Sunday , 22 December 2024
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सीएफएल बल्ब के ये खतरे जानकर, आपके होश उड़ जाएंगे ..!!

सीएफएल बल्ब के ये खतरे जानकर, आपके  होश उड़ जाएंगे ..!!

बिजली की कमी और इसकी बढ़ती लागत को ध्यान में रखते हुए बिजली की बचत के लिये  सीएफ़एल बल्ब और ट्यूब लगाना समय की आवश्यकता है इसलिये इन्हें लगाएं ज़रूर पर इसके साथ ही इसके ख़तरों से जागरूक रहते हुए अपने स्वयं के और अपने परिजनों के स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना न भूलें।

1) इजरायल के हफीफा विश्वविद्यालय के जीवविज्ञान के प्रोफेसर अब्राहम हाइम का कहना है कि कॉम्पैक्ट फ्लोरेसेंट लैम्प (सीएफएल) से निकलने वाली नीले रंग की रोशनी काफी हद तक दिन में होने वाली रोशनी जैसी होती है।

सीएफएल का नुकसान यह है कि इससे शरीर में मेलाटोनीन नाम के हारमोन का बनना काफी हद तक प्रभावित होता सीएफएल का नुकसान यह है कि इससे शरीर में मेलाटोनीन नाम के हारमोन का बनना काफी हद तक प्रभावित होता है। इस कारण सीएफएल पीले रंग की रोशनी देने वाले पारंपरिक फिलामेंट वाले बल्ब की तुलना में स्तन कैंसर को ज्यादा तेजी से बुलावा देता है।

हाइम की यह रिपोर्ट ‘क्रोनोबॉयलॉजी इंटरनेशनल’ नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है। इसमें यह भी लिखा है कि मेलाटोनीन को स्तन और प्रोस्टेट कैंसर से बचाने वाला हारमोन माना जाता है। यह 24 घंटे मस्तिस्क के पीइनीयल ग्लैंड में तैयार होता रहता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जो महिलाएं रात में बल्ब जलाकर सो जाया करती हैं, उनमें स्तन कैंसर का खतरा 22 फीसदी तक बढ़ जाता है। इस लिहाज से रात में रोशनी के बगैर सोना महिलाओं के लिए ज्यादा सुरक्षित है।

2) यूरोपियन कमिशन की वैज्ञानिक समिति ने सन् 2008 में यह पाया कि सीएफ़एल बल्ब व ट्यूब से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणों की निकटता विद्यमान चर्म रोगों को बढ़ा सकती है और आँखों के पर्दे (ratina)को हानि पहुँचा सकती है। यदि दोहरे काँच की सीएफ़एल काम में ली जाय तो यह ख़तरा नहीं रहता है। दोहरे काँच की सीएफ़एल विकसित देशों में बनने लग गई हैं लेकिन भारत में यह प्रचलन आने में समय लग सकता है।

3) हर सीएफ़एल बल्ब व ट्यूब में लगभग 3-5 मिलिग्राम पारा होता है जो कम मात्रा में होने पर भी ज़हर है। सीएफ़एल के ख़राब होने पर हर कहीं फेंक देने पर यह भूमि और भूमिगत जल को प्रदूषित कर देता है जो जन स्वास्थ्य के लिये भारी ख़तरा पैदा करता है। जैविक प्रक्रिया के दौरान यह पारा मिथाइल मरकरी (methylmercury) बन जाता है जो पानी में घुलनशील है और मछलियों के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करता है। इसका मुख्य कुप्रभाव गर्भवती स्त्रियों पर होता है और परिणाम जन्मजात विकलांगता व न्यूरोविकारके रूप में सामने आते हैं। अमेरिका की नेशनल साइंस एकेडमी के एक अनुमान के अनुसार हर साल 60,000 से अधिक ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं जिनकी विकलांगता का कारण मिथाइल मरकरी होता है। भारत में ऐसे कोई अध्ययन हुए हों ऐसी जानकारी नहीं है। विकसित देशों ने कम पारे वाले बल्ब ही उत्पादित करने के मानक निर्धारित कर दिये हैं और बल्ब बनाने व बेचने वालों के लिये इनके खराब होने के बाद वापस एकत्रित कर सुरक्षित पुनर्चक्रण अनिवार्य कर दिया है। वहाँ ऐसे बल्बों की कीमत में पुनर्चक्रण की कीमत भी शामिल की जाती है। भारत में यह प्रचलन आने में कितना समय लगेगा कोई नहीं बता सकता है।
4) यदि सीएफ़एल बल्ब या ट्यूब घर में टूट जावे और उसका सुरक्षित निस्तारण करने की जानकारी नहीं हो तो इसके गंभीर दुश्परिणाम हो सकते हैं। ऐसी ही एक दुर्घटना में पीड़ित के पाँव की स्थिति गंभीर हो गई थी क्योंकि उसने फूटे बल्ब के काँच पर पाँव रख दिया और पारे का ज़हर सीधा फैल गया ।
सीएफ़एल बल्ब के टूट जाने पर कम से कम 15 मिनट तक उस स्थान से दूर रहना चाहिये और खुली हवा आने जाने देना चाहिये ताकि विषैली गैसें बाहर निकल जावें फिर टूटे काँच के टुकड़ों को खुले हाथ स्पर्श किये बिना इकट्ठे कर कहीं दूर उजाड़ में फेंकना चाहिये क्योंकि भारत में अभी तक इनके सुरक्षित पुनःचक्रण की व्यवस्था अधिकांशतः नहीं है।
अधिकांश विकसित देशों ने इस संबंध में सार्वजनिक दिशा निर्देश जारी कर रखे हैं पर भारत में अभी इसका अभाव है।

2 comments

  1. I read the articles and found that ayurveda is the complete treatment method that gives us good health without side effect. So I think everyone should use ayurveda in life. I aim suffering some problems, so please suggest to help me out.

  2. Acha jankare he

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