Friday , 8 November 2024
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रोहिडा – हृदय लीवर प्लीहा गुल्म प्रमेह अर्श सहित समस्त उदर एवं कृमि रोग नाशक

रोहिडा के फायदे – रोहितक के फायदे – Rohida ke fayde – Rohitak ke fayde.

रोहिडा जिसको रोहितक, रक्त्घन, दाड़िमपुष्पक, प्लीहाशत्रू इत्यादि नामों से जाना जाता है, यह समस्त भारत के शुष्क भागों में 900 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है. इसके फूल और पत्ते अनार के जैसे होते हैं. यह 10 से 15 फ़ुट ऊंचा पेड़ होता है.

रोहीतक: प्लीहाघाती रुच्यो रक्तप्रसादन:
रोहितको यकृतप्लीहागुल्मोदरहर; सर:
रोहितकौ कटुस्निघ्ध कषायों च सुषितलौ, कृमिदोष व्रण प्लीहरक्तनेत्रामयापहो

रोहिडा के उपयोग – रोहिडा के फायदे – रोहिडा के गुण

  • रोहिडा तिक्त, कटु, कषाय, शीत, लघु, स्निग्ध, कफ़पित्त शामक, रक्त प्रसादक तथा रूचि वर्धक होता है.
  • रोहिडा लीवर, तिल्ली (Spleen – प्लीहा), गुल्म, उदर रोग, कर्णरोग, विष रोग, कृमिरोग, नेत्र रोग, व्रण, मोटापा, आनाह, विबंध, शूल तथा भूतबाधा नाशक होता है.
  • रोहितक की काण्डत्वक उपदंश, पामा, मूत्र विकार, अर्श, श्वेत कुष्ठ, श्वेत प्रदर तथा ज्वरशामक होता है.
  • रोहितक के बीज विरेचक, कृमिघन, व्रण, रक्त विकार, नेत्र तथा कर्ण विकार शामक होते हैं.
  • रोहितक का काण्डसार Salmonella typhi के प्रति जीवाणु रोधी क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है.

आइये जानते हैं रोहिडा के उपयोग – Rohida ke upyog

  • रोहितक (रोहिडा) की पतली लता समान शाखाओं के छोटे छोटे टुकड़ों को सात दिनों तक हरीतकी के क्वाथ अथवा गौमूत्र में डालकर, फिर हाथों से मसलकर, कपडे से छानकर 10 से 15 ml मात्रा में पीने से समस्त उदररोग, कृमिरोग, कामला, गुल्म, प्रमेह, अर्श आदि व्याधियों में लाभ होता है. इस को प्रतिदिन शौच के बाद सुबह खाली पेट ही पीना चाहिए.
  • 5 ग्राम रोहितक घृत का सेवन करने से यकृत प्लीहोदर, गुल्म, श्वांस आदि रोगों में लाभ होता है.
  • रोहितकारिष्ट का सेवन करने से अर्श, गृहणी, पांडू, हृदरोग*, प्लीहावृद्धि, गुल्म, उदररोग, कुष्ठ, शौथ, तथा अरुचि में लाभ होता है.
  • समभाग कम्पिल्ल्क, सप्तपर्ण, शाल, विभीतक, रोहितक, कुटज तथा कपिथ्य के पुष्पों के चूर्ण (1 – 3) ग्राम को मधु (शहद) के साथ सेवन करने से कफज तथा पित्तज प्रमेह में लाभ होता है.
  • श्वेत प्रदर में रोहितक मूल त्वक कलक का सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है.
  • उपदंश में रोहिडा की छोटी छोटी टहनियों के क्वाथ बनाकर 10 से 15 ml मात्रा में पिलाने से उपदंश में लाभ होता है.
  • त्वचा रोगों जैसे कुष्ठ में स्नान, पान आदि बाह्याभ्यंतर  कर्मों के लिए रोहितक क्वाथ का प्रयोग करना प्रशस्त है.

* हृदरोग अर्थात हृदय के रोग

* हृदरोग In english – Cardiac disease

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