नेत्र विकारों से बचाव :
सुबह दांत साफ़ करके, मुंह में पानी भरकर मुंह फुला लें। इसके बाद आँखों पर ठन्डे जल के छींटे मारें। प्रतिदिन इस प्रकार दिन में तीन बार प्रात: दोपहर तथा सायंकाल ठंडे जल से मुख भरकर, मुंह फुलाकर ठंडे जल से ही आँखों पर हल्के छीटें या छप्पकेँ मरने से नेत्रों में ताजगी का अनुभव होता है और किसी प्रकार का नेत्र विकार नही होता। कुछ मास के अभ्यास से नेत्रों का चस्मा उतर सकता है। लाभ तो एक मास में ही प्रतीत होने लगेगा।
विशेष :
1. ध्यान रहे की मुंह का पानी गर्म न होने पावे। गर्म होने पर पानी बदल लें।
2. मुंह से पानी निकालते समय भी पुरे जोर से मुंह फुलाते हुए वेग से पानी छोड़ने से ज्यादा लाभ होता है, आँखों के अस-पास झुर्रियां नही पड़ती।
3. पानी अत्यधिक शीतल न हो।
4. प्रात: मुख में जल अच्छी तरह भरकर त्रिफला-जल से आँखों पर उससे ऑंखें धोने से नेत्र ज्योति मंद नही होती।
विकल्प- जलनेति
किसी टूटीदार पात्र में ताजा जल लें और टूटी को बायीं नासिका-छिद्र में लगाएं। बायीं नासिका-छिद्र को थोड़ा सा ऊपर कर लें और दायी नासिका-छिद्र को निचे झुकाएं और मुख से स्वास-प्रश्वास लें। बायीं नासिका-छिद्र द्वारा डाला हुआ जल दायी नासिका छिद्र से स्वयं निकलेगा। इसी प्रकार दायें नथुने से जल डालकर बाएं से निकालें।
जलनेति करने के बाद
नाक में रुका हुआ पानी सुखाने के लिए, भस्त्रिका क्रिया आवश्यक है। भस्त्रिका का अर्थ है धौकनी। लोहार की धौकनी के समान भस्त्रिका में जल्दी-जल्दी, बलपूर्वक या अधिक वेग से नासिका छिद्रों से श्वास-प्रश्वास करना होता है। थोड़ा आगे झुककर गर्दन को दायें-बाएं, ऊपर निचे घुमाकर भस्त्रिका क्रिया करे ताकि नाक में पानी की रही सही बुँदे बाहर आ जावें अन्यथा नासा-रोग होने का डर रहता है।
सावधानी :
1. यह क्रिया किसी योगी से ठीक ढंग से सीखे।
2. ध्यान रहे बासी और अतिशीतल या गर्म जल से नेति कभी न करें।
3. आरम्भ में यह क्रिया को थोड़ी देर फिर शने-शने बढ़ाएं। साधारणतया एक लोटा पानी एक नासिका-छिद्र से निकलना और एक ही लोटा पानी दूसरे नासिका-छिद्र से निकलना पयार्प्त है।
4. इसके लिए हल्का गुनगुना आधा किलो पानी में आधा चाय का चमच स्वच्छ नमक मिलाकर प्रयोग करना उत्तम है।
लाभ- यह क्रिया आँखों की ज्योति के लिए इतनी लाभदायक है की इसका निरतर श्र्दापूर्वक अभ्यास करने से चश्मे की आवश्यकता नही रहती। कोई सुरमा या अंजन इससे अधिक लाभदायक नही। इससे किसी प्रकार की हानि नही होती यह जुकाम को भी दूर भगा देती है। मस्तिषिक शुध्द, निर्मल और हल्का करती है। उष्णता और शुष्कता भगती है जलनेति चक्षुओं के लिए अमृत संजीवनी है।
सहायक उपचार :
1.पांव के तलुवे और अँगुलियों की सरसों के तेल से नित्य प्रात: मालिश करने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। पांव के अंगूठे की सबसे पहले तेल से तर करके मालिश करनी चाहिए। पैरों के अंगुठें को तेल से तर करते रहने से किसी प्रकार का नेत्र रोग नही होने पता और आँखों की रौशनी तेज होती है। इसके अतिरिक्त इससे पांव का खुरदरापन, रूखापन तथा पावं का सूज जाना शीघ्र दूर होता है और पांव में कोमलता तथा बल आता है।
2. दोनों समय भोजन करने के बाद मुख धोकर दोनों हथेलियों को परस्पर रगड़ें और जब वे कुछ गर्म हो जयें तो उन्हें नेत्रों पर हल्के से मला जाये या स्पर्श किया जाये तो नेत्रों में उतपत्र हुए रोग नष्ट हो जाते है और नेत्र रोग होने की कोई संभावना नही रहती। ऐसा करने से नेत्रों के सामने अँधेरा छ जाना और द्रष्टि फ्टना आदि दोष नष्ट हो जाते है।
विशेष :
1. हथेलियों को परस्पर रगड़कर नर्मी से गालों के ऊपर आँखों की और ले जाकर फिर कनपटियों की और ले जाना चाहिए।
2. यदि हथेलियों को रगड़ते समय निम्नलिखित मंत्र का पाठ करें और फिर अंतर्मन को यह सुझाव देते हुए की ” मेरी आँखों की द्रिष्टि तेज हो रही है और ऑंखें स्वस्थ एवं आकर्षक बन रही है” आँखों का अपनी हथेलियों से स्पर्श किया जाये तो आश्चर्जनक लाभ होगा।
एक हाथ की उँगलियों को दूसरे हाथ की उँगलियों से, जो समान शक्ति का प्रतीक है, रगड़ने से शरीर की, शरीर के लिए और शरीर में बल और प्राणदा शक्ति प्राप्त होती है।
अत: भोजन करने के पश्चात हाथ जल से धोने के बाद बिना पोछे ही चिकने हाथों को परस्पर रगड़कर चेहरे पर फेरने तथा दोनों हाथों की तर्जनी और मध्यमा उँगलियाँ नाक की और से कान की और आँखों पर सात बार हल्के स्पर्श के साथ रोजाना फेरने से सालभर में चस्मा छूट सकता है और आँखों की बीमारिया नही होती।
ध्यान रहे, लाली, सूजन, रोहे, दानों, अबुर्द आदि आँखों की बीमारियों में यह क्रिया न करें। इस क्रिया को करने से कमजोर आँखों को बल मिलेगा और सामान्य ऑंखें स्वस्थ बनी रहेगी।
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