मूत्राशय तथा व्रक्क रोग के लिए अनुभूत और शीघ्र लाभकारी नुस्खे-अवश्य अजमाए
-व्रक्क पीड़ा – यह रोग अधिक सर्दी या अधिक गर्मी से हुआ करता है|यदि ठंडी वस्तुओ को प्रचुर मात्रा में सेवन किया जाये या गर्म वस्तुओ का सेवन भी अधिक किया जाये तो यह रोग दोनों अवस्थाओं में हो जाता है इस रोग के होने पर गर्म या सर्द वस्तुओ के सेवन से व्रक्क में खिचावट पैदा होकर बड़ा दर्द होता है मूत्र त्याग की शंका बार-बार होती है परन्तु मूत्र एक -एक बूंद बड़े कष्ट से उतरता है निचे इसके कुछेक अनुभूत योग प्रस्तुत कर रहे है|
1 .-व्रक्क पीड़ा संजीवनी – व्रक्क पीड़ा ,पथरी ,मूत्रवन्ध आदि सब रोगों के लिए यह अचूक ओषधि है एक दो मात्राओ से लाभ हो जाता है
विधि — दूब (घास ) की हरी पत्तिय 50 ग्राम और कलमी शोरा 10 ग्राम दोनों को एक किलो पानी में डालकर मिटटी के बर्तन में यहा तक पकाए की आधा शेष रह जाये किन्तु ध्यान रहे की बर्तन का मुख ऊपर से बंद हो तदुपरान्त उपयोक्त पानी को अच्छी प्रकार मलकर कपड़े से छानकर पुनः कलईदार डेकची में डालकर यहा तक पकायें की सारा पानी जलकर निचे नमक सा रह जावे तब आग पर से उतारकर नमक को बारीक़ पीसकर शीशी में रखे आवश्यकता के समय दो रती ओषधि सोंफ के 60 ग्राम अर्क के साथ दिया करे तीन चार दिनों में व्रक्क तथा मूत्राशय के रोगों में प्रायः आराम होने लगता है कब्ज हो तो पहले कब्ज नाशक ओषधि दे|
2 .-नीली पुडिया – विधि — देशी नील को बारीक़ पीसकर दोनों समय एक -एक रती की मात्रा पानी के साथ दे अवश्य आराम होगा
3 .-सरल योग – विधि — भुनी हुई अलसी और खांड बराबर मात्रा में लेकर बारीक़ पिस ले .10 ग्राम की मात्रा गर्म चाय के साथ दे .यह भी बड़ा लाभप्रद योग है|
4 .-व्रक्क ,मूत्राशय की रेत – विधि — अरहर के पत्ते 6 ग्राम और संगे यहूद चार रती .दोनों को पानी में बारीक़ पीसकर ठंडाई की तरह पिलाया करे ,बड़ा लाभप्रद और अनुभूत योग है
5 .-व्र्क्कश्मरी – विधि — कलमी शोरा 6 ग्राम ,यवक्षार 6 ग्राम .दोनों को बारीक़ पीसकर समान मात्रा में खांड मिला ले .ठंडे पानी के साथ तीन ग्राम की मात्रा दिया करे .व्रक्क अश्मरी के लिए बड़ी प्रभावोत्पादक ओषधि है|
6 .-द्धितीय योग – विधि — गंधक आंवलासार और कलमी शोरा दोनों को समान मात्रा में ले .अलग -अलग बारीक़ पिस ले . त्तपश्यात आधी गंधक निचे रखकर कलमी शोरा डाले .शेष गंधक को ऊपर डालकर बिल्कुल हल्की सी आग पर रखकर जला दे .फिर बारीक़ पीसकर सावधानी से शीशी में रखे .इसमें से तीन ग्राम की मात्रा मुली के रस या ताजा पानी के साथ दे .
7 .-मूत्राशय की अश्मरी – विधि — रेवंद चीनी आवश्यकतानुसार लेकर बारीक़ पिस ले .दो से चार ग्राम तक की मात्रा पानी के साथ दिया करे .अनेक बार की अनुभूत ओषधि है |
8 .-मधुमेह – विधि — ताजा गिलोय छाया में सुखा ले .कूट छानकर बराबर सोंठ मिलाकर दोनों समय ताजा पानी के साथ दिया करे .खट्टी , वात प्रधान और तेल की चीजों तथा हर प्रकार की मीठी चीज ,चावल ,आलू ,केला आदि से परहेज करे |
9 .-द्धितीय योग – विधि — काले तिल 100 ग्राम और अजवायन 50 ग्राम दोनों को बारीक़ करके चूर्ण बना ले .25 दिन तक प्रातः समय 6-6 ग्राम दे आशातीत आराम होगा|
10 .-तृतीय योग – विधि — 15 ग्राम बीनोलो को कूट करके एक किलो पानी में ओटाये जब लगभग 250 ग्राम जल शेष रहे तब मल छानकर 25 ग्राम जल पिला दे .नित्य ऐसी तीन -चार मात्राये कुछ दिन देने से पूर्ण आराम हो जायेगा|
11 .-मुत्रावरोध – विधि — शंखाहुली बूटी 12 ग्राम प्रतिदिन प्रातः समय घोटकर थोडा मीठा मिलाकर मल छानकर पिलाया करे एक सप्ताह में पूर्ण आराम हो जायेगा|
12 .-द्धितीय योग – विधि — कलमी शोरा तीन ग्राम और राई तीन ग्राम इनको आधा किलो पानी में ओटाकर पिलायें|
13 .- तृतीय योग- विधि — गंधक का तेजाब (खाने वाले ) सात बूंद को 25 ग्राम शर्बत बनफ्सा में मिलाकर दे .उसी समय मूत्र खुलकर आएगा|
14 .-खून का पेशाब – विधि — झडबेरी की लाख और संगजहरात दोनों को समान मात्रा में लेकर बारीक़ करके 6 ग्राम की मात्रा पानी के साथ दिया करे कुछ ही मात्राओ में पूर्ण आराम हो जायेगा|
15 .-मुत्रावरोध – विधि — 25 ग्राम तिलों को थोड़ी सी शक्कर मिलाकर सोते समय रोगी को खिलाये . बाद में पानी बिल्कुल ना दे एक सप्ताह के सेवन से रोग जड से नष्ट हो जायेंगे|
16 .-द्धितीय योग – विधि — पकते समय जो चावल बर्तन के बाहर की तरफ लग जाते है ,आवश्यकतानुसार संचित करके छाया में सुखा ले| फिर बारीक़ पीसकर रात को सोते समय रोगी को पानी के साथ 25 ग्राम फंका दे बहुत शीघ्र इस रोग से छुटकारा मिलेगा|