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व्रद्धावस्था में बार-बार भूलने की बीमारी के लिए आयुर्वेदिक उपचार

व्रद्धावस्था में बार-बार भूलने की बीमारी के लिए आयुर्वेदिक उपचार

बार -बार भूलने वाला यह रोग वर्द्धाव्स्था में अधिकतर लोगो में पाया जाता है .यह स्वतंत्र रोग नही माना गया है .                  किसी भी रोग के कारण मष्तिष्क के केंद्र की स्नायुओ में आई रुकावटों की वजह से आगे सूचनाये नही पंहुच पाती                 तब बार -बार स्म्रति का लोप होने के कारण व्यक्ति में छोटी -छोटी बातो को भूलने वाली बीमारी हो जाती है .

लक्षण –

व्यक्ति जरा सी बात को भूल जाता है थोड़ी देर पहले जो चीज जहा रखी थी .कुछ देर बाद वह ढूढने लगता है की वह                 वस्तु कहा रखी थी ऐसा व्यक्ति सोचते रहता है ,कई बार सामने वाले व्यक्ति का नाम भी भूल जाता है .कई बार                    सोचते -सोचते घर से दूर निकल जाते है और बाद में याद आता है की घर तो पीछे रह गया है .

यह रोग क्यों होता है –

आयुर्वेद के अनुसार वायु के असंतुलन होने के कारण होता है .सिर में लगी चोट के कारण मष्तिष्क की शिराओ में                  धीरे -धीरे रुकावट आती है जब यह ज्यादा बढ़ जाती हे तो भूलने की समस्या होती है

आयुर्वेद में अनेक आचार्यो ने बहुत अनुसन्धान करके यदास्ती के लिए बुद्धि वर्धक योग बताये है जो बहुत ही                            शीघ्र परिणाम देने वाले होते है योग कई द्रव्य से मिलाकर बनायी जाती है .

जिसमे -जटामांसी ,सतावर ,बच ,गिलोय ,निर्गुण्डी ,श्वेतदूर्वा ,ब्राह्मी ,मुलहठी ,शंखपुष्पि आदि अनेक बुद्धि                           वर्धक ओषधि स्मलित है .यह द्रव्य मधुर रस वाले ,शीतलता प्रदान करने वाले और यह मष्तिष्क के नर्वस सिस्टम                की ठीक से चालू करने में सहायक होते है .

ओषधिया —

1- यादास्त बढ़ाने हेतु –

दवा —- ज्योतिष्मती तेल 1-2 बूंद बताशे में डाल उसे चबाकर निगलने या 100 ग्राम दूध में तेल की 1-2 बूंद                         डालकर सुबह खाली पेट पीते रहने से यादास्त बढती है .इसे छोटे बच्चों को देने से बच्चे मेधावी होते है                                   स्म्रति -नाश ,अपस्मार -मिर्गी में तुरंत लाभ होता है ,यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को मात्रा के अनुसार दे सकते है

दवा —- ज्योतिष्मती तेल 2 बूंद बताशे में डालकर चबाकर खा ले .सुबह -शाम दे .ऊपर से अश्वगंधा  चूर्ण 5                         ग्राम गाय के घी में मिलाकर सुबह -शाम चाट ले ऊपर से दूध दे .और खाने के बाद अश्वग्न्धारिष्ट दे .ज्योतिष्मती                 उष्ण होने से यह रक्तचाप को बढ़ाती है इसलिए इसके अवगुणों को समाप्त करने के लिए अश्वगंधा दिया जाता है .

दवा —- स्म्रतिसागर रस व महावातविध्वंसन रस अश्वगंधारिष्ट के साथ दे .शीघ्र लाभ मिलेगा .

ज्योतिष्मती (मालकांगनी ) —-

बुद्धि बढ़ाने वाले द्रवों में ज्योतिष्मती का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है .यह तिक्त ,तीक्ष्ण व उष्णवीर्य है पित वर्धक होने               के कारण यह साधक पित को बढ़ाकर मेघा व बुद्धि को बढ़ाती है यह मानस रोगों में लाभाकरी है और अनिद्रा -मंद                  बुद्धि वाले इसके सेवन से चपल बुद्धि वाले बन जाते है इसका असर कुछ दिनों में ही दिख जाता है और पूरा रिजल्ट के             लिए 5-6 महीने तक प्रयोग करे .

बच (वचा ) —-

बच ओषधि मानस रोगों की नाशक है तथा प्रसनता को बढ़ाती है ,बच  मेघा की शक्ति को बढ़ाता है इसे चेतन्या भी                 कहते है .शामक होने के कारण चिंता ,शोक को भी नष्ट करती है .

शंख पुष्पि —-

शंख पुष्पी हमारे मानस रोगों पर प्रभाव डालने वाली ओषधि में श्रेष्ठ ओषधि है .यह मष्तिष्क व दिमाग के नाडी केन्द्रों              को शक्ति प्रदान करती है यह ओषधि मन व दिमाक पर सीधे असर डालती है इसलिए स्म्रति -भ्रंश से होने वाले                   उन्माद व अपस्मार रोगों को ठीक करने में काफी कारगर होती है                                                                                          शंख पुष्पि व भ्रह्मी को बराबर मात्रा में लेकर इसके 1 ग्राम चूर्ण में स्वर्ण भस्म 1/16 रती मिलाकर असामान्य                      मात्रा में घी व शहद मिलाकर चटाए प्रतिदिन चटाने से बच्चों की बुद्धि तीर्व होती है साथ में रोगप्रतिरोधक क्षमता                      भी बढ़ जाती है

बाह्र्मी —-

आयुर्वेद में बाह्र्मी को बुद्धि बढ़ाने के लिए श्रेष्ट ओषधि माना है .इसका सेवन से बुद्धि की धारण शक्ति बढती है                       विस्म्रती को दूर करने के लिए बाह्र्मी श्रेष्ठ है .इसमें मानसिक तनाव ,सिरदर्द ,अनिद्रा ,अपस्मार आदि बीमारियों                    से छुटकारा दिलाने में सक्षम है यह मिर्गी ,कम्पवात ,और नशों की बीमारियों में बहुत लाभकारी है

 

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