Thursday , 26 December 2024
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घीया( लोकी ) से करें बाई पास सर्जरी का बचाव

घीया से करें बाई पास सर्जरी का बचाव

अगर आपको ह्रदय सबन्धी समस्या है और बाई पास सर्जरी करवाने तक की नौबत आ गई है तो अपनाए ये निम्नलिखित औषधि जिस से आप बिना सर्जरी के ठीक हो सकते हो।

विधि

छिलका सहित घीया ( लम्बी वाली ) को लेकर पहले साफ़ पानी से धो लें। फिर इसे छिलका सहित ही किसनी में कस लें। घियाक्स करने के बाद इस कसी हुई घीया को साफ़ सिलबट्टे पर अथवा ग्राईंडर द्वारा पीस लें। पीसी हुई घीया को पतले सूती कपड़े से छानकर रस निकाल लें। छाने हए रास की मात्रा 125 ग्राम के लगभग होनी चाहिए। इस घीया के रास में समान मात्रा में स्वच्छ पानी मिला ले ताकि घीया के रस और पानी की कुल मात्रा 250 ग्राम तक हो जाए। ततपश्चात इसमें चार पीसी हुई काली मिर्च तथा एक ग्राम पिसा हुआ सेंधा नमक मिला लें। बस, औषधि की यह एक मात्रा तैयार हो गई।

सेवन विधि

घीये के रस की मात्रा ह्रदय रोगी को दिन में तिन बार-सुबह, दुपहर और रात को भोजन के आधा घंटा बाद लेनी चाहिए। प्रथम तिन चार दिन रस की मात्रा कम ली जा सकती है। बाद में ठीक से हजम होने पर रोजाना तिन बार पूरा 250 ग्राम रस ( हर बार ) लें। रस हर बार तजा लेना चाहिए।

घीये का रस पेट में जो भी पाचन होते है, उन्हें दूर करके मल के द्वारा बाहर निकल देता है, जिसके कारण शुरआत में पेट में कुछ खलबली, गड़गड़ाहट आदि महसूस होती है, जो की एक स्वाभाविक प्रतिकिरिया है। इससे घबराना नहीं चाहिए। तिन-चार दिन में स्वत: पेट के विकार दूर होकर समान्य स्थिति हो जाती है। इसे नियमित दो-तिन मास आवश्यकतानुसार लेने से ह्रदय रोगी ठीक होने लगता है।

विशेष

1. ह्रदय रोग से पीड़ित कोई भी रोगी इस इलाज को कर सकता है, परन्तु इस दौरान पहले से चल रही कोई भी औषधि को एकदम छोड़ना नहीं चाहिए। दोनों को साथ-साथ एक दो घंटों का अंतर् रखते हुए चलने दें।

2. रोगी को प्रतिदिन बिना किसी अतिरिक्त कष्ट के रोजाना पॉंच-छह किलोमीटर पैदल चलना चाहिए। टहलना भी उपचार का एक हिस्सा है।

3. उपचार के दौरान कोई भी खट्टी वस्तु का सेवन न करें। खासकर इमली, अमरुद, आदि खटाई से परहेज रखें।

4. मलाईदार दही का प्रयोग न करें।

5. मांस, मदिरा, धूम्रपान आदि नशीली चीजों का सेवन पूरी तरह बंद कर दें। यह अति आवश्य्क है।

6. रात का भोजन सोने के तिन घंटे पूर्व करें तथा भोजन आराम से खूब चबा-चबा कर खाएं।

ह्रदय को रक्त पहुंचने वाली नाड़ियों में अवरोध बिना किसी कष्टसाध्य बाईपास सर्जरी के दूर हो सकें, इस दिशा में उपरोक्त घीये का रस का प्रयोग मुंबई के के. ई. एम. हसपताल में कार्यरत डा. मनुभाई कोठरी की शोध है।

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