बरगद का आयुर्वेदिक महत्त्व
बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। बरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है, बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। बरगद के वृक्ष की शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्वंर माना जाता है। आइये जाने इसके लाभ।
बरगद की ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचला जाए और रस को चेहरे पर लेपित किया जाए तो चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती हैं।
बरगद के दूध की बून्द आँखों में नित्य प्रतिदिन डालने से आँख का जाला ख़त्म हो जाता है।
बरगद की 8-10 कोंपलों को दही के साथ खाने से दस्त बंद हो जाते हैं।
लगभग 20-30 ग्राम बरगद के पेड़ की छाल लेकर जौकूट करें और उसे आधा लीटर पानी के साथ काढ़ा बना लें। जब चौथाई पानी शेष रह जाए तब उसे आग से उतारकर छाने और ठंडा होने पर पीयें। रोजाना 4-5 दिन तक सेवन से मधुमेह रोग कम हो जाता है। इसका प्रयोग सुबह-शाम करें।
20 ग्राम बरगद के कोमल पत्तों को 100 से 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर रक्तप्रदर वाली स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है। स्त्री या पुरुष के पेशाब में खून आता हो तो वह भी बंद हो जाता है।
10 ग्राम बरगद की जटा के अंकुर को 100 मिलीलीटर गाय के दूध में पीसकर और छानकर दिन में 3 बार स्त्री को पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
3 से 5 ग्राम बरगद की कोपलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम खाने से प्रमेह व प्रदर रोग खत्म होता है।
लगभग 10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाए और मंजन किया जाए तो दांतों का हिलना, सड़न, बदबू आदि दूर होकर दांत साफ और सफ़ेद होते हैं। प्रतिदिन कम से कम दो बार इस चूर्ण से मंजन करना चाहिए।
पेशाब में जलन होने पर बरगद की जड़ों 10 ग्राम का बारीक चूर्ण, जीरा और इलायची 2-2 ग्राम का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ मिलाकर लिया जाए तो अति शीघ्र लाभ होता है। यही फार्मूला पेशाब से संबंधित अन्य विकारों में भी लाभकारी होता है।
पैरों की फटी पड़ी एड़ियों पर बरगद का दूध लगाया जाए तो कुछ ही दिनों फटी एड़ियां सामान्य हो जाती हैं और तालु नरम पड़ जाते हैं।
बरगद की ताजा कोमल पत्तियों को सुखा लिया जाए और पीसकर चूर्ण बनाया जाए। इस चूर्ण की लगभग 2 ग्राम मात्रा प्रति दिन एक बार शहद के साथ लेने से याददाश्त बेहतर होती है।
बरगद के ताजे पत्तों को गर्म करके घावों पर लेप किया जाए तो घाव जल्द सूख जाते हैं। कई इलाकों में आदिवासी ज्यादा गहरा घाव होने पर ताजी पत्तियों को गर्म करके थोडा ठंडा होने पर इन पत्तियों को घाव में भर देते हैं।
बवासीर, वीर्य का पतलापन, शीघ्रपतन, प्रमेह स्वप्नदोष आदि रोगों में बड़ का दूध अत्यंत लाभकारी है। प्रातः सूर्योदय के पूर्व वायुसेवन के लिए जाते समय 2-3 बताशे साथ में ले जाये । बड़ की कलि को तोड़कर एक-एक बताशे में बड़ के दूध की 4-5 बूंद टपकाकर खा जायें। धीरे-धीरे बड़ के दूध की मात्रा बढातें जायें। 8-10 दिन के बाद मात्रा कम करते हुए चालीस दिन यह प्रयोग करें।
बड़ का दूध दिल, दिमाग व जिगर को शक्ति प्रदान करता है एवं इसके प्रयोग से मूत्र रुकावट ( मूत्रकृच्छ ) में भी आराम होता है। इसके सेवन से रक्तप्रदर व खूनी बवासीर का रक्तस्राव बंद होता है। पैरों की एडियों में बड़ का दूध लगाने से वे नहीं फटती। चोट, मोच और गठिया रोग में इसकी सूजन पर इस दूध का लेप करने से बहुत आराम होता है।
वीर्य विकार व कमजोरी के शिकार रोगियों को धैर्य के साथ लगातार ऊपर बताई विधि के अनुसार इसका सेवन करना चाहिए।
बड़ की छाल का काढा बनाकर प्रतिदिन एक कप मात्रा में पीने से मधुमेह में फ़ायदा होता है व शरीर में बल बढ़ता है।
इसके कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर कूट कर पीस लें। आधा लीटर पानी में एक चम्मच चूर्ण डालकर काढा करें। जब चौथाई पानी शेष बचे तब उतारकर छान लें और पिसी हुई मिश्री मिलाकर कुनकुना करके पियें। यह प्रयोग दिमागी शक्ति बढाता है व नजला-जुकाम ठीक करता है।
Mai 43 years ka hoon Mujhe 4 Sanal se sugar our blood pressure hai jishka dawa le raha hoon our o control hai Lekin mai sexual life enjoy nani kar pa raha hoon mai control nani kar pata discharge ki problem kafi time she hai koi upay hame bataye taki apna life enjoy kar saku.
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