असली अशोक के औषधीय प्रयोग।
ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे अशोक कहते हैं, अर्थात् जो स्त्रियों के सारे शोकों को दूर करने की शक्ति रखता है, वही अशोक है। यह आम के पेड़ जैसा छायादार वृक्ष होता है। इसके पत्ते 8-9 इंच लम्बे और दो-ढाई इंच चौड़े होते हैं। इसके पत्ते शुरू में तांबे जैसे रंग के होते हैं, इसीलिए इसे ‘ताम्रपल्लव’ भी कहते हैं। इसके नारंगी रंग के फूल वसंत ऋतु में आते हैं, जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं।
संस्कृत में इसे हेमपुष्प ताम्र पल्लव आदि नामों से पुकारते हैं।
सनातनी वैदिक लोग तो इस पेड़ को पवित्र एवं आदरणीय मानते ही हैं ,किन्तु बौद्ध भी इसे विशेष आदर की दॄष्टि से देखते हैं क्यूंकि कहा जाता है की भगवान बुद्ध का जन्म अशोक वृक्ष के नीचे हुआ था | अशोक के वृक्ष भारत वर्ष में सर्वत्र बाग़ बगीचों में तथा सड़कों के किनारे सुंदरता के लिए लगाए जाते हैं |
अशोक की दो किस्में ज्ञात हैं। पहले किस्म के अशोक की पत्तियां रामफल के वृक्ष जैसी तथा दूसरे किस्म के अशोक की पत्तियां आम की पत्तियों जैसी परन्तु किनारों पर लहरदार होती हैं। औषधीय प्रयोग के लिए ज्यादातर इसकी पहली किस्म का ही प्रयोग किया जाता है।
दवा के रूप में अशोक की छाल, फूल तथा बीजों आदि का प्रयोग किया जाता है। चूंकि बगीचों में सजावट के लिए प्रयुक्त अशोक तथा असली अशोक के गुणों में बहुत अन्तर होता है इसलिए जरूरी है कि औषधि के रूप में असली अशोक का ही प्रयोग किया जाए। असली अशोक की छाल स्वाद में कड़वी, बाहर से घूसर तथा भीतर से लाल रंग की होती है। छूने पर यह खुरदरी लगती है।
आयुर्वेद के अनुसार अशोक का रस कसेला, कड़वा तथा ठंडी प्रकृति का होता है। यह रंग निखारने वाला, तृष्णा व ऊष्मा नाशक तथा सूजन दूर करने वाला होता है। यह रक्त विकार, पेट के रोग, सभी प्रकार के प्रदर, बुखार, जोड़ों के दर्द तथा गर्भाशय की शिथिलता भी दूर करता है।
1 : गर्भ स्थापना हेतु
अशोक के 2-3 ग्राम फूल दही के साथ नियमित रूप से सेवन करते रहने से स्त्री का गर्भ स्थापित होता है।
2 : श्वेत प्रदर
अशोक की छाल का चूर्ण और मिश्री समान मात्रा में मिलाकर गाय के दूध के साथ 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार कुछ हफ्ते तक सेवन करते रहने से श्वेत प्रदर नष्ट हो जाता है।
3 : खूनी प्रदर में
अशोक की छाल, सफेद जीरा, दालचीनी और इलायची के बीज को उबालकर काढ़ा तैयार करें और छानकर दिन में 3 बार सेवन करें।
4 : योनि के ढीलेपन के लिए
अशोक की छाल, बबूल की छाल, गूलर की छाल, माजूफल और फिटकरी समान भाग में पीसकर 50 ग्राम चूर्ण को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, 100 मिलीलीटर शेष बचे तो उतार लें, इसे छानकर पिचकारी के माध्यम से रोज रात को योनि में डालें, फिर 1 घंटे के पश्चात मूत्रत्याग करें। कुछ ही दिनों के प्रयोग से योनि तंग (टाईट) हो जायेगी।
5 : पेशाब करने में रुकावट
अशोक के बीज पानी में पीसकर नियमित रूप से 2 चम्मच की मात्रा में पीने से मूत्र न आने की शिकायत और पथरी के कष्ट में आराम मिलता है।
6 : मुंहासे, फोड़े-फुंसी
अशोक की छाल का काढ़ा उबाल लें। गाढ़ा होने पर इसे ठंडा करके, इसमें बराबर की मात्रा में सरसों का तेल मिला लें। इसे मुंहासों, फोड़े-फुंसियों पर लगाएं। इसके नियमित प्रयोग से वे दूर हो जाएंगे।
7 : मंदबुद्धि (बृद्धिहीन)
अशोक की छाल और ब्राह्मी का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह-शाम एक कप दूध के साथ नियमित रूप से कुछ माह तक सेवन करें। इससे बुद्धि का विकास होता है।
8 : सांस फूलना
पान में अशोक के बीजों का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में चबाने से सांस फूलने की शिकायत में आराम मिलता है।
9 : खूनी बवासीर
अशोक की छाल और इसके फूलों को बराबर की मात्रा में लेकर रात्रि में एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें। सुबह पानी छानकर पी लें। इसी प्रकार सुबह भिगोकर रखी छाल और फूलों का पानी रात्रि में पीने से शीघ्र लाभ मिलता है।अशोक की छाल का 40-50 मिलीलीटर काढ़ा पिलाने से खूनी बवासीर में खून का बहना बंद हो जाता है।
10 : श्वास
अशोक के बीजों के चूर्ण की मात्रा एक चावल भर, 6-7 बार पान के बीड़े में रखकर खिलाने से श्वास रोग में लाभ होता है।
11 : त्वचा सौंदर्य
अशोक की छाल के रस में सरसों को पीसकर छाया में सुखा लें, उसके बाद जब इस लेप को लगाना हो तब सरसों को इसकी छाल के रस में ही पीसकर त्वचा पर लगायें। इससे रंग निखरता है।
12 : वमन (उल्टी)
अशोक के फूलों को जल में पीसकर स्तनों पर लेप कर दूध पिलाने से स्तनों का दूध पीने के कारण होने वाली बच्चों की उल्टी रुक जाती है।
13 : रक्तातिसार
अशोक के 3-4 ग्राम फूलों को जल में पीसकर पिलाने से रक्तातिसार में लाभ होता है।
14 : मासिक-धर्म में खून का अधिक बहना
अशोक की छाल 80 ग्राम और 80 ग्राम दूध को डालकर चौगुने पानी में तब तक पकायें जब तक एक चौथाई पानी शेष न रह जाए, उसके बाद छानकर स्त्री को सुबह-शाम पिलायें। इस दूध का मासिक-धर्म के चौथे दिन से तब तक सेवन करना चाहिए, जब तक खून का बहना बंद न हो जाता हो।
15 : स्वप्नदोष
स्त्रियों के स्वप्नदोष में 20 ग्राम अशोक की छाल, कूटकर 250 ग्राम पानी में पकाएं, 30 ग्राम शेष रहने पर इसमें 6 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
16 : पथरी
अशोक के 1-2 ग्राम बीज को पानी में पीसकर नियमित रूप से 2 चम्मच की मात्रा में पिलाने से मूत्र न आने की शिकायत और पथरी के कष्ट में आराम मिलता है।
17 : अस्थिभंग (हड्डी का टूटना) होने पर
अशोक की छाल का चूर्ण 6 ग्राम तक दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से तथा ऊपर से इसी का लेप करने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है और दर्द भी शांत हो जाता है।
18 : गर्भाशय की सूजन
अशोक की छाल 120 ग्राम, वरजटा, काली सारिवा, लाल चंदन, दारूहल्दी, मंजीठ प्रत्येक की 100-100 ग्राम मात्रा, छोटी इलायची के दाने और चन्द्रपुटी प्रवाल भस्म 50-50 ग्राम, सहस्त्रपुटी अभ्रक भस्म 40 ग्राम, वंग भस्म और लौह भस्म 30-30 ग्राम तथा मकरध्वज गंधक जारित 10 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी औषधियों को कूटछानकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं। फिर इसमें क्रमश: खिरेंटी, सेमल की छाल तथा गूलर की छाल के काढ़े में 3-3 दिन खरल करके 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लेते हैं। इसे एक या दो गोली की मात्रा में मिश्रीयुक्त गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसे लगभग एक महीने तक सेवन कराने से स्त्रियों के अनेक रोगों में लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय की सूजन, जलन, रक्तप्रदर, माहवारी के विभिन्न विकार या प्रसव के बाद होने वाली दुर्बलता नष्ट हो जाती है। जरायु (गर्भाशय) के किसी भी दोष में अशोक की छाल का चूर्ण 10 से 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह क्षीरपाक विधि (दूध में गर्म कर) सेवन करने से अवश्य ही लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय के साथ-साथ अंडाशय भी शुद्ध और शक्तिशाली हो जाता है।
19 : कष्टार्तव (मासिक धर्म का कष्ट के साथ आना)
अशोक की छाल 10 से 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन क्षीरपाक विधि (दूध में गर्म करके) प्रतिदिन पिलाने से कष्टरज (माहवारी का कष्ट के साथ आना), रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर आदि रोग ठीक हो जाते हैं। यह गर्भाशय और अंडाशय में उत्तेजना पैदा करती है और उन्हें पूर्ण रूप से सक्षम बनाती है।
20 : खूनी अतिसार
100 से 200 ग्राम अशोक की छाल के चूर्ण को दूध में पकाकर प्रतिदिन सुबह सेवन करने से रक्तातिसार की बीमारी समाप्त हो जाती है।
21 : मासिक-धर्म सम्बंधी परेशानियां
अशोक की छाल 10 ग्राम को 250 ग्राम दूध में पकाकर सेवन करने से माहवारी सम्बंधी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
22 : प्रदर रोग
अशोक की छाल को कूट-पीसकर कपड़े से छानकर रख लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर में आराम मिलता है।अशोक की छाल के काढ़े को दूध में डालकर पका लें, इसे ठंडा कर स्त्री को उसके शक्ति के अनुसार पिलाने से प्रदर में बहुत लाभ मिलता है। लगभग 20-24 ग्राम अशोक की छाल लेकर इससे आठ गुने पानी के साथ पकाकर चतुर्थांश शेष काढ़ा बना लें और फिर 250 ग्राम दूध के साथ उबालकर रोगी को पिलायें। इससे सभी तरह के प्रदर रोग मिट जाते हैं।अशोक की छाल को चावल के धोवन के पानी के साथ पीसकर छान लें। इसमें थोड़ी मात्रा में शुद्ध रसांजन और शहद डालकर पीयें। इससे सभी तरह के प्रदर में लाभ होता है।2 ग्राम अशोक के बीज, ताजे पानी के साथ ठंडाई की तरह पीसे, उसमें सही मात्रा में मिश्री मिलाकर रोगी को पिलायें। इससे रक्तप्रदर और मूत्र आने में रुकावट, पथरी सभी में बहुत अधिक लाभ मिलता है।अशोक के फूलों (पुश्पों) का रस शहद में मिलाकर पीने से प्रदर में आराम मिलता है।अशोक की छाल के काढ़े में वासा पंचाग का चूर्ण 2 ग्राम शहद 2 ग्राम चम्मच मिलाकर पीने से रक्त प्रदर में लाभ होता है। इसे दिन में 2 बार सेवन करना चाहिए।अशोक की छाल के काढे़ से योनि का धोये तो इससे खून के बहाव को रोकने में सहायता मिलती है। इससे रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर तथा योनि की सड़न में भी लाभ होता है।अशोक की छाल का काढ़ा, सफेद फिटकरी के चूर्ण में मिलाकर गुप्तांग (योनि) में पिचकारी देने से दोनों प्रकार के प्रदर और उनकी विभिन्न बीमारियां मिट जाती हैं।अशोक और पुनर्नवा मिश्रित काढ़े से योनि का प्रक्षालन करने से योनि की सूजन में लाभ होता है और खून का बहाव भी कम हो जाता है। इससे प्रदर रोग और योनि की सूजन भी मिट जाती है।100 ग्राम अशोक की छाल और बबूल की छाल, 50-50 ग्राम लोध्र की छाल और नीम के सूखे पत्ते को जौकूट (पीस) करें और चौगुने पानी में गर्म कर लें। जब आधा पानी ही रह जाये तो इसे उतारकर छान लें। ठंडा होने पर बोतल में भरकर रख लें। इस काढे़ से योनि को धोयें। इससे प्रदर में फायदा होता है।अशोक की छाल 10 से 20 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय चूर्ण बनाकर दूध में उबालकर सेवन करने से लाभ मिलता है। यह रक्तप्रदर, कष्टरज और श्वेतप्रदर आदि दोषों से मुक्ति दिलाकर गर्भाशय और अंडाशय को पूर्ण सक्षम और सबल बना देता है। अशोक की छाल के 40-50 मिलीलीटर काढ़े को दूध में मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से श्वेत प्रदर और रक्त प्रदर में लाभ होता है।अशोक की 3 ग्राम छाल को चावल के धोवन (चावल को धोने से प्राप्त पानी) में पीस लें, फिर छानकर इसमें 1 ग्राम रसौत और 1 चम्मच शहद मिलाकर नियमित रूप से सुबह-शाम सेवन करें। इससे सभी प्रकार के प्रदर में लाभ होगा। इस प्रयोग के साथ इसकी छाल के काढ़े में फिटकरी मिलाकर योनि में इसकी पिचकारी लेनी चाहिए।अशोक के 2-3 ग्राम फूलों को जल में पीसकर पिलाने से रक्त प्रदर में लाभ होता है। इसकी अंतर छाल का महीन चूर्ण 10 ग्राम, साठी चावल का चूर्ण 50 ग्राम, मिश्री चूर्ण 10 ग्राम, शहद 3 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में विशेष लाभ होता है। इसे दिन में तीन बार सेवन करें।
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