव की ऋण विद्युत के मध्य आकर्षण पैदा होने के कारण दोनों के मध्य एक सहज प्रवाह स्थापित हो जाता हैं, फलस्वरूप मानव शरीर भी बिना किसी गतिरोध के प्रगाढ़ निद्रा के आगोश में समाने लगता हैं। यदि व्यक्ति के सिर की दिशा और ध्रुव के आवेश के मध्य विषम स्थिति होती हैं तो उनके बीच में सहज प्रवाह नहीं हो पाता, जिस कारण व्यक्ति अनिद्रा, सिरदर्द, बुरे स्वप्न, स्मरणशक्ति में कमी, रात को सोते समय छाती पर दबाव आदि महसूस करता हैं।
हमारे पूर्वजो ने इसी विज्ञान को हमें हमारे शास्त्रो में उल्लेखित कर के हमको हर विशेष कर्म के लिए विशेष दिशा का ज्ञान दिया हैं। आइये अब जानते हैं प्रमुख कर्मो में कौन सी दिशा में बैठना या लेटना चाहिए।
सोने के नियम
सोने के सन्दर्भ में आयुर्वेदीय ग्रन्थ अष्टांग संग्रह में भी पूर्व एवं दक्षिण दिशा की और सर कर के सोने का निर्देश किया गया हैं – प्राग्दक्षिण शिरा :। इसलिए सदा पूर्व अथवा दक्षिण दिशा की तरफ सिर करके सोना चाहिए। उत्तर पश्चिम में सिर करके सोने से आयु क्षीण होती हैं तथा शरीर में रोग पैदा होता हैं।
हमेशा पूर्व दिशा में सिर करके सोयें जिन बच्चों को लम्बाई कम रहती है तो वो दक्षिण दिशा में सिर करके सोयें।
गृहस्थ के लिए दक्षिण दिशा अच्छा है।
सन्यासियों, ब्रह्चारियों के लिए पूर्व दिशा में सिर करके सोना चाहिए।
आचार मयूख में वर्णन मिलता हैं के पूर्व दिशा की तरफ सिर करके सोने से विद्या की प्राप्ति होती हैं। दक्षिण दिशा की और सिर करके सोने से धन (अर्थात तेज़ दिमाग) तथा आयु (अर्थात स्वस्थ्य) की वृद्धि होती हैं, पश्चिम की तरफ सिर करके सोने से प्रबल चिंता होती हैं। और उत्तर की तरफ सर करके सोने से हानि तथा मृत्यु(अर्थात आयु क्षीण) होती हैं। और हिन्दू धर्म के अनुसार मरणासन्न व्यक्ति का सिर उत्तर दिशा की तरफ और मृत्यु के बाद अंत्येष्टि संस्कार के समय उसका सर दक्षिण की तरफ रखा जाता हैं।
हिन्दू शास्त्रो में ऐसे रोचक सन्दर्भ भी मिलते हैं जिनमे कहा गया हैं के अपने घर में पूर्व दिशा की तरफ सिर करके सोना चाहिए। ससुराल में दक्षिण दिशा की तरफ सिर कर के सोना चाहिए।
पढ़ने वाले युवको के लिए दिशा।
उत्तर पूर्व के बीच ईशान कोण की और मुख करके बैठ कर पढाई करने से ज्ञान व् सर्व गुणों की प्राप्ति होती हैं।
भोजन की दिशा
भोजन पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंह करके ही करना चाहिए। दक्षिण दिशा ओर पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है।
शौच इत्यादि कर्म।
मल मूत्र त्याग के लिए दिशा विज्ञान कहता हैं के दिन में उत्तर दिशा की और तथा रात्रि में दक्षिण दिशा की और मुख करके मलमूत्र त्याग करना चाहिए। इससे आरोग्य मिलता हैं। इसके विपरीत अगर सुबह पूर्व दिशा की और तथा रात्रि को पश्चिम की और मुख करके मलमूत्र त्याग करते हैं तो आधासीसी रोग होने की बहुत संभावना रहती हैं।
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Satya Vachan
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