भारतीय शिक्षा पद्धति में कान पकड़ कर दंड का वैज्ञानिक महत्त्व –
[ads4]“चलो कान पकड़ो और उठक बैठक लगाओ” क्या आपने कभी सोचा के गुरु जी ये वाली सजा ही क्यों देते थे, ये शायद उन्हें खुद भी नहीं मालुम होगा. आपको ये जानकर हैरानी होगी की ये सज़ा भारत में प्राचीन गुरुकुल शिक्षा पद्धति के समय से चली आ रही है. तब यह सिर्फ उन बच्चों की दी जाती थी जो पढाई में कमज़ोर थे. पर अब हर किसी बच्चे को किसी भी गलती के लिए दे देते है ; क्योंकि उन्हें इसके पीछे का विज्ञान नहीं पता. हाथ क्रॉस कर कान पकड़ने की मुद्रा ब्रेन के मेमोरी सेल्स की ओर रक्त संचालन में वृद्धि करती है. साथ ही यह ब्रेन के दाए और बाए हिस्से में संतुलन स्थापित कर ब्रेन के कार्य को और बेहतर बनाती है. यह मुद्रा चंचल वृत्ति को शांत भी करती है. कान में मौजूद एक्युप्रेशर के बिंदु नर्व्ज़ के कार्य को सुचारू बनाते है और बुद्धि का विकास करते है.
यह मुद्रा ऑटिज्म , एसपर्जर सिंड्रोम , लर्निंग डिसेबिलिटी , बिहेवियर प्रॉब्लम में भी मदद करती है. आज हम स्मरण शक्ति बढाने वाली इस
मुद्रा को भुला चुके है और दुसरी तरह की सज़ा जैसे हेड डाउन, क्लास के बाहर निकालना, अर्थ दंड आदि देते है. पर पश्चिमी देशों में इसका बहुत उपयोग किया जा रहा है. इसे कई बीमारियों में भी करने का परामर्श दिया जा रहा है.