साइनोसाईटिस के लिए घरेलु उपाय
ऐसा माना जाता है के साइनोसाईटिस बार बार रोगाणुओं से होने वाला संक्रमण तथा उसके बिगड़ जाने से होने वाला रोग है, सर्दी के समय होने वाले संक्रमण से नाक कि श्लेष्मिक झिल्ली में सूजन आ जाती है, इसके अतिरिक्त सर्दी के विषाणु मयूक्स से मुक्ति दिलाने के लिए निरंतर सक्रिय सीलिया तंतु को भी निष्क्रिय कर देता है. फलस्वरूप नाक कि शालेश्मिक झिल्ली कफ तथा उससे चिपके धुल कणों, विषाणुओं, एवम जीवाणुओं को खुद से अलग नहीं कर पाती है, जिसके कारण झिल्ली इकट्ठे गाढे चिपचिपे मयूक्स स्त्राव में कई प्रकार के रोगजनित जीवाणु आसानी से पनपते है, अत: परिस्थिति अनुकूल होते ही संक्रमण हो जाता है, कई बार यह संक्रमण आसपास कि अन्य गुहाओं में पहुंचकर वहां कि झिल्लियों को संक्रमित कर देता है, झिल्लियों को संक्रमण जीर्ण/प्रतिश्याय/असाध्य प्रतिस्याय (जुकाम) अथवा साइनोसाईटिस कहलाता है.
आहार विहार
यदि आयुर्वेद द्वारा निर्देशित दिनचर्या आहार विहार और औषध का प्रयोग करते हैं तो इस रोग से स्थायी रूप से मुक्ति पा सकते हैं.
ब्रह्म मुहर्त में उठे .
साइनोसाईटिस से ग्रसित व्यक्ति को प्रातः काल जल्दी उठाना चाहिए, इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को पंखे की हवा के नीचे सोने कि अपेक्षा खुले स्थान पर सोना चाहिए, और अगर पंखे के नीचे ही सोना हो तो पंखे से थोडा हटकर अपना बिस्तर लगायें.
गहरा श्वसन
प्रातः काल उठने के उपरान्त नित्यकर्म से निर्वृत होकर दो तीन किमी खुली हवा में टहलने जाएँ व् गहरे सांस लें .
जलनेति करें .
डेढ़ लीटर पानी में १५-20 ग्राम लवण (नमक) एवम ५ ग्राम सोडा मिलाकर इसे गुनगुना कर लीजिये एवम नेति के पात्र में भर लें. पात्र के नोजल को पहले बाएं नासिका छिद्र से लगायें एवम दाहिने नासा छिद्र को थोडा नीचे कि और झुका लें, जल बाएं नासिका से होकर दाहिने नासिका छिद्र से बाहर निकलने लगेगा. अभी इसी प्रक्रिया को दूसरी और से करें, अर्थात दाहिने नासिका छिद्र से जल डालकर बाएं नासिका छिद्र से निकालिए. फिर सीधे खड़े हो कर अवशिष्ट पानी को नासिका से निकाल दीजिये. यही प्रक्रिया दिन में 2-3 बार कीजिये. नासिका के अन्दर जमा हुआ कफ व् जीवाणु बाहर निकल जाते हैं.