Benefit and health benefit of Ornaments
भारतीय समाज में स्त्री पुरुषो में आभूषण पहनने की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही हैं। आभूषण धारण करने का अपना एक महत्त्व हैं जो शरीर और मन से जुड़ा हुआ हैं। बड़े बड़े अन्वेषक तथा विज्ञानवेत्ता भी हमारे प्राचीन ऋषि मुनियो ब्रह्मवेत्ताओं एवं पूर्वजो द्वारा प्रमाणित अनेक तथ्यों एवं रहस्यों को नहीं सुलझा पाये हैं। पाश्चात्य जगत के लोग भारतीय संस्कृति के अनेक सिद्धांतों को व्यर्थ की बकवास बोलकर कुप्रचार करते थे, लेकिन अब वे ही शीश झुकाकर इन्हे स्वीकार कर किसी ना किसी रूप में मानते भी चले जा रहे हैं।
आज हम वही जानेंगे के आभूषण किस प्रकार हमारे स्वास्थय से जुड़े हुए हैं और किस प्रकार इनको धारण करना चाहिए।
आभूषण पहनने का नियम
हमेशा सोने के आभूषण सिर पर और चांदी के आभूषण पैरो में पहनने चाहिए। स्वर्ण के आभूषणो की प्रकृति गर्म हैं तथा चांदी के गहनो की प्रकृति शीतल हैं। इसीलिए जब ग्रीषम काल में किसी के मुंह में छाले पड़ जाते हैं तो प्राय: ठंडक के लिए मुंह में चंडी रखने की सलाह दी जाती हैं। इसके विपरीत सोने का टुकड़ा मुंह में रखा जाए तो गर्मी महसूस होगी। स्वर्ण के आभूषण पवित्र, सौभाग्यवर्धक तथा संतोषप्रदायक माने जाते हैं ।
आभूषणो द्वारा मिलने वाली शक्ति।
स्त्रियों पर संतानोत्पत्ति का भार होता हैं। उसकी पूर्ति के लिए उन्हें आभूषणो द्वारा ऊर्जा व् शक्ति मिलती रहती हैं। सिर में सोना और पैरो में चांदी के आभूषण धारण किये जाएँ तो सोने के आभूषणो से उत्पन्न हुयी बिजली पैरो में तथा चांदी के आभूषणो से उत्पन्न होने वाली ठंडक सिर में चली जाएगी, और क्युकी सर्दी गर्मी को खींच लिया करती हैं।
इस तरह से सर को ठंडा और पैरो को गर्म रखने के मूल्यवान चिकित्स्कीय नियम का पूर्ण पालन हो जायेगा।
आभूषण पहनने से पहले ध्यान रखे।
यदि सर में चांदी के तथा पैरो में सोने के गहने पहने जाए तो इस प्रकार के गहने धारण करने वाली स्त्रियां पागलपन या किसी अन्य रोग की शिकार बन सकती हैं। अतएव सर में चांदी के और पैरो में सोने के आभूषण कभी नहीं पहनने चाहिए। प्राचीन काल की स्त्रियां सिर पर स्वर्ण के एवं पैरो में चांदी के वजनी आभूषण धारण कर दीर्घ जीवी, स्वस्थ व् सुन्दर बनी रहती थी।
यदि सिर और पाँव दोनों में स्वर्णाभूषण पहने जाए तो मस्तिष्क एवं पैरो में से एक समान दो गर्म विद्युत धाराएं प्रवाहित होने लगेंगी जिसके परस्पर टकराव से, जिस तरह दो रेलगाड़ियों के आपस में टकराने से हानि होती हैं वैसा ही असर हमारे स्वास्थ्य पर भी होगा।
जिन धनवान परिवारो की महिलाएं केवल स्वर्णभूषण ही अधिक धारण करती हैं तथा चांदी पहनना ठीक नहीं समझती वे इसी वजह से स्थायी रोगिणी रहा करती हैं।
धातुओ में मिलावट हैं खतरनाक।
विद्युत का विधान अति जटिल हैं। तनिक सी गड़बड़ी में परिणाम कुछ का कुछ हो जाता हैं। यदि सोने के साथ चांदी की भी मिलावट कर दी जाए तो कुछ और ही प्रकार की विधुत बन जाती हैं। जैसे गर्मी से सर्दी की ज़ोरदार मिलाप से सरसाम हो जाता हैं तथा समुद्रो में तूफ़ान उत्पन्न हो जाते हैं। उसी प्रकार जो स्त्रियां सोने के पतरे का खोल बनवाकर भीतर चांदी, ताम्बा या जस्ते की धातुएं भरवाकर कड़े, हंसली आदि आभूषण धारण करती हैं वे हकीकत में तो बहुत बड़ी गलती करती हैं। वे सरेआम रोगो को एवं विकृतियों को आमंत्रित करने का कार्य करती हैं।
आभूषणो में किसी विपरीत धातु के टाँके से भी गड़बड़ी हो जाती हैं अत: सदैव टांकारहित आभूषण पहनना चाहिए अथवा यदि टांका हो तो उसी धातु का होना चाहिए जिससे गहना बना हो।
नाक और कान के आभूषणो से फायदा।
विद्युत सदैव सिरो तथा किनारो की और से प्रवेश किया करती हैं। अत: मस्तिष्क के दोनों भागो को विद्युत से प्रभावशाली बनाना हो तो नाक और कान में छिद्र करके सोना पहनना चाहिए। कानो में सोने की बालियां अथवा झुमके आदि पहनने से स्त्रियों में मासिक धर्म सम्बन्धी अनियमितता कम होती हैं, हिस्टीरिया रोग में लाभ होता हैं तथा आंत उतरने अर्थात हर्निया का रोग नहीं होता हैं। नाक में नथुनी धारण करने से नासिका सम्बन्धी रोग नहीं होते तथा सर्दी खांसी में राहत मिलती हैं। पैरो की अंगुलियों में चांदी की बिछिया पहनने से स्त्रियों में प्रसव पीड़ा कम होती हैं, साइटिका रोग एवं दिमागी विकार दूर होकर स्मरणशक्ति में वृद्धि होती हैं। पायल पहनने से पीठ, एड़ी एवं घुटनो के दर्द में राहत मिलती हैं, हिस्टीरिया के दौरे नहीं पड़ते तथा श्वास रोगो की संभावना दूर हो जाती हैं। इसके साथ ही रक्तशुद्धि होती हैं तथा मूत्ररोग की शिकायत नहीं रहती।
कर्णछेदन के फायदे।
भारतीय संस्कृति की वैदिक रस्मो में सोलह श्रृंगार इसीलिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसमें कर्णछेदन तो अति महत्वपूर्ण हैं। प्रत्येक बच्चे को, चाहे वो लड़का हो या लड़की, तीन से पांच वर्ष की आयु में दोनों कानो का छेदन करके जस्ता या सोने की बालियां प्राचीन काल में पहना दी जाती थी। इस विधि का उद्देश्य अनेक रोगो की जड़े बालय्काल में ही उखाड़ देना था। अनेक अनुभवी महापुरुषों का कहना हैं के इस किर्या से आंत उतरना, अंडकोष बढ़ना तथा पसलियों के रोग नहीं होते हैं। छोटे बच्चो को पसली बार बार उतर जाती हैं तो उसको रोकने के लिए नवजात शिशु जब छ: दिन का होता हैं तब परिजन उसे हंसली और कड़ा पहनाते हैं। कड़ा पहनने से शिशु के सिकुड़े हुए हाथ पैर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण सीधे हो जाते हैं। बच्चो को खड़े रहने की क्रिया में भी कड़ा बलप्रदायक होता हैं।
बिंदिया तिलक और सिन्दूर के फायदे।
यह भी मान्यता हैं के मस्तक पर बिंदिया अथवा तिलक लगाने से चित्त की एकाग्रता विकसित होती हैं तथा मस्तिष्क में पैदा होने वाले विचार असमंजस की स्थिति से मुक्त होते हैं। आज कल बिंदिया या सिन्दूर में सम्मिलित लाल तत्व पारे का लाल ऑक्साइड होता हैं जो की शरीर के लिए लाभदायक सिद्ध होता हैं। मगर आज कल जो केमिकल की बिंदिया चल पड़ी हैं वो लाभ की बजाये हानि देती हैं। बिंदिया एवं शुद्ध सिन्दूर तथा शुद्ध चन्दन के प्रयोग से मुखमंडल झुर्रियों से रहित बनता हैं।
टीका पहनने के फायदे।
मांग में टीका पहनने से मस्तिष्क सम्बन्धी क्रियाएँ नियंत्रित, संतुलित तथा नियमित रहती हैं एवं मस्तिष्कीय विकार नष्ट होते हैं।
अंगूठी पहनने के फायदे।
हाथ की सबसे छोटी अंगुली में अंगूठी पहनने से छाती के दर्द व् घबराहट से रक्षा होती हैं तथा ज्वर, कफ, दम आदि प्रकोपों से बचाव होता हैं।
रत्नजड़ित आभूषण धारण करने से ग्रहो की पीड़ा, दुष्टो की नज़र एवं बुरे स्वप्नों का नाश होता हैं, शुक्राचार्य के अनुसार पुत्र प्राप्ति की कामना वाली स्त्रियों को हीरा नहीं पहनना चाहिए।
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