[ads4]
यहां लिए थे शिव-पार्वती ने 7 फेरे, तीन युगों से जल रही है इस कुंड की अग्नि
उत्तराखंड में भगवान शिव को समर्पित त्रियुगी नारायण मंदिर जिसके लिए कहा जाता है कि इस मंदिर में तीन युगों से ज्वाला जल रही है। इस मंदिर में जल रही अग्नि को ही साक्षी मानकर भगवान शिव और माता पार्वती ने विवाह किया था। तब से ही यह अग्नि इस मंदिर में निरंतर प्रज्जवलित हो रही है।
त्रियुगी नारायण मंदिर में मौजूद अखंड धुनी के चारों ओर भगवान शिव ने माता पार्वती के संग फेरे लिए थे। आज भी इस कुंड में अग्नि जलती है।
मंदिर में प्रसाद रूप में लकडिय़ां भी चढ़ाई जाती है। श्रद्धालु इस पवित्र अग्नि कुंड की राख अपने घर ले जाते हैं। कहते हैं यह राख वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी परेशानियों को दूर करती है।
माना जाता है कि भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगी नारायण मंदिर में हुआ था। इस गांव में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का एक मंदिर है, जिसे शिव-पार्वती के विवाह स्थल के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर के परिसर में ऐसे कई चीजें आज भी मौजूद हैं, जिनका संबंध शिव-पार्वती के विवाह से माना जाता हैं।
शिव-पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी। भगवान विष्णु ने उन सभी रस्मों को निभाया जो एक भाई विवाह में निभाता है।
ब्रह्मा जी ने पुरोहित बन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह करवाया था। विवाह में शामिल होने से पहले ब्रह्माजी ने जिस कुंड में स्नान किया था वह ब्रह्मकुंड यहीं पर स्थित है।