असगंध या अश्वगंधा ….!
अश्वगंधा आयुर्वेद में प्रयोग की जाने वाली एक महत्वपूर्ण जड़ी बूटी हैं। आयुर्वेद में अनेक रोगो में इसका उपयोग किया जाता हैं। अश्वगंधा एक बलवर्धक जड़ी है इसका पौधा झाड़ीदार होता है। जिसकी ऊंचाई आमतौर पर 3−4 फुट होती है। औषधि के रूप में मुख्यतः इसकी जड़ों का प्रयोग किया जाता है। कहीं−कहीं इसकी पत्तियों का प्रयोग भी किया जाता है। इसके बीज जहरीले होते हैं। असगंध बहमनेवर्रीतथा बाराहरकर्णी इसी के नाम हैं।
* अश्वगंधा या वाजिगंधा का अर्थ है अश्व या घोड़े की गंध। इसकी जड़ 4−5 इंच लंबी, मटमैली तथा अंदर से शंकु के आकार की होती है, इसका स्वाद तीखा होता है। चूंकि अश्वगंधा की गीली ताजी जड़ से घोड़े के मूत्र के समान तीव्र गंध आती है इसलिए इसे अश्वगंधा या वाजिगंधा कहते हैं।
इस जड़ी को अश्वगंधा कहने का दूसरा कारण यह है कि इसका सेवन करते रहने से शरीर में अश्व जैसा उत्साह उत्पन्न होता है।
* ये सस्ती होने के कारण यह मध्यम व निर्धन परिवारों के लिये रसायन का काम करती है। असगंध पंसारियों की दुकानों से सरलता से मिल जाती है। असगंध की जड़ भूरे रंग की होती है और स्वाद में कसैली होती है।
इसकी जड़ कूटने से इसमें घोड़े के मूत्र की बू आती है।
यह निम्नलिखित रोगों में प्रयोग की जाती है:-
* असंगध से सूखा रोग से ग्रस्त, हड्डियों के पिंजर बच्चे मोटे ताजे हो जाते हैं। इसके प्रयोग से कमजोर बच्चों का वजन बढ़ जाता है। दूध पिलाने वाली स्त्रियों का दूध बढ़ जाता है।
* इसके निरंतर प्रयोग से बुढ़ापा पास नहीं फटकता। वायु की कमजोरी, वात व सर्दी से उत्पन्न होने वाले रोगों में जैसे पट्ठों में दर्द होना। अंग सुन्न होना, कमर दर्द, पक्षाघात, शरीर पर च्युटियां चलना प्रतीत होना आदि पर असगंध सोने पर सोहागे का काम करता है।
* पक्षाघात की दवाओं में जैसे महानारायण तेल,नारायण तेल अश्वगंधारिष्ट में इसका प्रयोग होता है।
* असगंध एक वर्ष तक यथाविधि सेवन करने से शरीर रोग रहित हो जाता है। केवल सर्दीयों में ही इसके सेवन से दुर्बल व्यक्ति भी बलवान होता है। वृद्धावस्था दूर होकर नवयौवन प्राप्त होता है।
* अश्वगंधा के चूर्ण की एक−एक ग्राम मात्रा दिन में तीन बार लेने पर शरीर में हीमोग्लोबिन लाल रक्त कणों की संख्या तथा बालों का काला पन बढ़ता है। रक्त में घुलनशीलवसा का स्तर कम होता है तथा रक्त कणों के बैठने की गति भी कम होती है। अश्वगंधा के प्रत्येक 100 ग्राम में 789.4 मिलीग्राम लोहापाया जाता है। लोहे के साथ ही इसमें पाए जाने वाले मुक्त अमीनो अम्ल इसे एक अच्छा हिमोटिनिक (रक्त में लोहा बढ़ाने वाला) टॉनिकबनाते हैं।
* असंगध चूर्ण, तिल व घी 10-10 ग्राम लेकर और तीन ग्राम शहद मिलाकर नित्य सर्दी में सेवन करने से कमजोर शरीर वाला बालक मोटा हो जाता है।
* अश्वगंधा का चूर्ण 6 ग्राम, इसमें बराबर की मिश्री और बराबर शहद मिलाकर इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलायें, इस मिश्रण को सुबह शाम शीतकाल में चार महीने तक सेवन करने से बूढ़ा व्यक्ति भी युवक की तरह प्रसन्न रहता है।
* अश्वगंधा की जड़ के महीन चूर्ण को तीन ग्राम की मात्रा में गर्म प्रकृति वाली गाय के ताजेदूध से वात प्रकृति वाला शुद्ध तिल से और कफ प्रकृति का व्यक्ति गर्म पानी के साथ एक वर्षतक सेवन करे तो निर्बलता दूर होकर सब व्याधियों का नाश होता है और निर्बल व्यक्ति बल प्राप्त करता है।
* अश्वगंधा चूर्ण 20 ग्राम, तिल इससे दुगने, और उड़द आठ गुने अर्थात 140 ग्राम, इन तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े बनाकर ताजे-ताजे एक ग्राम तक खायें।
* अश्वगंधा चूर्ण और चिरायता बराबर-बराबर लेकर खरल (कूटकर) कर रखें। इस चूर्ण को 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह ग्राम शाम दूध के साथ खायें।
* एक ग्राम अश्वगंधा चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिश्री डालकर उबालें हुए दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है, बल बढ़ता है।
* शतावर, असगंधा, कूठ, जटामांसी और कटेहली के फल को 4 गुने दूध में मिलाकर या तेल में पकाकर लेप करने से लिंग मोटा होता है और लिंग की लम्बाई भी बढ़ जाती है।
* कूटकटेरी, असगंध, वच और शतावरी को तिल के तेलमें जला कर लिंग पर लेप करने से लिंग में वृद्धि होती है-
*असगंध चूर्ण को चमेली के तेल के साथ खूब मिलाकर लिंग पर लगाने से लिंग मज़बूत हो जाता है
* स्त्रियों को यह दवा खिलाते रहने से गर्भाशय के रोग दूर हो जाते हैं। बच्चा होने के पश्चात प्रसूता को असगंध का प्रयोग निरंतर कराते रहने से उसकी कमजोरी व दूसरे रोग दूर हो जाते हैं।
* यदि प्रदर अधिक आता हो तो उसमें भी असगंध रामबाण का काम करती है।
* जिन स्त्रियों के असमय ही स्तन ढीले हो जाते है असगंध का लेप करने से स्तन कड़े हो जाते हैं।
* बांझ स्त्रियां यदि निरंतर प्रयोग करें तो भगवान की कृपा से संतान प्राप्ति होती है।
* असगंध मर्दाना शक्ति उत्पन्न करती है। नपुंसकता को दूर करती है। वीर्य उत्पन्न करती है, शुक्रकीटों को बढ़ाती है।
* शारीरिक, मानसिक और स्ायुविक कमजोरी, याद न रहना, आंखों में गढ़े पड़ जाना आदि रोगों में लाभदायक है।
* स्वप्नदोष व प्रमेह को दूर करती है।
* वात रोग जैसे गठिया, आमवात, जोड़ों का दर्द, शोच और जोड़ पत्थरा जाने पर असगंध खाने व लगाने पर कमाल का असर दिखाती है।
* असगंध को गोमूत्र में घिस कर कंठमाला पर कुछ दिन लगाने से आराम होता है।
* इसे बकरी के दूध के साथ प्रयोग करने से तपेदिक रोग ठीक हो जाता है।
* असगंध पाचनांगों को शक्तिशाली बनाती है, भूख बढ़ाती है और भोजन की शरीरांश बनाती है।
* असगंध मानसिक कमजोरी, पुराना सिर दर्द, नींद न आना, वहम व पागलपन जैसे रोगों की चोटी की दवा है।
* हजारों वर्षों से असगंध का प्रयोग हमारे देश में होता आ रहा है।
* बड़ों के लिये इसकी खुराक दो से चार ग्राम व बच्चों के लिये एक ग्राम प्रात: सायं दूध के साथ प्रयोग में लायें।