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अपोहन ( डायलिसिस Dialysis ) क्या है यह कब और क्यों होता है आइये जाने विशेषज्ञों द्वारा !!

अपोहन (डायलिसिस Dialysis ) रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि होती है। इस डायलिसिस की प्रक्रिया को तब अपनाया जाता है जब किसी व्यक्ति के वृक्क यानि गुर्दे सही से काम नहीं कर रहे होते हैं। गुर्दे से जुड़े रोगों, लंबे समय से मधुमेह के रोगी, उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियों में कई बार डायलसिस ( Dialysis ) की आवश्यकता पड़ती है। स्वस्थ व्यक्ति में गुर्दे द्वारा जल और खनिज (सोडियम, पोटेशियम क्लोराइड, फॉस्फोरस सल्फेट) का सामंजस्य रखा जाता है। डायलसिस ( Dialysis ) स्थायी और अस्थाई होती है। यदि अपोहन के रोगी के गुर्दे बदल कर नये गुर्दे लगाने हों, तो अपोहन की प्रक्रिया अस्थाई होती है। यदि रोगी के गुर्दे इस स्थिति में न हों कि उसे प्रत्यारोपित किया जाए, तो अपोहन अस्थायी होती है, जिसे आवधिक किया जाता है। ये आरंभ में एक माह से लेकर बाद में एक दिन और उससे भी कम होती जाती है।

source : मांस संरक्षण में उपयोगी रसायन किडनी के लिए नुकसानदायक,   क्या है गुर्दे की बीमारी का इलाज?।। ३१ अगस्त२००९ ,  गुर्दा रोग उपचार के । पत्रिका.कॉम पर, किडनी पेशेंट के लिए पीडी एक उम्मीद। याहू जागरण। १९ जुलाई२००९,  सबसे बड़ा अपोहन सेंटर। आशीष तिवारी। दैनिक भास्कर। १९ फरवरी२००९

और यदि हम सीधी भाषा में कहे तो जब किडनी की कार्यक्षमता कमजोर हो जाती है, शरीर से विषैले पदार्थ पूरी तरह नहीं निकल पाते, क्रिएटिनिन और यूरिया जैसे पदार्थो की अधिकता होने पर कई प्रकार की समस्याएं बढ़ जाती हैं तो ऎसे में मशीनों की सहायता से रक्त को साफ करने की प्रक्रिया को डायलिसिस ( Dialysis ) कहते हैं।

( Dialysis ) सामान्यतः दो तरह की अपोहन की जाती है

कब जरूरत पड़ती है?

क्रॉनिक रिनल डिजीज या क्रॉनिक किडनी डिजीज के कारण क्रिएटिनिन क्लियरेंस रेट 15 फीसदी या उससे भी कम हो जाए तो डायलिसिस ( Dialysis ) करना पड़ता है। किडनी की समस्या के कारण शरीर में पानी इकटा होने लगे यानी “फ्लूइड ओवरलोड” की समस्या हो जाए। पहले दवा देकर देखा जाता है, फायदा न मिलने पर डायलिसिस ( Dialysis ) करना पड़ता है। अगर शरीर में पोटेशियम की मात्रा बढ़ जाए और दिल की धड़कनें अनियमित हो जाएं तो अलग-अलग तरह की दवाएं दी जाती हैं। दवाओं का असर न दिखे तो डायलिसिस की सलाह दी जाती है।

“रेजिस्टेंस मेटाबॉलिक एसिडोसिस” की वजह से एक्यूट रिनल फेल्योर का खतरा उत्पन्न हो जाता है। इस रोग से शरीर में एसिड की मात्रा अचानक बढ़ जाती है। शुरू में सोडाबाइकार्ब जैसी दवाओं से नियंत्रण की कोशिश की जाती है। फायदा न होने पर डायलिसिस ( Dialysis ) करना पड़ता है। इनके अलावा यूरिमिक पेरिकार्डाइटिस, यूरिमिक एनकेफे लोपैथी और यूरिमिक गैस्ट्रोपैथी जैसे रोगों की वजह से भी डायलिसिस ( Dialysis ) की जरूरत पड़ सकती है।

15 दिन में रुका किसी का डायलिसिस तो किसी का हुआ क्रिएटिनिन नार्मल किसी का टला ट्रांसप्लांट

कितने प्रकार के डायलिसिस?
समस्या के प्रकार और गंभीरता के अनुसार डायलिसिस ( Types of  Dialysis ) दो प्रकार का होता है-

हीमोडायलिसिस – ( Hemo Dialysis )

यह एक प्रक्रिया है। जिसे कई चरणों में संपन्न करना पड़ता है। इस प्रक्रिया में शरीर से विशेष प्रकार की मशीन द्वारा एक बार में 250 से 300 मिलिलीटर रक्त को बाहर निकालकर शुद्ध किया जाता है और वापस शरीर में डाला जाता है। इस शुद्धीकरण के लिए “डायलाइजर” नामक चलनी का प्रयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया केवल अस्पताल में ही की जाती है।

पेरिटोनियल डायलिसिस   Hemodialysis


इस डायलिसिस में रोगी की नाभि के नीचे ऑपरेशन के माध्यम से एक नलिका लगाई जाती है। इस नलिका के जरिए एक प्रकार का तरल (पी. डी. फ्लूइड) पेट में प्रवेश क राया जाता है। पेट के अंदर की झिल्ली डायलाइजर का काम करती है जो पी. डी. फ्लूइड के अच्छे पदार्थोे को शरीर में प्रवेश कराती है और रक्त में मौजूद विषैले पदार्थो को बाहर निकालती है। यह तरल पेट में 5-6 घंटे तक रखना पड़ता है। इसके बाद नलिका के माध्यम से पी. डी. फ्लूइड को बाहर निकाला जाता है। यह आजकल प्रचलन में क ाफी ज्यादा है। यह उपचार उन लोगों का होता है जो या तो बेहद कम उम्र या ज्यादा आयु के होते हैं, विज्ञान की भाषा में इसे “एक्सट्रीम ऑफ एजेस” कहते हैं। जिन लोगों को ह्वदय संबंधी समस्या हो या ऎसे लोग जो हीमोडायलिसिस प्रक्रिया को सहन न कर पाए उनके लिए उपचार का यह तरीका काफी उपयोगी होता है।

Source 

IN ENGLISH

Sometimes, you could only do so much for preventing kidney diseases. Diabetes is known to be a number one cause of kidney problems. Therefore, a person with diabetes not only has to prevent these kidney-related problems, but they also have to cure the condition if complications occur.
Kidney disease sufferers have most likely heard about dialysis. It is used to provide people an artificial replacement for lost kidney function. Currently, there are two techniques used for dialysis.

Hemodialysis

When a patient undergoes hemodialysis, his or her artery is hooked to a tube that runs through a filtering machine. Then, this machine function to draw blood from the body and cleans it. After the cleansing process, the machine sends the clean blood back into the person’s body.
How often should hemodialysis be conducted? The answer is 3 times in a week for a moderately healthy person. Usually, hemodialysis can also be associated with complications like infections and low blood pressure.
Hemodialysis is usually done at a specific center that looks like a hospital.

Peritoneal dialysis

This time, a tube is also inserted into the peritoneal cavity. This is the cavity which contains the stomach, liver and intestines. Then, a large amount of fluid is dripped into the peritoneal cavity. The body wastes are drawn out into the peritoneal cavity.
If done right, the fluid is drained out with its wastes after a few hours. Glucose must be placed in the fluid. The problem with the glucose steps is that it might complicate a patient’s diabetes.
How often should this treatment be done? The answer is every day. Peritoneal dialysis may also be associated with infection of the tube, which is similar to the earlier described hemodialysis.

SOURCE 

Kidney Reactivator बचा सकता है आप को Kidney Transplant और Dialysis से !!!

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