गोमूत्र जो विश्व में अम्रततुल्य ओषधि है अवश्य सेवन करे
परिचय –
शास्त्रों में ऋषियों-महर्षियों ने गौ की अनंत महिमा लिखी है। उनके दूध, दही़, मक्खन, घी, छाछ, मूत्र आदि से अनेक
रोग दूर होते हैं। गोमूत्र एक महौषधि है। इसमें पोटैशियम, मैग्नीशियम क्लोराइड, फॉस्फेट, अमोनिया, कैरोटिन,
स्वर्ण क्षार आदि पोषक तत्व विद्यमान रहते हैं इसलिए इसे औषधीय गुणों की दृष्टि से महौषधि माना गया है।
गोमूत्र का सेवन हम अनेक बीमारियों में कर सकते है –
गोमूत्र साधारण रोगों के साथ साथ
- केंसर
- दमा
- व्रक्क-निष्क्रियता
- जलोदर
- यकृत-शोथ
- त्वचा रोग
- बी.पी .
- हार्ट रोग
- मोटापा
- पेट की गेस
- जोड़ो का दर्द
- कीटाणुओं को नष्ट करे
आदि अनेक रोगों की निरापद ओषधि है .
10-15 मिली गोमूत्र का नियमित रूप से प्रतिदिन दो बार सेवन करने से उक्त सभी रोगों में शीघ्र लाभ होना प्रारम्भ
हो जाता है .
आधुनिक विशलेषण के आधार पर गोमूत्र में नाइट्रोजन ,फास्फेट,केल्शियम,मैग्नेशियम ,यूरिया अम्ल ,पोटेशियम
सोडियम कार्बोलिक अल्म ,लेक्टोज एंव हार्मोन्स पाए जाते है ,जो सभी रोगों पर अपना-अपना प्रभाव दिखाकर
रोग को समाप्त करने में सहयोग करते है .
गोमूत्र को यथासम्भव ताजा ही आठ तह किये कपड़े से छानकर प्रयोग करना चाहिए ,तुरंत ब्यायी या
जर्सी गाय का मूत्र प्रयोग में नही करना चाहिए ,बच्चा देने के 1-2 महीने बाद ही गोमूत्र प्रयोग करना उचित होता है
प्रति दिन ताजे गोमूत्र की अनुपलब्धता की अवस्था में गोमूत्र को छानकर शीशी में भरकर भी रख सकते है .
गोमूत्र देशी गाय का ही उतम होता है
इसके अलावा गोमूत्र को तांबे के पात्र में लेकर उसको पका ले ,जब आधा से भी कम रह जाये तब
छानकर शीशी में भरकर रख ले .1-1 या 2-2 बूंद प्रातः सांय आँखों में डालने से आँखों के समस्त
रोगों में लाभ पहुंचता है .