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वाराहीकंद, varahi kand ke fayde, वराहीकंद के फायदे, सूरन के फायदे, Dioscorea in hindi

Dioscorea वाराहीकंद – किडनी कैंसर नासूर पौरुष रोगों और बुढापे का काल जिमीकंद

वाराहीकंद एक अनमोल सब्जी – benefit of dioscorea in hindi

Dioscorea in hindi – वाराहीकंद जिसको उत्तर भारत में जिमीकंद और अन्य भाषाओँ में चमालू, पीता आलू, सूरन, रतालू, इत्यादि नामों से जाना जाता है, इसका उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है. इसकी सब्जी तो लाजवाब बनती ही है, इसके साथ में इसके गुण इस सब्जी को और भी विशेष बनाते हैं.

Dioscorea – वाराहीकंद जिमीकंद यह एक लाजवाब सब्जी है, जो लोग इसके गुण जानते हैं, वो मौसम में इसको खाने से नहीं चूकते, चुके भी क्यों इसमें गुण ही ऐसे भरे हैं. आज हम इन्ही गुणों की चर्चा करने जा रहें हैं. आइये जाने वाराहीकंद Dioscorea के फायदे.

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वाराहीकंद की पहचान – Identity of dioscorea in hindi

वाराहीकंद एक बेल के रूप से मिलता है, वाराहीकंद का वानस्पतिक नाम Dioscorea bulbifera Linn है, इसको इंग्लिश में Potato Yam कहा जाता है. इसके पत्ते गहरे हरे पान के आकर वाले होते हैं, नयी अवस्था में पत्ते लाल होते हैं, फिर धीरे धीरे हरे व लाल रंग के हो जाते हैं. इसमें नर तथा स्त्री पुष्प अलग अलग होते हैं. इसके फल देखने में अधिक बड़े नहीं होते, यह देखने में सुवर (शूकर) के मुख जैसा एक और मोटा और दूसरी और पतला होता है, इसके ऊपर सुवर जैसे बाल होते हैं. यह अन्दर से सफ़ेद और बाहर से काला या भूरा होता है. यह स्वाद में कड़वा एवम चरपरा होता है.

वाराहीकंद का रासायनिक संगठन – chemical composition of dioscorea in hindi

वाराहीकंद में डायोसबल्बीनस (Diosbulbinus) डायोसबल्लिवन, ग्लुकोसाइड, डायोस्कोरेटोक्सिन, डायोस्कोरेसिन, टैनिन, स्पोनिन, प्रोटीन, स्टार्च, खनिज, वसा, कार्बोहायड्रेट, तथा अल्बुमिनोय्ड्स पाया जाता है.

 

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वाराहीकंद के गुण कर्म एवम प्रभाव – Effects of Dioscorea in hindi

  • वाराहीकंद मधुर, कटु, तिक्त, उष्ण, लघु, स्निग्ध, तथा वात्कफ्शामक होता है.
  • वाराहीकंद से बना वराही रसायन स्वरवर्धक, वृष्य, बलकारक, वृणय, शुक्रवर्धक, दीपन, पित्त्वर्धक, आयुवर्द्धक, मधुमेह, कुष्ठ, क्रिमी रोग, विष, वातज, गुल्म तथा मूत्रकच्छ में लाभप्रद होता है.
  • वाराहीकंद श्वित्र, अर्श, प्रवाहिका, फिरंग, श्वासकष्ट, पित्तविकृति, अर्बुद(टयूमर) इत्यादि में फादेमंद है.
  • वाराहीकंद मूत्रल और शोथहर है.
  • ईसके प्रकंद का एथनोल सार  JB 6 कोशिकाओं की अर्बुद वृद्धि (Tumor Promotion) पर रोधक प्रभाव डालता है, इसके कंद और प्रकंद का डाइहाइड्रोस्कोरिन सार कवकरोधी क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है. यह व्रणरोपण (जख्म – घावों का भराव) क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है. इन सब कारण से यह कैंसर के रोगियों के लिए बेहद लाभकारी है.

वाराहीकंद के औषधीय प्रयोग –  medicinal uses of dioscorea in hindi

  • वाराहीकंद का क्वाथ बनाकर 15 से 30 ml लेकर इसमें 1 ग्राम मुलहठी चूर्ण तथा 5 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से पाचन शक्ति बढती है.
  • 1 से 2 ग्राम वाराहीकंद के चूर्ण को तवे पर भून कर इसमें घी व् मिश्री मिलाकर सेवन करने से अर्श बवासीर का शमन होता है.
  • वाराहीकंद 2 से 4 ग्राम चूर्ण को चावल के मांड के साथ सेवन करने से प्रमेह (किडनी की फिल्ट्रेशन की समस्या) में लाभ होता है.
  • वाराहीकंद के चूर्ण को शहद में मिलाकर खाने से सर्वांगशोथ (पुरे शारीर में सूजन) का शमन होता है.

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वाराहीकंद से नासूर और कुष्ठ का इलाज – Dioscorea in wound in hindi

  • बहेड़ा, आम की गुठली, वट जटा, निर्गुन्डी बीज, शंखिनी बीज तथा वाराहीकंद चूर्ण को तेल में मिलाकर लेप करने से नाडीव्रण (नासूर) का शोधन और रोपण (आगे ना बढ़ने देना) होता है.
  • वाराहीकंद स्वरस से भावित मदनफल मूल तथा शकरकंद से सिद्ध तेल से मालिश करने से नाडीव्रण (नासूर) का शीघ्र शोधन और रोपण (आगे ना बढ़ने देना) होता है.
  • वाराहीकंद के सूखे पाउडर को सीधे घाव में डालने से भी व्रण जल्दी भर जाता है.
  • वराही के पत्तों का स्वरस लगाने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है.

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वाराहीकंद रसायन वाजीकरण प्रयोग – dioscorea for male fertility in hindi

  • 1 से 2 ग्राम वाराहीकंद के चूर्ण को को मधु (शहद) के साथ मिलाकर दूध के साथ एक महीने तक लेने से और साथ में दूध भात (चावल की खीर) और घी से बने भोजन करने से यौवन कामसामर्थ्य आदि रसायन गुणों की प्राप्ति होती है.
  • वाराहीकंद चूर्ण से पकाए हुए दूध को मथकर घी निकाल कर उस घी में शहद मिलाकर मात्रा पूर्वक सेवन करने से बुढापा रोग आदि का शमन होकर दीर्घायु आदि रसायण गुणों का आधान होता है. (शहद और घी एक मात्रा में नहीं होनी चाहिए कम से कम 30 से 50 प्रतिशत कम या ज्यादा हो)
  • वाराहीकंद स्वरस से भली प्रकार से भावित वाराहीकंद चूर्ण (1 से 2 ग्राम) में मधु तथा घृत मिलाकर चाटकर, वाराहीकंद कल्क(चटनी) एवम स्वरस से सिद्ध घी खाने से समस्त व्याधियों का शमन होता है तथा रसायण गुणों की प्राप्ति होती है.

वाराहीकंद घुटनों के दर्द के लिए – knee pain treatment with Dioscorea in hindi

वाराहीकंद के अन्दर पाया जाने वाला रसायन Diosgenin कई प्रकार के Steroidal Harmone बनाने का कार्य करता है, और Testosterone Harmone और अन्य Anabolic ( मस्सल मांस बनाने वाला ) भी बनता है जिस से शारीर के अंदर मस्सल मांस बढ़ता है, और साथ ही इस में पाया जाने वाला  Stgmasterol दर्द और सुजन को कम करता है, Stgmasterol Vitamin D3 बनाने में भी सहायक होता है जिस से हड्डिया मजबूत होती है ।

अब यदि आप का मस्सल मांस बनने  लगेगा और दर्द एवं सुजन भी कम हो रही है साथ ही Vitamin D3 भी पर्याप्त मात्रा बन रहा है में तो शारीर में Calcium का अवशोषण भी अच्छी तरह से होने लगेगा जिस रूमेटाइड अर्थराइटिस की समस्या धीरे धीरे समाप्त होने लगेगी ।

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पंचपत्री वाराहीकंद – dioscorea pentaphylla in hindi

वाराहीकंद की एक और प्रजाति आती है जिसको पंचपत्री वाराहीकंद कहा जाता है. इस पौधे की पहचान ये है के इसकी शाखा पर 5 पत्ते होते हैं. जैसे बिल्व के पेड़ पर 3-3 पत्तियां लगती हैं वैसी ही इसमें 5 पत्तियां होती हैं. इसका कंद लम्बा, गहरा धूसर या काले रंग का रोम युक्त होता है. इसके कंद का प्रयोग सर्वांग शूल, विबंध, प्रवाहिका, दाह तथा शोथ की चिकित्सा में किया जाता है.

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