शरद पूर्णिमा – आश्विन शुक्ला प्रतिपदा को पीपल वृक्ष की अन्तछाल ताजा ला कर छाया में सुखा ले , आधी छाल का बारीक़ चूरण कर ले शेष आधी छाल को जलाकर रख कर ले फिर दोनों में से एक एक मासा मिला कर एक मात्रा बना लें .
औषधी सेवन विधि : शरद पूर्णिमा को सूर्योदय से लेकर रात्रि 12 बजे ( औषधि सेवन का समय ) तक उपवास करे , जल आदी कुछ भी न लें . पूर्निमा को आगे बताई हुई विधि अनुसार खीर बना कर चाँदी या मिट्टी के बर्तन में रख कर खुली चाँदनी में रख दे 12 बजे रात्रि को बने हुई औषधी को खीर में मिला कर खा ले , दवा उतनी ही खीर में मिलाये जितनी आप खा सके .
औषधि सेवन के 2 घंटे बाद तक पानी बिलकुल भी नहीं पीना है कुल्ले कर सकते है पर ध्यान रहे पानी पेट में न जाये , शक्ति के अनुसार जितना भ्रमण (टहलना) कर सके करे . कार्तिक शुक्ल १ को भूक लगने पर हल्का भोजन करे .
खीर बनाने की विधि : शरद पूर्णिमा को शाय काल ५ बजे गाय का ताजा और शुद्ध दूध मिश्री और बढ़िया चावल चाँदी या मिट्टी के बर्तन में यथाविधि (जैसी हमेसा खीर बनती है वैसे ही ) खीर तैयार होने पर चन्द्र उदय होते ही चाँदनी में रख दे, अर्ध रात्री को इसमें से थोड़ी खीर में औषधि डाल कर दो चार गर्सो या चम्मच खा कर ऊपर से इच्छा अनुसार और खीर खा ले ,
औषधी में पूर्ण विशवास रखते हुए और अपने इष्ट देव का देवन करते हुए औषधि सेवन करे अवश्य लाभ होगा , परहेज या विधान में गड़बड़ी न करे जो की निम्नलिखित है .
औषधि सेवन के बाद दो माह तक लाल मिर्च , तेल , खटाई , शराब , गुड , तली हुई चीजे और गरिष्ठ पधारथ ( आसानी से न पचने वाले) , दही , छाछ, कढ़ी , चाय इत्यादी का सेवन नहीं करना है एवं ब्रह्मचार्य से रहे और अधिक परिश्रम ना करे .