कालादाना कृष्ण बीज के गुण फायदे और उपयोग.
kala dana ke gun fayde aur upyog. krishan beej ke fayde
काला दाना जिसको कृष्ण बीज भी कहते हैं. इसका वनस्पित नाम Ipomoea nil (Linn.) Roth है. इसको अंग्रेजी में Blue Morning glory कहते हैं. संस्कृति में इसको कृष्ण बीज, श्यामाबीज, श्यामालबीजक, अन्तःकोटरपुष्पी, हिंदी में कालादाना, झारमिर्च, मरिचाई, उड़िया में कानिखोंड़ो, उर्दू में कालादानाह, कन्नड़ में गौरीबीज, गुजरती में कालादाना, काल्कुम्पन, तमिल में काक्क्टन, सिरिक्की, तेलुगु में कोल्ली, बंगाली में कालादाना, मिरचई, नील्कल्मी, नेपाली में सिन्थुरी, पंजाबी में बिलदी, केर, मराठी में कालादाना, नीलपुष्पी, नीलयेल, मलयालम में तलियारी, फारसी में तुकमिनिल कहते हैं. लैटिन में कोल्लविडलू।
रंग : काला दाना काले रंग का होता है।
स्वाद : काला दाना कडुवा होता है।
स्वरूप : यह काफी मशहूर है और इसमें तीन कोने होते हैं। इसका बीज भी काले रंग का होता है।
प्रकृति : काला दाना गर्म होता है।
हानिकारक : काला दाना का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट में मरोड़ व दस्त रोग पैदा हो सकता है।
दोषों को दूर करने वाला : हरड़ का प्रयोग करने से काले दाने में मौजूद सभी दोष दूर होते हैं।
तुलना : काला दाना की तुलना जमालगोटा से की जा सकती है।
मात्रा : इसे 2 ग्राम से 4 ग्राम तक की मात्रा में प्रयोग किया जा सकता है।
गुण : काला दाना का प्रयोग करने से कफ दस्त के साथ बाहर आ जाता है। यह यकृत (लीवर) और प्लीहा को शुद्ध करता है। यह पेट के कीड़े व घाव के कीड़ों को नष्ट करता है। इसका प्रयोग खुजली और जोड़ों के दर्द को खत्म करने के लिए भी किया जाता है। यह शरीर के दर्द को भी समाप्त करता है। कालादाना
कालादाना कृष्ण बीज के आयुर्वेदीय गुणकर्म एवम प्रभाव.
kaladana krishan beej ke ayurvediy gun karm aur prabhav.
कालादाना कटु, उष्ण, पाचक, मल संग्रही, क्रिमिनी: सारक, विरेचक, दीपन, शोथ्घन, रक्तशोधक, ज्वरघन, वेदना शामक, कृमिघ्न, तथा मूत्रल होता है. इसके बीज शोथ, विबंध, त्वगरोग, पामा,आध्मान, श्वास, कास, जलोदर,शिर:शूल, नालास्त्राव, वातरक्त,ज्वर, वातविकार, प्लीहाविकार,श्वित्र, कंडू, कृमि, अजीर्ण, संधिविकार, तथा संधिशूल, में हितकर होते हैं. सम्पूर्ण पौधे का सत कर्कटाबुर्द (कैंसर) रोधी क्रिया पर्दर्शित करता है. kaladana kya hai, krishan beej kya hai
करपत्री कृष्णबीज
इसका प्रयोग अर्श की चिकित्सा में किया जाता है.
इसका प्रयोग रोमकूप शोथ तथा फोड़ों की चिकित्सा में किया जाता है.
पत्रों को पीसकर लगाने से त्वचा विकारों का शमन होता है.
मूल का प्रयोग विरेचानार्थ किया जाता है.
पत्रों को पीसकर पुल्टिस बनाकर लगाने से व्रण, दद्रु, आदि त्वचा विकारों में लाभ होता है.
5 मिली ताज़े पंचांग स्वरस को पिलाने से अलर्क विष में लाभ होता है.
शुष्क पात्र धूम का सेवन करने से श्वासनलिका उदेष्ट में लाभप्रद है.
बीजों को पीसकर नारियल तेल में मिलाकर त्वचा में लगाने से त्वचा के विकारों का शमन होता है, तथा व्रण में लगाने से शीघ्र ही व्रण का रोपण होता है.
विभिन्न रोगों में कालादाना कृष्ण बीज के उपयोग :
vibhin rogo me kaladana krishanbeej ke upyog.
- मुख्पाक – कालादाना का क्वाथ बनाकर गरारा कराने से मुख्पाक का शमन होता है.
- उदर रोग – उद्रावत – 1 ग्राम कालादाना को घी में भून कर चूर्ण करके उसमे मिश्री मिलाकर सेवन करने से सुखपूर्वक विरेचन होकर उदावर्त में लाभ होता है. कालादाना
- 100 ग्राम सनाय पत्र में 50 ग्राम हरीतकी, 25-25 ग्राम बड़ी इलायची, कालादाना, द्राक्षा, तथा गुलकंद 100-100 ग्राम मिश्री तथा घी मिलाकर 30 लड्डू बनाकर, रात्री में 1 लड्डू शीतोषण जल के साथ सेवन करने से विरेचन होता है. (जब तक विरेचन होता रहे, तब तक शीतल पदार्थों का सेवन ना किया जाए). इससे मल बद्धता तथा मलावरोधजन्य विकारों का समूल निवारण होता है.
- विबंध – कालादाना के 20 ग्राम चूर्ण को 500 ग्राम मिश्री की चासनी में मिलाकर, जमाकर रख लो, रात्रि को सोते समय, 1-2 ग्राम की मात्रा में गुनगुने जल या दूध के साथ सेवन करने से प्रातः सम्यक रूप से मल का निर्हरण होता है तथा विबंध में लाभ होता है.
- यकृत प्लीहा शोथ – 1-2 ग्राम कालादाना बीज चूर्ण को बादाम तेल में भूनकर समभाग, सौंठ मिलाकर सेवन करने से यकृत प्लीहा शोथ में लाभ होता है. कालादाना
- अस्थिसंधि रोग – आमवात – कृष्ण बीज को सशर्प तेल में पकाकर, छानकर तेल की मालिश करने से आमवात में लाभ होता है. इस तेल को कंडू तथा व्रण में लगाने से भी लाभ होता है. कालादाना
- त्वचा रोग – कालादान को पीसकर त्वचा पर लगाने से श्वित्र तथा कुष्ठ में लाभ होता है.
- त्वचा विकार में कालादाना को अकरकरा मूल के साथ पीसकर शरीर के काले या सफ़ेद दागों में लाभ होता है.
- खुजली आदि चरम रोगों में कालादाना का क्वाथ बनाकर स्नान कराने से खुजली दद्रु आदि चर्मरोगों का शमन होता है तथा सर के जुएँ नष्ट होती है. कालादाना
- ज्वर – 1 ग्राम कालादाना चूर्ण में 1 ग्राम काली मरिच चूर्ण तथा 500 मिग्रा अतीस चूर्ण मिलाकर प्रातः सायं गुनगुने जल के साथ सेवन करने से ज्वर में लाभ होता है. कालादाना
- कब्ज: काला दाना 9 ग्राम की मात्रा में लेकर घी में भूनकर चूर्ण बना लें और इस चूर्ण में लगभग 1 ग्राम सोंठ मिलाकर खाने से 5 से 6 दिन में कब्ज दूर हो जाती है। कालादाना
- पेट में गैस बनना: काला दाना 2-3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से पेट की गैस निकल जाती है और पेट हल्का हो जाता है।
- नाड़ी का दर्द: नाड़ियों में दर्द होने पर 3 ग्राम काला दाना को 50 ग्राम पानी के साथ मिलाकर लेने से दर्द ठीक होता है।
कालादाना कृष्ण बीज के सेवन में ध्यान रखने के लिए विशेष बातें.
kaladana krishan beej ke sewan me dhyan rakhne ke liye vishesh bate
- कालादाना को अधिक मात्रा में प्रयोग करने से क्षोभक विष की तरह कार्य करता है.
- कालादाना को गर्भावस्था में नहीं करना चाहिए.
- जिसकी आंतें कमज़ोर हों, उनको कालादाना का सेवन नहीं करना चाहिए.
- कालादाना का प्रयोग जलाप के प्रतिनिधि द्रव्य के रूप में होता है.
- काला दाना के बीज अत्यंत तीव्र विरेचक होते हैं, इसकी जड़ भी विरेचक तथा तीव्र प्रदाह करने वाली होती है. अतः सावधानीपूर्वक या चिकित्सकीय परामर्शानुसार ही इसका प्रयोग करना चाहिए (यदि काला दाना को सेवन करने से अत्यधिक अतिसार हो तथा बंद न हो रहे हों तो ठंडा पानी पिलाने से और कतीरा गोंद देने से लाभ होता है.
- बीजों में उपस्थित हेलूसिनोजन (LSD Hallucinogen) का उपयोग मानसिक विकारों के उपचार में किया जाता है.
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