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उपवास व्रत का वैज्ञानिक महत्व – कीजिये शरीर का कायाकल्प।

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उपवास यानि व्रत आज कल लोगों ने इसको अंध श्रद्धा का नाम दे दिया है। मगर ये भारतीय संस्कृति में स्वस्थ रहने की अनूठी प्रक्रिया है। आप इसको अपने जीवन का हिस्सा बना कर अपने शरीर का कायाकल्प कर सकते हैं और अनेकों स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आपको भूखा रख कर भगवान को कोई ख़ुशी नहीं होगी, अगर कुछ होगा तो वो ये के आपका स्वास्थ्य बेहतर से और बेहतर होता चला जायेगा। आइये समझें उपवास के पीछे के रहस्य को।

आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘चरक संहिता’ से लेकर आज के विभिन्न चिकित्सीय शोधों ने भी उपवास के अनेक लाभ बताए हैं।
उपवास से पाचनतंत्र दुरूस्त रहता है जिससे शरीर में उपस्थित विषाक्त पदार्थों का निष्कासन आसानी से हो जाता है।
हर सप्ताह उपवास रखने से कोलेस्ट्राल की मात्रा घटने लगती है जो धमनियों के लिए लाभदायक है।

हो चुके हैं ढेरों शोध।

ये बात अभी अनेक यूनिवर्सिटी में शोध की जा चुकी है के जो लोग सप्ताह या पंद्रह दिन में एक बार उपवास करते हैं, उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति कहीं अधिक होती है। ऐसा क्या होता है उपवास करने से। दरअसल हमारा शरीर अपने अंदर सब कुछ समा लेता है। इसकी नस नाड़ियों में गंदगी जमी रहती है, ये कहीं और से नहीं आती, बल्कि ये हमारे द्वारा ग्रहण किये गए भोजन के अपशिष्ट पदार्थ हैं, जो अच्छे से हमारे शरीर से निकल नहीं पाते और हमारी अनेक बिमारियों का कारण बनते हैं, ये बीमारियां गैस बनना से लेकर कैंसर तक हो सकती हैं।

उपवास से स्वास्थय कनेक्शन।

जब हम व्रत करते हैं तो हमारा शरीर नया भोजन ग्रहण नहीं करता, इस समय ये सिर्फ सफाई करता है। जिस प्रकार घर की सफाई में पानी का विशिष्ट स्थान है उसी प्रकार से शारीर की सफाई वाले दिन सिर्फ पानी पीना चाहिए, एनर्जी के लिए पानी में निम्बू और शहद दोनों मिला कर पिएं। व्रत करने से हमारी गंदगी निकल कर शरीर का पुनः कायाकल्प हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति महीने में तीन दिन तक लगातार व्रत करे तो उसका शारीर चन्दन सा निखर जायेगा और कोई रोग भी नहीं होगा।

आज कल व्रत के नाम पर महिलाएं व्रत में खाया जाने वाला नमकीन और पता नहीं क्या क्या खातीं हैं, ऐसे में उनको स्वास्थय की क्या प्राप्ति होगी।

शरीर देता है संकेत।

हमारा शरीर खुद कभी कभी कुछ ना खाने के लिए हमको प्रेरित करता है, ऐसे में हम सोचते हैं के शायद घर का खान खा खा कर हम बोर हो चुके हैं तो आज बाहर  का और मसालेदार खाकर अपने मन को सही किया जाए। ऐसा करके हम अपने शारीर को और नुक्सान पहुंचाते हैं। जबकि जिस दिन हमारा कुछ भी खाने को मन ना करे तो उस दिन सिर्फ गर्म पानी में निम्बू और शहद मिला कर पिएं। इस से आपको एनर्जी भी मिलेगी और आपके शारीर की गंदगी भी साफ़ होगी।

आपने ये गौर किया होगा, जिस रात आपने भोजन ना किया हो उस के अगली सुबह जब आपने मल त्याग किया होगा वो अन्य दिनों के मुकाबले अधिक कठोर होगा। ऐसा क्यों हुआ, दरअसल हमारी पाचन प्रक्रिया उस समय बेहतर काम करती है जब हमारा पेट खाली हो। इसलिए हमारे भोजन में कम से कम  5 से 8 घंटे का अंतराल होना चाहिए।

भोजन करने का नियम।

पहले लोग मेहनत करते थे, तो वो भी सिर्फ २ समय ही खाना खाते थे, मगर आज कल बिना किसी शरीरी परिश्रम के लोग तीन तीन समय खाना खाते हैं। रात को खाया और सो गए, सुबह उठे, मल त्याग किया फिर खा लिया, अरे भाई ऐसा क्या काम कर दिया जिससे आपको दोबारा भोजन करना पड़ा। पाचन प्रक्रिया को कोई आराम नहीं। यही कारण है हमारी अनेक बिमारियों का। इसके लिए एक कहावत है के योगी खाये एक बार, भोगी खाये दो बार और रोगी खाये बार बार। अभी आप देखें के आप किस स्थिति में हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध में सबसे अधिक हिन्दू सैनिक क्यों बचे ?

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अफ्रीका के सहारा मरूस्थल में खाद्य आपूर्ति बंद हो जाने के कारण मित्रराष्ट्रों की सेनाओं को तीन दिन तक अन्न जल कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका। चारों ओर सुनसान रेगिस्तान तथा धूल-कंकड़ों के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता था। रेगिस्तान पार करते करते कुल सात सौ सैनिकों की उस टुकड़ी में से मात्र 210 व्यक्ति ही जीवित बच पाये। बाकी सभी भूख-प्यास के कारण रास्ते में ही मर गये।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन जीवित सैनिकों में से 80 प्रतिशत अर्थात् 186 सैनिक हिन्दू थे। इस आश्चर्यजनक घटना का जब विश्लेषण किया गया तो विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला किः ‘वे निश्चय ही ऐसे पूर्वजों की संतानें थीं जिनके रक्त में तप, तितिक्षा, उपवास, सहिष्णुता एवं संयम का प्रभाव रहा होगा। वे अवश्य ही श्रद्धापूर्वक कठिन व्रतों का पालन करते रहे होंगे।’

हिन्दू संस्कृति के वे सपूत रेगिस्तान में अन्न जल के बिना भी इसलिए बच गये क्योंकि उन्होंने, उनके माता-पिता ने अथवा उनके दादा-दादी ने इस प्रकार की तपस्या की होगी। सात पीढ़ियों तक की संतति में अपने संस्कारों का अंश जाता है।

कैसे बन व्रत रखने का चक्र।

यहां एक बात और बहुत महत्वपूर्ण है कि किसी भी हाल में जबर्दस्ती न किया जाए। अगर आप शरीर के प्राकृतिक चक्र पर गौर करेंगे कि हर 40 से 48 दिनों में शरीर एक खास चक्र से गुजरता है।

11 से 14 दिनों में एक दिन ऐसा भी आता है, जब आपका कुछ भी खाने का मन नहीं करेगा। उस दिन आपको नहीं खाना चाहिए। हर चक्र में तीन दिन ऐसे होते हैं जिनमें आपके शरीर को भोजन की आवश्यकता नहीं होती। अगर आप अपने शरीर को लेकर सजग हो जाएंगे तो आपको खुद भी इस बात का अहसास हो जाएगा कि इन दिनों में शरीर को भोजन की जरूरत नहीं होती। इनमें से किसी भी एक दिन आप बिना भोजन के आराम से रह सकते हैं।

आपको यह जानकार हैरानी होगी कि कुत्ते और बिल्लियों के अंदर भी इतनी सजगता होती है। कभी गौर से देखें, किसी खास दिन वे कुछ भी नहीं खाते। दरअसल, अपने सिस्टम के प्रति वे पूरी तरह सजग होते हैं। जिस दिन सिस्टम कहता है कि आज खाना नहीं चाहिए, वह दिन उनके लिए शरीर की सफाई का दिन बन जाता है और उस दिन वे कुछ भी नहीं खाते। अब आपके भीतर तो इतनी जागरूकता नहीं कि आप उन खास दिनों को पहचान सकें। फिर क्या किया जाए ! बस इस समस्या के समाधान के लिए अपने यहां एकादशी का दिन तय कर दिया गया। हिंदी महीनों के हिसाब से देखें तो हर 14 दिनों में एक बार एकादशी आती है। इसका मतलब हुआ कि हर 14 दिनों में आप एक दिन बिना खाए रह सकते हैं। अगर आप बिना कुछ खाए रह ही नहीं सकते या आपका कामकाज ऐसा है, जिसके चलते भूखा रहना तुम्हारे वश में नहीं और भूखे रहने के लिए जिस साधना की जरूरत होती है, वह भी आपके पास नहीं है, तो आप हल्का फलाहार ले सकते हैं। कुल मिलाकर बात इतनी है कि बस अपने सिस्टम के प्रति जागरूक हो जाएं और यह देखने की कोशिश करें कि कुछ दिन ऐसे हैं, जिनमें आपको खाने की आवश्यकता महसूस नहीं होती। इन दिनों जबर्दस्ती खाना अच्छी बात नहीं है।

[ ये भी ज़रूर पढ़ें – स्वस्थ रहने के 20 सुनहरे नियम। ]

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