शरीर के रक्षक हैं विटामिन ! जाने क्या है इन का महत्त्व ..?
तरह-तरह के पोषक तत्व मिल कर हमारी सेहत को दुरुस्त रखते हैं, जिनमें विटामिन्स खास भूमिका निभाते है। खान-पान में विटामिन्स की कमी शरीर को कई बीमारियां दे सकते हैं। अपने भोजन में कुछ बदलाव करके आप इस कमी को शरीर से दूर रख सकते हैं।
विटामिन्स एक प्रकार के आर्गेनिक कम्पाटउंड होते हैं, जो शरीर को सही से काम करने में मदद करते हैं। शरीर के हर भाग को उसके कार्य के हिसाब से अलग–अलग विटामिनों की जरूरत पड़ती है। यह विटमिन (vitamin) हमें भोजन से प्राप्त होता है। मुख्य रूप से विटामिन्स को दो भागों में बांटा गया है-
- वसा में घुलनशील विटामिन
- पानी में घुलनशील विटामिन
वसा में घुलनशील विटामिन –
यह विटामिन वसा में घुलनशील होते हैं। जब शरीर में यह, आवश्यकता से अधिक मात्रा संचित हो जाते है, तो इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इनकी कमी व अधिकता दोनों ही स्थितियाँ दुःखदायी होती हैं। इस वर्ग में निम्लिखित विटामिन आते हैं –
विटामिन-ए (Vitamin-A)
विटामिन ‘ए’ कई पोषक कार्बनिक कंपाउड से मिलकर बनता है, जिनमें मुख्य रूप से रेटिनॉल और थैरीमीन होते हैं। यह विटामिन शरीर में अनेक अंगों जैसे त्वचा, बाल, नाखून, ग्रंथि, दांत, मसूड़ा और हड्डी को सामान्य रूप में बनाए रखने में मदद करता है। विटामिन ‘ए’ की कमी से ज्यादातर आंखों की बीमारियां होती हैं, जैसे करतौंधी, आंख के सफेद हिस्से में धब्बे। यह रक्त में कैल्शियम का स्तर बनाए रखने में भी मदद करता है और हड्डियों को मजबूत बनाता है।
स्रोत : शरीर में विटामिन ‘ए’ की कमी न होने के लिए चुकंदर, गाजर, पनीर, दूध,टमाटर, हरी सब्जिया, पीले रंग के फल खाने चाहिए। इसमें विटामिन ‘ए’ भरपूर मात्रा में पाया जाता है,जो शरीर में इसकी पूर्ति करते हैं।
विटामिन-डी (Vitamin-D)
विटामिन ‘डी’ का सबसे अच्छा स्रोत सूर्य की किरणें हैं। जब हमारे शरीर की खुली त्वचा सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में आती है तो ये किरणें त्वचा में अवशोषित होकर विटामिन ‘डी’ का निर्माण करती हैं। अगर सप्ताह में दो बार दस से पंद्रह मिनट तक शरीर की खुली त्वचा पर सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणें पड़ती हैं तो शरीर की विटामिन ‘डी’ की पूर्ति हो जाती है।
यह कैल्शियम को सोखने में और शरीर में फॉस्फोरस के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है। इससे हडि्डयां मजबूत व स्वस्थ रहती हैं। बच्चों में इसकी कमी से रिकेटस (Rickets) और व्यस्क लोगों में ओस्टीयोमलेशिया (osteomalacia) नामक बीमारी हो जाती है। इसमें हड्डियां मुलायम हो जाती है। इसके अलावा, विटामिन D की कमी से हड्डियां पतली और कमजोर हो जाती है, जिसे ओस्टीयोपोरोसिस कहते हैं।
स्रोत : सूर्य के अलावा दूध,अंडे, चिकन,सोयाबीन और मछलियों में भी विटामिन ‘डी’ पाया जाता है।
विटामिन-ई (Vitamin-E)
विटामिन ‘ई’ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनाने, एलर्जी से बचाए रखने, कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने में प्रमुख भूमिका निभाता है। विटामिन ‘ई’ वसा में घुलनशील विटामिन है। यह एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में भी कार्य करता है। इसके आठ रूप होते हैं। इसकी कमी से जनन शक्ति में कमी आ जाती है।
यह शरीर में लाल रक्त कणिकाओं को बनाने का काम करता है। विटामिन-E की कमी से पेट संबंधी रोग पैदा होते है। यह विटामिन शरीर में अनेक अंगों को सामान्य रूप में बनाये रखने में मदद करता है जैसे कि मांस-पेशियां, अन्य टिशू। यह शरीर को ओक्सिजन के, नुकसानदायक रूप, ओक्सिजन रेडिकल्स (oxygen radicals) से भी बचाता हैं।
स्रोत : विटामिन ‘ई’ अंडे, सूखे मेवे, बादाम, अखरोट, सूरजमुखी के बीज, हरी पत्तेदार सब्जियां, शकरकंद, सरसों में पासा जाता है। इसके अलावा विटामिन ‘ई’ वनस्पति तेल, गेहूं, हरे साग, चना, जौ, खजूर,चावल के मांड़ में पाया जाता है।
विटामिन-के (Vitamin-K)
यह विटामिन, खून के थक्के बनने से रोकते हैं। इसकी कमी से नाक से खून आना, आंतरिक रक्तस्राव जैसी समस्या हो सकती है । इसका मुख्य स्रोत, हरी सब्जियां और सोयाबीन हैं।
पानी में घुलनशील विटामिन–
इस प्रकार के विटामिन जल में घुलनशील होते हैं। यह भी हमें भोजन के द्वारा ही मिलते हैं। जल में घुलनशील होने के कारण, आवश्यकता से अधिक विटामिन शरीर में पहुँचने पर, यह जल के साथ मिलकर शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इस वर्ग के अन्तर्गत विटामिन ‘B’ व ‘C’ आते हैं।
विटामिन बी- (Vitamin-B)
यह हमारे शरीर के लिए जरूरी विटामिन है। शरीर में कार्बोहाइड्रेट को एनर्जी में बदलने का काम यह विटामिन करता है। यह नर्व सिस्टम की कार्यप्रणाली को सामान्य बनाने व पाचन शक्ति को मजबूत करता है। इस वर्ग में निम्नलिखित विटामिन आते हैं-
- विटामिन B1 या थायमिन – विटामिन बी-1 की कमी से ध्यान न लगना, भूख में कमी, थोड़ा काम करते ही थकावट आदि की समस्या होती है। यह मुख्य रूप से केला, फलियां, आलू, चुकंदर, तरबूज, साबुत अनाज इत्यादि में पाये जाते हैं।
- विटामिन B2 या राइबोफ्लेविन- यह मुख्य रूप से साबुत आनाज, दूध, पनीर इत्यादि में पाये जाते हैं।
- विटामिन B3 या नियासिन- इनका मुख्य स्रोत, मांस, मछली, मुर्गी और साबुत अनाज हैं।
- विटामिन B5 या पैन्टोथेनिक एसिड- इनका मुख्य स्रोत, मांस, मछली, मुर्गी और साबुत अनाज हैं।
- विटामिन B6 या पाइरिडोक्सिन- यह मुख्य रूप से अनाज और सोया उत्पादों में पाया जाता है।
- विटामिन B7 या बायोटिन- यह फलों और मांस में पाया जाता है।
- विटामिन B9 या फालिक एसिड (Folate) – यह मुख्य रूप से हरी सब्जियों में पाया जाता है।
- विटामिन B12 – इनका मुख्य स्रोत, मछली, अंडा, मांस और डेयरी उत्पाद हैं।
विटामिन-सी (Vitamin-C)
विटामिन ‘सी’ शरीर की मूलभूत रासायनिक क्रियाओं के संचालन में सहयोग करता है,जैसे तंत्रिकाओं तक संदेश पहुंचाना या कोशिकाओं तक ऊर्जा प्रवाहित करना आदि। विटामिन ‘सी’ मानव शरीर के सामान्य कामकाज के लिए आवश्यक है। यह एस्कॉर्बिक अम्ल होता है जो नींबू, संतरा, अमरूद, मौसम्मी आदि में पाया जाता है।
विटामिन ‘सी’ की कमी से स्कर्वी नामक रोग हो सकता है, जिसमें शरीर में थकान, मासंपेशियों की कमजोरी, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, मसूढ़ों से खून आना और टांगों में चकत्ते पडऩे जैसी समस्याएं हो जाती हैं। विटामिन ‘सी’ की कमी से शरीर छोटी-छोटी बीमारियों से लडऩे की ताकत भी खो देता है, जिसका नतीजा बीमारियों के रूप में सामने आता है।
स्रोत : विटामिन ‘सी’ खट्टे रसदार फ ल जैसे आंवला, नारंगी, नींबू, संतरा, बेर,कटहल, पुदीना, अंगूर, टमाटर, अमरूद, सेब, दूध, चुकंदर, चौलाई और पालक में पाया जाता है। इसके अलावा दालों में भी विटामिन ‘सी’ पाया जाता है।
विटामिन हमारे शरीर के लिए बहुत उपयोगी हैं। सभी विटामिन का एक अपना अलग महत्व होता है और शरीर में इनकी कमी हो जाने से तरह तरह की बीमारियां भी हो सकती हैं। अगर शुरूआत से हरी सब्जियां, अंकुरित चने, दूध आपके आहार में हैं तो अलग से कोई दवा, कैप्सूल खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और शरीर में विटामिन की आपूर्ति हो जाएगी।