कारण :
गुदाभ्रंश का प्रमुख कारण कब्ज के कारण या मलत्याग के समय जोर लगाने अथवा पेचिश, आंव के समय जोर लगाना है | कब्ज की स्थिति में मल अधिक सूखा (शुष्क) एवं कठोर हो जाता है परिणामस्वरूप मलत्याग के समय अधिक जोर लगाना पड़ता है। जिससे गुदा की त्वचा भी मल के साथ मलद्वार से बाहर निकल आती है। इसे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) कहते हैं। बच्चों में मलद्वार की त्वचा अधिक कोमल होती है जिससे वे वयस्कों की अपेक्षा जल्दी इस रोग से पीड़ित हो जाते हैं |
उपचार
बबूल :
10 ग्राम बबूल की छाल को आधा लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से गुदाद्वार को धोने से गुदाभ्रंश दूर होता है।
अमरूद :
50 ग्राम अमरूद के पेड़ की छाल + 50 ग्राम अमरूद की जड़ + 50 ग्राम अमरूद के पत्ते सब को मिलाकर एवं कूटकर 400 मिलीलीटर पानी में मिलाकर उबाल लें। जब पानी आधा रह जाये तब इसे छानकर सहने लायक गर्म रहने पर गुदा को धोऐं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है। सिर्फ अमरुद के पत्तों को पीसकर इस पेस्ट को गुदा को अन्दर कर गुदाद्वार पर बांधने से गुदाभ्रंश ठीक हो जाता है |
कालीमिर्च :
5 ग्राम कालीमिर्च एवं 10 ग्राम भुना हुआ जीरा दोनों को मिलाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में छाछ के साथ प्रतिदिन प्रातः-सायं लेने से गुदाभ्रंश होना बन्द हो जाता है।
अनार :
100 ग्राम अनार के पत्तों को 1 लीटर पानी में उबालें। गुनगुना रहने पर इस पानी को छानकर प्रतिदिन 3 से 4 बार गुदा को धोने से गुदाभ्रश में लाभ मिलता है।
कमल :
छोटे बच्चों को आंव या पेचिश हो एवं कांच निकल रही हो तो कमल के पत्ते + मिश्री को समभाग लेकर चूर्ण बना ले | 1 – 1 चम्मच चूर्ण को दिन में 3 बार सेवन कराने से लाभ होता है।
फिटकरी:
1 ग्राम फिटकरी को 30 मिली. पानी में घोल लें शौच के बाद मलद्वार को साफ करके फिटकरी वाले इस जल को रुई से गुदा पर लगाएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता
है।
पपीता :
पपीते के पत्तों को पानी के साथ पीसकर इस पेस्ट को गुदाभ्रंश पर लगाने से गुदाभ्रंश ठीक होता है।
भांग के पत्ते का रस :
भांग के पत्तों का रस गुदाभ्रंश पर लगाने से गुदाभ्रंश में अत्यंत लाभ होता है।
एरण्ड का तेल :
एरण्ड के तेल को हरे रंग की कांच की शीशी में भरकर 1 सप्ताह तक किसी लकड़ी के पाटे पर धूप में रखें। इस सूर्यतप्त तेल को गुदाभ्रंश पर रूई से लगाएं। इससे गुदाभ्रंश में लाभ मिलेगा |
प्याज :
बच्चों को गुदाभ्रंश हो रहा है तो 2 से 4 मिली. प्याज का रस निकालकर प्रातः-सायं पिलाने से गुदाभ्रंश होना बन्द हो जाता है।
कुटकी:
250 मिग्रा. कुटकी 1 चम्मच शहद के साथ मिलाकर प्रतिदिन प्रातः-सायं चाटने से आंत की शिथिलता दूर होती है एवं गुदाभ्रंश धीरे-धीरे अपने स्थान पर आ जाता है।
परहेज :
गुदाभ्रंश रोग में मिर्च, मसाला व गर्म पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए।